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अक्षय कुमार नहीं लखनऊ के अमित सक्सेना हैं पहले पैडमैन...2015 में शुरू किया प्रोजेक्ट 'हिम्मत'

डॉ अमित सक्सेना रोज नियम से घर सैनिटरी पैड्स लेकर निकलते हैं ताकि वो गांव या शहरी बस्तियों में जा कर महिलाओं को वो बांट सकें. साल 2015 में mestrual hyegine पर एक लेख पढ़कर अमित ने इस मुहिम की शुरुआत की.

हाइलाइट्स
  • 2015 में शुरू की थी मुहिम

  • अभियान का नाम रखा 'हिम्मत'

मर्द को दर्द नहीं होता !! लोगों को ऐसा कहते आपने सुना होगा पर लखनऊ के डॉ अमित सक्सेना इस कहावत को बदलना चाहते हैं. पिछले सात साल से महिलाओं में मेन्स्ट्रूएल हाइजीन(menstrual hygiene)पर 50 हजार से ज़्यादा महिलाओं को अमित न सिर्फ जागरुक कर चुके हैं बल्कि हर साल कुछ लड़कियों का अडॉप्शन (adoption) कराते हैं जिनके स्वास्थ्य और हाइजीन का खर्चा लोग उठा सकें. हम आपको मिलवाते हैं यूपी के पैडमैन Amit Saxena से जो समाज की भ्रांतियों को तोड़ने के लिए पहला ऐसा सैनिटेरी नैपकिन लेकर आए हैं जिस पर महिला की जगह पुरुष की तस्वीर बनी हुई है. अमित कहते हैं कि मर्द वही है जो महिलाओं के दर्द और तकलीफ़ को भी महसूस कर सके.

2015 में शुरू की थी मुहिम
साल 2018 में आयी फिल्म पैडमैन को देखकर लोगों को इस हकीकत का एहसास हुआ जो सबसे आस पास है. जो एक आम बात है. लेकिन लोग सामाजिक वर्जनाओं की वजह से उन पर बात नहीं करते. लेकिन उससे भी तीन साल पहले यानी 2015 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले अमित सक्सेना ने इसी के लिए जागरूकता की मुहिम शुरू की थी.

डॉ अमित सक्सेना का रोज़ का नियम है.घर से निकलते हैं तो पत्नी अर्चना उनको सैनिटरी पैड्स देती हैं ताकि वो गांव या शहरी बस्तियों में जा कर महिलाओं को वो बांट सकें. साल 2015 में mestrual hyegine पर एक लेख पढ़कर अमित को लगा कि माहवारी में गरीब और अशिक्षित महिलाओं को ज़्यादा तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके पास न तो सुविधाएं होती हैं न ही अपने इस अधिकार के बारे में वो किसी से बात कर पाती हैं. अमित ने अपनी पत्नी से बात की कि वो इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं. ये बात पत्नी से करने में ही उनको तीन दिन लग गए. 

अभियान का नाम रखा 'हिम्मत'
लेकिन अमित अपनी बात पर क़ायम रहे. उन्होंने पहले घर में काम करने वाली महिला के साथ जा कर उसके स्लम में सेनिटरी पैड बांटना शुरू किया. फिर धीरे धीरे महिलाओं की मदद होने लगी तो काम का दायरा बढ़ता गया. उन्होंने अपने अभियान को नाम दिया ‘हिम्मत’!! ताकि महिलाओं और लड़कियों को इस विषय पर बात कहने की हिम्मत दे सकें. धीरे धीरे लखनऊ के ग्रामीण इलाके और फिर अन्य ज़िलों में भी अमित मेन्स्ट्रूएल हाइजीन की बात समझाने के लिए जाने लगे. इस बीच ऐसे ऐसे अनुभव हुए जिससे अमित को लगा कि जो बात प्रकृति का नियम है उसके लिए महिलाओं को कितनी दिक़्क़तों का सामना करना पढ़ता है. अमित के लिए यक़ीन करना मुश्किल था कि जहां आज महिलाएं चांद पर पहुंच गयी हैं.  वहीं दूर दराज़ के गांव में लड़कियों को सिर्फ सैनिटरी पैड के लिए साइकिल चला कर 4-4 किलोमीटर तक जाना पड़ता था. 

अमित अब तक 50 हज़ार से ज़्यादा महिलाओं को माहवारी के समय होने वाली दिक्कतों और सैनिटरी नैपकिन की ज़रूरत पर काउन्सलिंग कर चुके हैं. अब कई लोग उनसे जुड़ रहे हैं. जिस गांव में अमित पहुंचते हैं वहां महिलाएं न सिर्फ़ ध्यान से उनकी बातें सुनती हैं बल्कि धीरे धीरे ये बातें समझ भी रही हैं.

क्या है periods adoption मुहिम?
इस बीच अमित ने अपने हिम्मत अभियान से कई नयी बातों को जोड़ा है. लोगों की मदद से हाल ही सैनिटरी नैपकिन लेकर आए हैं जिस पर उनकी खुद की तस्वीर बनी है.अमित कहते हैं कि ये दुनिया की पहली सैनीटरी नैपकिन है जिस पर किसी महिला की नहीं पुरुष की तस्वीर बनी है और उनका नम्बर भी लिखा है जिससे माहवारी के सम्बंध में टैबू को तोड़ा जा सके.डॉ अमित ने periods adoption जैसी अभिनव मुहिम शुरू की है. इसके तहत हर साल कुछ लड़कियों की माहवारी में ज़रूरत का खर्चा लोग उठाते हैं.अमित का कहना है कि एक साल तक उन लड़कियों का खर्चा उठाने के बाद उन लड़कियों को खुद इतनी हिम्मत मिलती है कि वो इस मामूली से खर्चे के लिए अपने घर के लोगों से कह सके.

कहते हैं कि अगर किसी अच्छे लक्ष्य के लिए काम करना शुरू करें तो धीरे धीरे लोग आपसे जुड़ते जाते हैं. अमित के साथ अब लोग जुड़ रहे हैं. लेकिन हिम्मत के लिए अमित गांव की ही किसी लड़की को ‘सखी’ बनाते हैं ताकि ये सिलसिला चलता रहे. यूपी के कई गांव में अमित के हिम्मत अभियान को देखा जा सकता है जहां हिम्मत सखी गांव की महिलाओं को जागरूक कर रही हैं.