
भारत को हाल ही में, जम्मू और कश्मीर में अपना पहला लिथियम रिजर्व मिला था और अब कुछ ही महीनों बाद, राजस्थान के डेगाना (नागौर) में इस महत्वपूर्ण खनिज का एक और भंडार पाया गया है. बताया जा रहा है कि यह नया रिजर्व जम्मू और कश्मीर में पाए गए रिजर्व से काफी बड़ा है.
इस रिजर्व के मिलने से भारत को कई तरह से फायदा हो सकता है क्योंकि लिथियम को सफेद सोना कहा जाता है. जी हां, लिथियम की मांग दुनियाभर में है और अब तक चिली और ऑस्ट्रेलिया इस मामले में सबसे आगे थे. भारत को लिथियम को आयात करने के लिए बहुत ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती थी.
लिथियम क्या है?
लिथियम एक अलौह धातु है, जिसका उपयोग मोबाइल-लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य चार्जेबल बैटरी बनाने में किया जाता है. और आज के डिजिटल युग में इसकी सबसे ज्यादा मांग है. क्योंकि जिस देश के पास लिथियम रिजर्व हैं वहां पर कई दूसरे संसाधनों को बचाया जा सकता है. सबसे अच्छी बात यह है कि नागौर और उसके आसपास के क्षेत्र की रेनवेत पहाड़ी में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त "सफेद सोना" पाया गया है, जहां से कभी टंगस्टन खनिज की देश में आपूर्ति की जाती थी.
पहले भी महत्वपूर्ण रहा है डेगाना
आजादी से पहले अंग्रेजों ने डेगाना में साल 1914 में टंगस्टन खनिज की खोज की थी. यहां उत्पादित टंगस्टन का उपयोग प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए युद्ध सामग्री बनाने के लिए किया गया था. इस जगह का उपयोग देश में ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्जिकल उपकरण बनाने के क्षेत्र में किया जाता था. उस समय यहां करीब 1500 लोग काम करते थे.
हालांकि, साल 1992-93 के दौरान चीन की सस्ती निर्यात नीति ने यहां से निकलने वाले टंगस्टन को महंगा कर दिया. समय के साथ यहां टंगस्टन का उत्पादन बंद कर दिया गया. हर समय आबाद रहने वाली और वर्षों तक टंगस्टन की आपूर्ति कर देश के विकास में सहायक रही यह पहाड़ी एक ही झटके में वीरान हो गई. लेकिन अब एक बार फिर इस जगह ने सोना उगला है.
कितना लिथियम खोजा गया है?
भले ही, राजस्थान में लिथियम के भंडार की सही मात्रा अभी तक सामने नहीं आई है, जीएसआई और खनन अधिकारियों ने दावा किया है कि इन भंडारों में मौजूद लिथियम की मात्रा का उपयोग भारत की कुल मांग के 80 प्रतिशत को पूरा करने के लिए किया जा सकता है.
सरकार के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में 5.9 मिलियन टन लिथियम की खोज की गई थी. ये भंडार लिथियम के लिए चीन पर भारत की निर्भरता को कम करने में बहुत मदद करेंगे. आज की तारीख में भारत लीथियम के लिए चीन पर निर्भर है. हालांकि, राजस्थान में इस रिजर्व की खोज के साथ, यह माना जाता है कि चीन का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा.
आधुनिक दुनिया में लिथियम का महत्व
बैटरी से चलने वाले प्रत्येक उपकरण को दुनिया की सबसे हल्की और सबसे नरम धातु लिथियम की जरूरत होती है. यह इतना नरम होता है कि चाकू से काट सकते हैं और इतना हल्का है कि पानी में डालने पर यह तैरता है. लिथियम केमिकल एनर्जी स्टोर करता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है.
हर चार्जेबल इलेक्ट्रॉनिक और बैटरी से चलने वाले गैजेट में लिथियम होता है. वैश्विक मांग के कारण इसे व्हाइट गोल्ड भी कहा जाता है. एक टन लिथियम की वैश्विक कीमत करीब 57.36 लाख रुपये है.