यूपी के प्रतापगढ़ का एक लड़का रोजी-रोटी की जुगाड़ में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचा. शराब कंपनी में नौकरी मिली. फिर शराब की अपनी दुकान मिल गई. लेकिन इस बीच वो लड़का संघ से जुड़ा और शराब की दुकान चलाना छोड़ दिया. गांव लौट आया. लेकिन घर की माली हालत की वजह से एक बार फिर भोपाल पहुंचा और कपड़ा मिल में काम करने लगा. इस दौरान वो लड़का ट्रेड यूनियन से जुड़ा. फिर धीरे-धीरे सियासत में आगे बढ़ता गया और एक दिन ऐसा आया, जब वो सूबे के सबसे बड़े सियासी पद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा. उस शख्स का नाम बाबूलाल गौर था. चलिए आपको उनकी पूरी कहानी बताते हैं.
कैसे पड़ा बाबू लाल गौर नाम-
बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के नौगीर गांव में हुआ था. बाबूलाल का असली नाम बाबूराम यादव था. जब वो स्कूल में पढ़ते थे तो उनकी क्लास में दो बाबूराम यादव थे. इसलिए एक दिन टीचर ने कहा कि मेरी बात गौर से सुनो, जो भी मेरे सवाल का सही जवाब देगा. उसका नाम बाबूराम गौर कर दिया जाएगा. इसके बाद बाबूराम यादव ने सवाल का सही जवाब दिया और उनका नाम बाबूराम गौर हो गया. लेकिन जब वो भोपाल गए तो लोग उनको बाबूलाल कहने लगे. इस तरह से उनका नाम बाबूराम यादव से बाबूलाल गौर हो गया.
16 साल की उम्र में संघ से जुड़े-
बाबू लाल गौर रोजी-जोटी की तलाश में भोपाल पहुंचे. उनको भोपाल में एक शराब कंपनी में नौकरी मिल गई. कुछ दिनों बाद उनकी अपनी शराब की दुकान हो गई. घर-परिवार भी ठीक-ठाक चलने लगा. लेकिन इस बीच उनकी संघ से नजदीकियां बढ़ने लगी. 16 साल की उम्र में साल 1946 में उन्होंने संघ की शाखाओं में जाना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने शराब की दुकान चलाना छोड़ दिया और अपने घर प्रतापगढ़ लौट गए. लेकिन घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने की वजह से एक बार फिर भोपाल गए और कपड़ा मिल में काम करने लगे.
सियासत में बाबूलाल गौर का सफर-
कपड़ा मिल में काम करते समय वो ट्रेड यूनियन से जुड़ गए. इसके बाद उन्होंने सियासत में कदम रखा. साल 1956 में पार्षद का चुनाव लड़ा. लेकिन जीत नहीं मिली. इसके बावजूद वो लगातार काम करते रहे. साल 1972 में जनसंघ ने उनको भोपाल की गोविंदपुरा सीट से विधानसभा का टिकट दिया. लेकिन इस बार भी उनको जीत नहीं मिली. हालांकि इसके खिलाफ वो कोर्ट चले गए. कोर्ट में जीत मिली तो साल 1974 में दोबारा चुनाव हुए और बाबू लाल गौर पहली बार विधायक चुने गए. इसके बाद वो पीछे मुड़कर नहीं देखा.
साल 1977 में वो गोविंदपुरा से फिर विधायक चुने गए. इसके बाद साल 2018 तक लगातार 87 बार बाबूलाल गौर इस विधानसभा सीट से विधायक रहे. साल 2018 में गोविंदपुरा सीट से उनकी बहू कृष्णा गौर को टिकट दिया गया.
कैसे CM बने बाबूलाल गौर-
साल 2003 में उमा भारती मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन एक मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी होने की वजह से साल 2004 में उनको पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद बीजेपी में सीएम नाम के लिए चर्चा होने लगी. उमा भारती ने बाबूलाल गौर का नाम आगे किया. उनके नाम पर सहमति बन गई. इस तरह से 23 अगस्त 2004 को बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. वो इस पद पर 29 नवंबर 2005 तक बने रहे.
बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद भी मंत्री बनने वाले नेता रहे. साल 2013 में बीजेपी सत्ता में आई तो बाबूलाल गौर को मंत्री बनाया गया. 89 साल की उम्र में 21 अगस्त 2019 को बाबूलाल गौर का निधन हो गया.
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