रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान 20 हजार से भी ज्यादा भारतीय छात्र और नागरिक यूक्रेन में फंसे हुए हैं. भारतीयों को बाहर निकालने के लिए जो अन्य देश भारत की मदद कर रहे हैं उसमें पोलैंड भी शामिल है. पोलैंड के लोग जामनगर के राजा जाम साहब दिग्विजय सिंह का प्यार और उनकी मदद को कभी भूल नहीं सकते हैं. दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड के जो बच्चे अनाथ हुए थे और जिनके पास रहने के लिए घर नहीं थे ऐसे हजारों बच्चों के लिए दिग्विजय सिंह मसीहा बनकर सामने आए थे.
दरअसल, जब दुनिया के कोई भी देश पोलैंड के अनाथ मासूमों को सहारा नहीं दे रहे थे उस वक्त जामनगर के राजा दिग्विजय सिंह ने इन्हें सहारा दिया था. इन बच्चों को राजा न केवल जामनगर लेकर आए बल्कि वह अपनी संस्कृति को न भूलें इसलिए उन्होंने इन बच्चों के लिए ऐसे स्कूल की स्थापना की जहां केवल पोलेंड की भाष, पहनावा और संस्कृति सिखाई जाती है.
मासूमों को जब भारत ने दी थी पनाह
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर और स्टालिन ने पोलैंड पर हमला किया था. पोलैंड खंडहर में तबदील हो गया था. तब पोलैंड के लोगों ने ब्रिटिश सरकार को अपील की थी और पोलैंड के अनाथ बच्चों को उनके देश में रखने के लिए मांग की थी. उस वक्त जामनगर के राजा दिग्विजय सिंह ब्रिटिश इम्पीरियल वॉर कैबिनेट के सदस्य थे. जब उनको इस मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने इन बच्चों को जामनगर में रखने का फैसला लिया.
4 साल तक राजा दिग्विजय ने रखा बच्चों का ख्याल
हालांकी उस वक्त भारत आजाद नहीं हुआ था. इसके बावजूद जाम दिग्विजय सिंह ने खुद के खर्च पर एक हजार बच्चों के रहने, खाने और पढ़ाई के लिए एक कैंपस तैयार किया, जोकी जामनगर से नजदीक बालाछड़ी में था. यहीं पर इन बच्चों को कुछ सालों तक रखा गया और उनकी पढ़ाई, खेलकुद, खाने जैसी सभी चीजों का इंतजाम किया. यह मासूम बच्चे यहां 1942 से 1946 यानी चार साल तक रहे. युद्ध खत्म होने के बाद खुद राजा उन बच्चों को अपने जहाज में पोलैंड छोड़कर आए.
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