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Exclusive: नई संसद में समुद्र मंथन और दुनिया की सबसे ऊंची शिव मूर्ति समेत 3000 से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं नरेश कुमावत, अब तक 80 देशों में कर चुके काम 

Murtikar Naresh Kumar Kumawat: मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत अब तक हजारों मूर्तियां बना चुके हैं. वे भारत समेत करीब 80 देशों में 200 से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं. देशभर में वे नमो घाट से लेकर कबीर चौराहा, परशुराम मूर्ति, भगवान राम और निषाद राज की इकलौती मूर्ति और दुनिया की सबसे ऊंची भगवान शंकर की मूर्ति समेत 3000 से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं.

मूर्तिकार नरेश कुमावत मूर्तिकार नरेश कुमावत
हाइलाइट्स
  • देश-विदेश में मिलने लगा था काम 

  • तीन पीढ़ियां हैं मूर्तिकला में 

  • बचपन से ही करना चाहते थे क्रिएटिव काम 

हिंदू धर्म में, विष्णु पुराण में समुद्र मंथन का जिक्र मिलता है. इसकी वजह से ही देवियों और स्वर्गदूतों का जन्म हुआ था. साथ ही अमृत के रूप में जाना जाने वाला अमरता का दिव्य अमृत भी इसी से निकला था. ऐसे में, जाने माने मूर्तिकार नरेश कुमावत ने जब नए संसद भवन के अंदर 'समुद्र मंथन' बनाया तो ये लोक कल्याण के लिए विचारों के मंथन का प्रतीक था. हालांकि, एक कलाकार के रूप में नरेश कुमार कुमावत के लिए ये एक सपने के पूरा होने जैसा था. राजस्थान के बिट्स पिलानी से ताल्लुक रखने वाले मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत (Murtikar Naresh Kumar Kumawat) अब तक हजारों मूर्तियां बना चुके हैं. इतना ही नहीं करीब 80 देशों में वे 200 से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं. 42 साल के नरेश कुमावत अब तक नमो घाट से लेकर कबीर चौराहा, परशुराम मूर्ति, भगवान राम और निषाद राज की इकलौती मूर्ति और दुनिया की सबसे ऊंची भगवान शंकर की मूर्ति समेत 3000 से ज्यादा मूर्तियां बना चुके हैं. 

तीन पीढ़ियां हैं मूर्तिकला में 

मूर्तिकार नरेश कुमावत ने GNT डिजिटल को बताया कि उनकी तीन पीढ़ियां मूर्तिकला में हैं. उनके दादा और पिताजी भी देश के जाने माने नाम रहे हैं. उनके पिता ने अपने समय में बड़ी मूर्तियों को 3D शक्ल दी थी. ये उस वक्त काफी नया कॉन्सेप्ट हुआ करता था. अपने बारे में बताते हुए नरेश कुमावत कहते हैं, “मैं राजस्थान के पिलानी से ताल्लुक रखता हूं. वहां मेरी तीसरी पीढ़ी इसी मूर्तिकला के काम को कर रही है. मेरे दादाजी हनुमान प्रसाद पत्थर तराशने में माहिर थे. वे सीकर घराने से थे. पूरे विश्व में जो एकलौता मंदिर है मां सरस्वती का उस मंदिर में मेरे दादाजी का काफी बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने काफी मूर्तियां बिरला (Birla’s) के लिए उकेरी. वहीं मेरे पिताजी माथु राम वर्मा पेशे से अध्यापक थे. उन्हें बसंत कुमार बिरला ने सबसे पहले मौका दिया था. दिल्ली की एयरपोर्ट के पास जो शिवमूर्ति है वो मेरे पिताजी का पहला काम था. जिस तरह से राजा रवि वर्मा ने हमारे देवी-देवताओं को 80 के दशक में 2D शक्ल दी थी उसी तरह से मेरे पिताजी ने बड़ी मूर्तियों को 3D शक्ल दी. ये देश की पहली बड़ी मूर्ति थी. हालांकि, उसके बाद पिताजी वापस पिलानी आ गए जहां उन्होंने फिर से अपना अध्यापन का काम शुरू किया.”

