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कैंसर से मां को खोया, अब लद्दाख को कैंसर मुक्त बनाने में जुटे

डॉ नार्दन ओदजेर ने लद्दाख में सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ जंग सी छेड़ रखी है. उन्होंने अपने मां को इस बीमारी से मरते देखा और उसके बाद उन्होंने इससे जूझ रही हर महिला को इससे बचाने की ठानी. पढ़िए इनकी कहानी.

कैंसर से मां को खोया, अब लद्दाख को कैंसर मुक्त बनाने में जुटे कैंसर से मां को खोया, अब लद्दाख को कैंसर मुक्त बनाने में जुटे
हाइलाइट्स
  • सर्वाइकल कैंसर से मां को खोया

  • नौकरी छोड़ जनहित के लिए वापस आए

  • कैंसर से महिलाओं को बचाने की ठानी

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सर्वाइकल कैंसर पूरी दुनिया में प्रजनन के लिए सक्षम महिलाओं में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है. महिलाओं में होने वाला ये चौथा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है. लद्दाख जैसे इलाके में खासतौर पर यहां के ग्रामीण इलाकों में हजारों महिलाएं जानकारी ना होने के कारण कैंसर से कारण मर जाती है. इसी बात से प्रभावित होकर लद्दाख की नुब्रा घाटी में रहने वाले डॉ नार्दन ओदजेर ने लद्दाख में सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ जंग सी छेड़ रखी है. 

सर्वाइकल कैंसर से मां को खोया 
दुनिया भर में जनवरी को कैंसर माह की तरह जाना जाता है. डॉ ओदजेर बताते ने पुडुचेरी में काम करना शुरू किया. इस बीच उन्हें फोन आया कि उनकी मां की तबीयत काफी खराब है. घर पहुंचे तो पता चला कि उन्हें पेट दर्द की शिकायत है. उसके बाद वो मां को दिल्ली दिखाने लेकर गए. लेकिन वहां डॉक्टरों ने बताया कि अब काफी देर हो चुकी है, क्योंकि सर्वाइकल कैंसर लीवर तक पहुंच चुका है, और आखिरकार वो अपनी मां को नहीं बचा पाए.  

नौकरी छोड़ जनहित के लिए वापस आए 
दैनिक भास्कर के हवाले से डॉ ओदजेर ने बताया कि मां हमेशा चाहती थीं कि मैं लद्दाख की महिलाओं के लिए काम करूं. मां की मृत्यु के बाद उन्होंने पुडुचेरी की नौकरी छोड़ी और नुब्रा घाटी के एक सरकारी अस्पताल में नौकरी जॉइन कर ली. यहां आकर उन्हें पता चला की कई यहां ऐसी महिलाएं हैं जो उनकी मां की तरह सर्वाइकल कैंसर से जूझ रही हैं. लेकिन हिचक के कारण वो इस बारे में किसी से बात नहीं कर पा रही हैं. 

एक और घटना ने बदली जिंदगी
अभी ये सब चल ही रहा था कि एक और घटना ने उनका जीवन बदल दिया. दरअसल एक दिन डॉ ओदजेर को नुब्रा के सुदूर गांव से एक मदद के लिए फोन आया. सोनम डोलमा नाम की एक लड़की थी जिसे कैंसर था. उसके परिवार वाले फंडिंग जुटाकर इलाज के लिए दिल्ली ले गए. लेकिन इलाज के कुछ दिनों बाद उसकी भी मौत हो गई. इस घटना ने मानो डॉ ओदजेर को हिला कर रख दिया. उसके बाद उन्होंने ये सब बदलने की ठानी.

कैंसर से महिलाओं को बचाने की ठानी
डॉ ओदजेर ने इस हादसे के बाद अपनी नौकरी छोड़ दी. उनका कहना है कि नौकरी के कारण उनकी पहुंच काफी सीमित हो गई थी. लेकिन वो चाहते थे कि महिलाओं को जागरूक किया जाए. डॉ ओदजेर ने लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन वुमन विंग के सहयोग से नुब्रा को तम्बाकू मुक्त इलाका बनाने में सफल हुए हैं. वह लद्दाख के 200 गावों में कैंसर, एल्कोहल और तंबाकू के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं.

स्क्रीन और ट्रीट पद्धति से होगी रोकथाम
साल 2010 में सिंगापुर से नुब्रा घूमने डॉक्टरों की टिम से डॉ ओदजेर की मुलाकात हुई. उनका काम देखने के बाद टीम ने उनकी मदद करने की ठानी. सिंगापुर के डॉक्टरों ने एक नेतृत्व परीक्षण शिविर में सिर्फ 20 महिलाएं आई. दूसरे साल दो हजार महिलाएं चैकअप के लिए आई. 

क्या है स्क्रीन और ट्रीट पद्धति?
10 से 15 डॉक्टरों की टीम सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए स्क्रीन और ट्रीट  पद्धति अपनाती है. इस पद्धति में पहले स्क्रीनिंग होती हा, फिर इलाज होता है. हर साल वह सिंगापुर के डॉक्टर्स की मदद से हजारों महिलाओं का वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं.