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M Karunanidhi Birth Anniversary: 14 की उम्र में पढ़ाई छोड़ सियासत की दुनिया में रखा था कदम, बने 5 बार Chief Minister

M Karunanidhi Birth Anniversary: करिश्माई व्यक्तित्व, बहुमुखी प्रतिभा के धनी एम करुणानिधि (M Karunanidhi) ने अपनी जिंदगी में जो चाहा सब हासिल किया. जिस भी तरफ उन्होंने अपना रुख किया उस तरफ बस उन्हीं का बोलबाला रहा. अंतिम सांस तक राजनीति में समाए रहे. 

M Karunanidhi M Karunanidhi
हाइलाइट्स
  • करिश्माई व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे करुणानिधि

  • 94 साल की उम्र में दुनिया को कहा था अलविदा

एम करुणानिधि (M Karunanidhi) तमिलनाडु का एक ऐसा चेहरा जिसने राजनीति से लेकर फिल्मों की दुनिया तक अपनी अमिट छाप छोड़ी. दुनिया उनको सफल राजनेता, लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, प्रकाशक कार्टूनिस्ट और समाजसुधारक के रूप में जानती है. उनका पूरा नाम मुथूवेल करुणानिधि था. उन्हें लोग प्यार से कलाईनार यानी कला का विद्वान भी कहते थे. उन्होंने जब फ़िल्मों के लिए लिखना शुरू किया तो अपने लेखन शैली से तमिल फिल्म इंडस्ट्री में छा गए और जब सियासत की तो व्यक्तित्व ऐसा कि ताउम्र चुनाव नहीं हारे. पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और जब तक जिए राजनीति के केंद्र में रहे. उन्होंने जिस तरफ अपना रूख किया छा गए. कहा जाता है कि जहां वो होते थे सिर्फ वो ही होते थे बाकी उनके सामने सब फीके पड़ते थे. भले वो तमिलनाडु की राजनीति करते थे लेकिन भारत के पांच-पांच प्रधानमंत्री बनाने में उनकी अहम भूमिका रही. उन्होंने अपनी 94 साल की जिंदगी में इतनी उपलब्धियां हासिल की जिसके लिए एक आम मनुष्य को कई जन्म लेने पड़े. वो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.आज वो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके करिश्माई व्यक्तित्व के बारे में बारे में हमेशा से चर्चा होती है और आगे भी होती रहेगी.


एम करुणानिधि का फ़िल्मी करियर 

3 जून 1924 को तमिलनाडु के तिरुकुवालाई में उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ. अपनी पढ़ाई लिखाई उन्होंने यहीं से की. उनके बचपन का नाम दक्षिणमूर्ति था बाद में एक आंदोलन से प्रभावित होकर नाम बदल कर करुणानिधि रख लिया. 20 साल की उम्र में ही वे ज्यूपिटर पिक्चर्स जो फिल्में बनाती थी उससे बतौर लेखक जुड़ गए. उनकी पहली फ़िल्म राजकुमारी 1947 में रिलीज हुई और इसी फ़िल्म से उन्हें प्रसिद्धि मिली. उसके बाद नाम, रंगून राधा, राजा रानी, मदुरै मीनाक्षी, अबिमन्यु, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार समेत कई सुपरहिट फिल्में लिखी. 20 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और 87 साल की उम्र तक लिखते रहे. इस बीच में कई ब्लॉकबस्टर फिल्में करुणानिधि के कलम से निकली. उनकी अंतिम फ़िल्म Ponnar Shankar थी जो कि अप्रैल 2011 में रिलीज हुई थी. न सिर्फ उन्होंने फिल्मों के लिए लिखा बल्कि टीवी सीरियल के लिए भी स्क्रिप्ट और डायलॉग लिखे. इसके अलावा तमिल साहित्य में उन्होंने काफी योगदान दिया. कई किताबें, नोवेल्स, मंचीय नाटक, गीत और कविताएं भी लिखी. उन्हें दो बार 1971 और 2006 में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. उन्होंने अपनी जिंदगी में वो सब हासिल किया जो एक आम मनुष्य इच्छा रखता है. 