बचपन से ही करना चाहते थे क्रिएटिव काम 

नरेश कुमावत बताते हैं कि वे बचपन से ही कुछ क्रिएटिव काम करना चाहते थे. वे कहते हैं, “जब मैंने 12वीं कक्षा पास की तो मेरे दिमाग में भी था कि मैं डॉक्टर या इंजीनियर बनूं. तब मैंने प्री-मेडिकल की तैयारी की लेकिन वो परीक्षा मैं पास नहीं कर पाया. जिसके बाद पिताजी ने मुझे सलाह दी कि मैं बीए कर लूं और बिरला जी के यहां नौकरी पर लग जाऊं. लेकिन मेरे प्लान कुछ और थे. मुझे करना था तो कुछ क्रिएटिव काम ही करना था. तो कहीं न कहीं मेरे खून में ये मूर्तिकला का काम था. मुझे सबसे पहला काम गुलशन कुमार की टी-सीरीज (Gulshan Kumar T-Series) जो फिल्म सिटी, नोएडा में है, वहां उस शंकर भगवान की मूर्ति पर काम करने का मुझे मौका मिला. उस वक्त मैं केवल काम करना सीख ही रहा था. वहां काम करने के हर दिन 60 रुपये मिलते थे. वहीं से आगे बढ़ते-बढ़ते नोएडा से लेकर दिल्ली तक में काम मिलने लगा.”

देश-विदेश में मिलने लगा था काम 

नरेश कुमार कुमावत बताते हैं कि उनके काम को देश-विदेश में पहचान मिल चुकी है. अपने शुरुआती काम का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, “इसी कड़ी में गुजरात के वडोदरा में मुझे काम मिला. वहां सुरसागर तालाब में 121 फीट ऊंची शंकर भगवान की मूर्ति बनानी थी. मुझे अपने पिताजी का मार्गदर्शन मिलता रहा, तब हमने इसका निर्माण शुरू कर दिया था. तब मुझे पता लगा कि मूर्तिकला में फाइन आर्ट्स का कोर्स होता है. उसपर मैंने फोकस किया. इस 121 फीट ऊंची मूर्ति का उद्घाटन 2001 में उस वक्त के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने किया था. ये अपने आप में मेरे लिए एक बड़ा काम था. उसके बाद मुझे मॉरीशस में काम करने का मौका मिला. वहां के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ नवीन चंद्र रामगुलाम उन्होंने मुझे उस काम के लिए प्रोत्साहित किया.” 

हमेशा मिलता रहा बड़ों का साथ 

अपने सफर के बारे में बात करते हुए नरेश कुमावत कहते हैं, “कुछ समय बाद मैंने अपना स्टूडियो नोएडा में बनाया और टेक्नोलॉजी की समझ पैदा की. मिराज ग्रुप के मदन पालीवाल जी ने मुझसे कहा कि एक 350 फीट ऊंची मूर्ति का निर्माण करना है. लेकिन वो काफी मुश्किल काम था. तब उसे बनाने के लिए नई मशीनों की जरूरत थी. ये मशीन कनाडा से आती थीं. मैंने इस बारे में मदन पालीवाल जी को बताया तो उन्होंने मुझे वो रकम दी और कहा कि मशीन खरीद लो. वो मेरे लिए एक सपने का पूरा हो जाना था. उस वक्त हालांकि, हमें वो मशीनें चलानी नहीं आती थीं. हमने तब एक ट्रेनर रखा जिन्होंने हमसे 15 दिन के 15 लाख रुपये लिए. लेकिन मैं चूंकि उस वक्त दूसरे काम में व्यस्त था तो मैंने एक लड़के को कहा कि वह इसे सीख ले. हालांकि, अमित ने बड़ी सूझबूझ से ट्रेनिंग के समय पर कुछ कैमरा लगा दिए थे और उसने वो सभी 14 दिन की ट्रेनिंग रिकॉर्ड की थी. आज हमारे पास उस तरह की 18 मशीनें हैं.”

