माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का गुरुवार देर रात कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया. बांदा जेल में बंद मुख्तार की तबियत खराब होने के बाद उसे दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. उत्तर प्रदेश सरकार ने मऊ, गाजीपुर में धारा 144 लागू कर दी है, जबकि गाज़ीपुर, बलिया और प्रयागराज सहित कई क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है, इन इलाकों में मुख्तार अंसारी का काफी प्रभाव था.
बता दें, मुख्तार (Gangster-politician Mukhtar Ansari) ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया था कि उसे जेल में धीमा जहर दिया जा रहा है. समाजवादी पार्टी ने अंसारी की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग की है.
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में हुआ था मुख्तार का जन्म
मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को हुआ था. उसके पिता का नाम सुबहानउल्लाह अंसारी और मां का नाम बेगम राबिया था. मुख्तार अंसारी तीन भाईयों में सबसे छोटा है. उसकी पत्नी का नाम अफशां अंसारी है. मुख्तार के दो बेटे अब्बास अंसारी व उमर अंसारी हैं.
पूर्वांचल की राजनीति में था मुख्तार का रुतबा
पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल. 26 लोकसभा और 130 विधानसभा सीटों वाले पूर्वांचल का देश की राजनीति में बेहद अहम रोल है. इसी पूर्वांचल में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और मऊ में एक दौर था जब मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी. इन इलाकों में मुख्तार अंसारी और अंसारी परिवार का इन इलाकों में कितना दबदबा है ये इस बात से समझ लीजिए कि यूपी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव और मायावती ने उसे सिर आंखों पर बैठया. उसे गरीबों का मसीहा तक बताया. ये वही मुख्तार अंसारी है जिसके खानदान से कई शख्सियतों के नाम जुड़े हैं.
मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी महात्मा गांधी के करीबी हुआ करते थे. यही नहीं अपने जमाने के मशहूर सर्जन मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने. मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान महावीर चक्र विजेता रहे हैं. ब्रिगेडियर उस्मान 1947 की नौशेरा की जंग में शहीद हुए थे. यही नहीं मुख्तार के पिता भी कद्दावर नेता थे. कभी मुख्तार अंसारी के घर पर फरियादियों की भीड़ लगी रहती थी.
मुख्तार अंसारी का कालेज स्टूडेंट से माफिया बनने का सफर
90 के दशक में ये वो दौर था जब पूर्वांचल में एक नये तरह का अपराध सिर उठा रहा था. रेलवे शराब और दूसरे सरकारी ठेके हासिल करने की रेस में अपराधियों के कई गैंग उभरने लगे थे. पूर्वांचल में माफिया डॉन और बाहुबली तेजी से उभर रहे थे. गाजीपुर के कॉलेज में पढ़ाई कर रहे मुख्तार को इस ताकत का अंदाजा लग चुका था. उन्हीं दिनों मुख्तार ने एक बाहुबली मखनू सिंह से हाथ मिला लिया. मखनू सिंह पूर्वांचल के दिग्गज नेता हरिशंकर तिवारी का खास हुआ करता था. तभी मखनू सिंह की त्रिभुवन सिंह के साथ एक जमीन पर कब्जे को लेकर गैंगवार में लाशें गिरने का सिलसिला शुरू हो गया. तभी कोर्ट परिसर में हुए एक गोलीकांड के बाद एक नाम उभर कर आया. नाम था मुख्तार अंसारी. इसमें मखूनी के दुश्मन साहिब सिंह की गोली लगने से हत्या हुई थी. कत्ल के बाद जो नाम सुर्खियों में आया वो मुख्तार का था. कहा जाता है वो गोली मुख्तार ने चलाई थी, लेकिन किसी ने उसे गोली चलाते हुए देखा भी नहीं था. सिंगल गन शॉट में कत्ल का यह केस बेहद रहस्यमय और हैरान करने वाला था. कुछ दिन बाद पुलिस लाइन के अंदर खड़े हुए एक दीवान की इसी अंदाज में हत्या हुई थी. नाम था राजेन्द्र सिंह. इस हत्या के बाद भी जो नाम सामने आया वो मुख्तार का ही था. यहीं से शुरू हुआ मुख्तार अंसारी के पूर्वांचल के बाहुबली और यूपी के माफिया डॉन बनने का सिलसिला.
मुख्तार के रसूख के चलते शुरू हुआ था भाई अफजाल के चुनाव जीतने का सिलसिला
90 के दशक में पूर्वांचल के एक बड़े क्षेत्र वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, माऊ और बलिया में उभरते हुए बाहुबली मुख्तार अंसारी का दबदबा कायम हो चुका था और वो प्रदेश की राजनीति में कई नेताओं की नजर में आ गया था. धीरे धीरे राजनीति में उसकी पूछ बढ़ रही थी. साल 1985 में मुख्तार अंसारी का भाई अफजाल अंसारी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे. उस समय मुख्तार का असर कुछ ऐसा था कि पहली बार में ही अफजाल अंसारी को जीत मिल गई. इसके बाद 1989 के चुनाव में भी अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की. अफजाल अंसारी ने भले ही मुख्तार से पहले राजनीति में एंट्री ली लेकिन उनकी दोनों जीतों में मुख्तार के रसूख और रुतबे का बड़ा हाथ था.
मुख्तार अंसारी का सियासी सफर
मुख्तार अंसारी ने अपना सियासी सफर बसपा से शुरू किया था. मुख्तार 1996 में पहली बार विधानसभा चुनाव में बसपा के उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीत हासिल की. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर 2002 और 2007 में चुनाव जीता. इसके बाद 2012 में अंसारी कौमी एकता दल का गठन करके चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल की. 2017 विधानसभा चुनाव में बीएसपी से उतरे और मोदी लहर में भी जीतने में कामयाब हुए. साल 2022 में उसने सियासत से दूरी बनाते हुए अपने बेटे अब्बास अंसारी को इसमें उतारा और उसने भी जीत दर्ज की. हालांकि अब्बास अंसारी इस समय सलाखों के पीछे है.
मुख्तार अंसारी की क्राइम कुंडली
मुख्तार अंसारी को यूपी के गैंगस्टर की लिस्ट में रखा गया था. इंटर स्टेट 191 गैंग गिरोह के सरगना मुख्तार पर वाराणसी, गाजीपुर समेत कई स्थानों पर संगीन धाराओं में 61 केस दर्ज थे. मुख्तार अंसारी के खिलाफ 1988 में पहली बार क्रिमिनल केस दर्ज हुआ था. मुख्तार को 8 मामलों में सजा भी सुनाई जा चुकी थी. कृष्णानंद राय हत्याकांड, राजेंद्र सिंह हत्याकांड, वशिष्ठ तिवारी हत्याकांड में मुख्तार अंसारी को मुख्य आरोपी बनाया गया.