राजनीतिक करियर 

उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में ही राजनीति में कदम रखा और पूरी जिंदगी इसके केंद्र में रहे. हिंदी विरोधी और जातीय भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक बदलाव के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों में भाग लिया. करिश्माई व्यक्तित्व और ओजोस्वी भाषण देने की कला में निपुण करुणानिधि ने 17 साल की उम्र में ही एक छात्र संगठन बनाया. कहते हैं कि करुणानिधि राजनीति की दुनिया का ऐसा धुरंधर था जो सदियों में एक पैदा होता है. वो भले तमिलनाडु की राजनीति करते थे लेकिन धमक प्रधानमंत्री की कुर्सी तक थी. राजनीति की दुनिया में उनका कद कितना बड़ा था उसका अंदाजा आप इसी बात से लगाइए कि वो अपने 80 साल के राजनीतिक करियर में कभी चुनाव नहीं हारे. यह बेमिसाल है. 1940 के दशक में करुणानिधि की मुलाकात सीएन अन्नादुरै से हुई. अन्नादुरै ने पेरियार ईवी रामास्वामी की पार्टी द्रविडार कझगम से अलग होकर नई पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कझगम(डीएमक) बनाई. उस समय करुणानिधि 25 साल के ही थे और उन्हें डीएमके की प्रचार समिति में शामिल किया गया. पहली बार 33 साल की उम्र में कुलिथलाई से 1957 में चुनाव लड़े और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 13 बार विधायक बने. 1967 में उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया. सीएन अन्नादुरै की मौत के बाद पहली बार 1969 में वो डीएमके के अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री बने और उनका पहला कार्यकाल मात्र 2 साल का रहा. दूसरी बार 1971 में मुख्यमंत्री बने और 1976 तक बने रहे. फिर 1989 में तीसरी बार, 1996 में चौथी बार और 2006 में पांचवी बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने आखिरी चुनाव 2016 में लड़ा था. यानी देहांत से 2 साल पहले. अपनी अंतिम सांस तक वे डीएमके के अध्यक्ष पद पर बने रहे. अपने कार्यकाल में कई उल्लेखनीय काम उन्होंने किया. राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत करने में उनका अतुलनीय योगदान है. उनका नाम तमिलनाडु की राजनीति में स्वर्णीम अक्षरों में लिखा जाएगा. 

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तीन शादियां की

करुणानिधि का निजी जीवन भी काफी दिलचस्प रहा. उन्होंने तीन शादियां की. उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती दूसरी का दयालु अम्माल और तीसरी का रजती अम्माल है. करुणानिधि के चार बेटे और 2 बेटियां हैं. 1944 में करुणानिधि की मुलाकात पद्मावती से हुई थी. इसके बाद यह मुलाकात धीरे धीरे धीरे प्यार में बदल गया और दोनों ने 1946 में शादी कर ली. लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. शादी के मात्र 2 साल बाद 1948 में ही बीमारी के कारण पद्मावती का देहान्त हो गया. इसके 4 साल के बाद करुणानिधि ने दूसरी शादी दयालु अम्मल से की. दयालु अम्मल से करुणानिधि के एक बेटी समेत चार बच्चे हुए. उन्हीं में से एक एमके स्टालिन करुणानिधि के उत्तराधिकारी बने और अभी राज्य के मुख्यमंत्री हैं. एमके स्टालिन का जन्म 1953 में हुआ और कहा जाता है कि उनके जन्म के चार दिन बाद सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन का निधन हो गया इसलिए करुणानिधि ने उनका नाम स्टालिन रखा. 1960 के आसपास एक चुनाव प्रचार के दौरान करुणानिधि की मुलाकात रजती से हुई. रजती करुणानिधि से उम्र में 21 साल छोटी थी. लेकिन प्यार उम्र कहां देखता है. दोनों ने बाद में शादी कर ली. रजती से करुणानिधि को एक बेटी हुई. जिनका नाम एमके कनिमोझी है. 

काला चश्मा और पीला गमछा बन गई थी पहचान

करुणानिधि घर से बाहर काला चश्मा पहनकर आए और कंधे पर पीला गमछा ओढ़कर ही निकलते थे. सालों तक इस बात से लोग अनजान रहे कि आखिर इसके पीछे का क्या राज है. काला चश्मा पहनने के पीछा 1960 में हुआ एक हादसा था. इस हादसे में उनकी बाईं आंख में काफी ज़ख्म हुआ और इसके बाद से वो 46 साल तक काला चश्मा ही पहने नजर आए. पीला गमछा ओढ़ने के पीछे कई वजहें लोग बताते हैं. कुछ लोग इसे ज्योतिष से जोड़ कर देखते थे. हालांकि करुणानिधि ने हमेशा इस बात से इनकार किया. 

विवादों से भी रहा गहरा नाता

एक बार उन्होंने रामसेतु और भगवान राम के बारे विवादित बयान दिया था जिसकी वजह से पूरे देश में काफी घमासान हुआ. उन्होंने उस वक्त कहा था कि लोग कहते हैं कि 17 लाख पहले कोई शख्स था , जिसका नाम राम था. कौन हैं वो और वो किस कॉलेज से पढ़े थे ? इस बात का कोई सबूत है. करुणानिधि पर राजीव गांधी की हत्या करने वाले के साथ संबंध के भी आरोप लगे. राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जस्टिस जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम को बढ़ावा देने का आरोप करुणानिधि पर लगा.