बता दें, नरेश कुमावत ने दुनिया की सबसे ऊंची शंकर भगवान की मूर्ति बनाई है. ये मूर्ति राजस्थान के नाथवाड़ा में बनाई गई है, जिसे स्टेचू ऑफ बिलीफ (Statue of Belief) के नाम से जाना जाता है. इसके अंदर 4 एलिवेटर हैं, 90 फुट का चेहरा है, 1 आंख 18 फीट की है और 4 फीट का कॉर्निया है. ये मूर्ति आज की तारीख में 370 फीट की है. हाल ही में उन्होंने विजयवाड़ा में 125 फीट ऊंची बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की मूर्ति का निर्माण किया है. 

नई संसद भवन में काम करना कितना मुश्किल था?

नरेश कुमावत बताते हैं कि उनके लिए नए संसद भवन में काम करना आज तक का सबसे बड़ा ब्रेक है. हालांकि, इस दौरान ये कितना चैलेंज भरा था इसको लेकर उन्होंने GNT डिजिटल को बताया. वे कहते हैं, “सबसे बड़े ब्रेक की बात करूं, तो मेरे लिए नई संसद भवन (New Parliament Building) में काम करना आज तक का सबसे बड़ा काम था. वहां पर हमने 80 फुट लंबा और 9 फीट ऊंचा समुद्र मंथन का पैनल बनाया है. जो एक तरह से विश्व रिकॉर्ड है. पंचतत्व में इस तरह का पैनल पूरी दुनिया में कहीं नहीं है. इसके अलावा, न्यू पार्लियामेंट में 18-18 फीट के बाबा साहेब अंबेडकर और सरदार वल्लभ भाई पटेल के चित्र बनाए हैं. हालांकि, ये इतना आसान नहीं था. सबसे ज्यादा चैलेंजिंग काम नई संसद भवन में काम करना था. इसका कारण है कि वह पूरा बन चुका था, फ्लोरिंग वगैरह हो चुकी थी, तो उसमें 9 टन वजन की मूर्ति इंस्टाल करनी और बिना कुछ तोड़-फोड़ और नुकसान पहुंचाए, काफी मुश्किल था. फिर उसमें अल्टरेशन काफी बार हुए. लेकिन हमने इसे पूरा किया. ये दोनों आज संसद भवन की शोभा बढ़ा रहे हैं.” 

युवाओं को करना होगा कला के साथ टेक्नोलॉजी पर काम 

नए मूर्तिकारों के लिए सबसे जरूरी क्या है? इसे लेकर वे कहते हैं, “अब जो नए मूर्तिकार आ रहे हैं उनके लिए सबसे ज्यादा चैलेंजिंग है काम मिलना. साथ ही आपको आज के समय में टेक्नोलॉजी के साथ चीजों को ब्लेंड करना आना चाहिए. क्योंकि मूर्तिकार को अपनी कला के साथ टेक्नोलॉजी के साथ तालमेल बिठाना आना चाहिए. इससे सफलता और काम आसानी से मिल सकेगा. उनके लिए मेरा यही मैसेज है कि ये दौर रीयलिस्टिक आर्ट का समय है. उसी पर फोकस करें.” 

मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत आखिर में बताते हैं कि 42 साल की उम्र में भी वे काफी एक्टिव महसूस करते हैं. इन मूर्तियों के अलावा वे 300 से ज्यादा शहीदों की मूर्तियां उनके परिवारों को कॉम्प्लिमेंट्री बनाकर दे चुके हैं. वे इसे एक तरह से आशीर्वाद की तरह लेते हैं. आज उनके साथ 300 से ज्यादा वर्कर्स जुड़े हुए हैं. 

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