
हिंदू मैरिज एक्ट के तहत जैन समुदाय को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बाद भी जैन समुदाय हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के दायरे में आता है. इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने इंदौर की फैमिली कोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें फैमिली कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत जैन समुदाय से जुड़े एक तलाक के मामले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
क्या था पूरा मामला-
इंदौर में जैन समुदाय के 37 साल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर और उसकी 35 साल की पत्नी आपसी सहमति से तलाश चाहते थे. इसके लिए दोनों ने हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-बी के तहत तलाक लेने की फैमिली कोर्ट में अर्जी दायर की. लेकिन फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने इस अर्जी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
याचिकाकर्ता की शादी साल 2017 में हुई थी. साल 2024 में कपल ने फैमिली कोर्ट में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक की मांग की थी.
फैमिली कोर्ट ने क्या कहा था-
फैमिली कोर्ट के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि जैन समुदाय को साल 2014 में अल्पसंख्यक का दर्जा मिला है. अब इस धर्म के मानने वालों को दूसरे धर्म से संबंधित व्यक्तिगत कानून का फायदा देना सही प्रतीत नहीं होता है. कपल ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
HC में क्या था कपल का तर्क-
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जैन कपल ने दलील दी कि उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज से शादी की है. इसके बाद हाईकोर्ट ने इस अपील को मंजूर कर लिया.
HC ने क्या दिया फैसला-
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को अनुचित करार दिया. हाईकोर्ट की बेंच ने अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश को निर्देश दिया कि जैन समुदाय के कपल की तलाक की अर्जी पर कानून के मुताबिक कार्यवाही करें. हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जैन समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देने के लिए 11 साल पहले जारी की गई अधिसूचना किसी भी मौजूद कानून के प्रावधानों को न तो संशोधित या अमान्य करती है, न ही इन प्रावधानों का स्थान लेती है. बेंच ने कहा कि भारतीय संविधान के संस्थापकों और विधायकिका ने साझा विवेक के जरिए हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय को हिंदू मैरिज एक्ट के दायर में रखा है.
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