
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र (Maharashtra) में तीन दलों के गठबंधन वाली महायुति सरकार (Mahayuti Government) में 'ऑल इज वेल' नहीं है. इसके संकेत पहले से मिल रहे हैं. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (CM Devendra Fadnavis) और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के बीच शीतयुद्ध चल रहा है. सीएम की बुलाई बैठकों में शिंदे हिस्सा नहीं ले रहे हैं. अब शिंदे के एक बयान ने महायुति गठबंधन के भीतर दरार की अटकलों को हवा दे दी है. दरअसल, शिंदे ने कहा है कि मुझे हल्के में मत लो, मैंने सरकार बदल दी है.
उन्होंने नागपुर में अपना 'टांगा पलटने'वाला बयान दोहराया. पत्रकारों ने शिंदे से जब उनके इस बयान के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने कहा, ये तो मैंने पहले ही कहा है, जिन्होंने मुझे हल्के में लिया है... मैं एक कार्यकर्ता हूं, सामान्य कार्यकर्ता हूं. लेकिन बाला साहेब और दिघे साहेब का कार्यकर्ता हूं. ये समझ के मुझे सबने लेना चाहिए और इसलिए जब हल्के में लिया तो 2022 में टांगा पलटी कर दिया. सरकार को बदल दिया और हम आम जनता की इच्छाओं की सरकार लाए. इसलिए मुझे हल्के में मत लेना, ये इशारा जिन्हें समझना है वे समझ लें. शिंदे ने कहा, विधानसभा में अपने पहले भाषण में मैंने कहा था कि देवेंद्र फडणवीस जी को 200 से ज्यादा सीटें मिलेंगी और हमें 232 सीटें मिलीं. इसलिए मुझे हल्के में न लें, जो लोग इस संकेत को समझना चाहते हैं, वे इसे समझें और मैं अपना काम करता रहूंगा.
एकनाथ शिंदे के लिए बड़ा झटका
मुख्यमंत्री कार्यालय ने एकनाथ शिंदे के कार्यकाल में पारित हुए जालना जिले के खारपुड़ी के 900 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दिए हैं. एक तरीके से यह एकनाथ शिंदे के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. शिवसेना-बीजेपी के बीच संबंध नाजुक मोड़ लेते नजर आ रहे हैं. लेकीन यह कोई पहली बार नहीं है, जब मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे की नाकाबंदी की हो. अब दोनों अपनी-अपनी ताकत दिखाने के मौके ढूंढते नजर आ रहे हैं. लेकिन जिस तरीके से मुख्यमंत्री कार्यालय ने सभी तरफ से एकनाथ शिंदे और उनके मंत्रियों की नाकाबंदी की है, उसे देखते हुए इनके संबंधों मे सुधार आने की संभावना कम दिख रही है.
एकनाथ शिंदे को पहला झटका कब मिला
महायुति सरकार में आने के बाद फडणवीस ने एसटी महामंडल के लिए जो 1310 बसेस कॉन्ट्रॅक्ट पर लेने का निर्णय था, उसे रद्द कर दिया. कुछ खास कॉन्ट्रेक्टर्स के लिए टेंडर की प्रक्रिया में बदलाव करने का आरोप लगा था. इसकी वजह से एसटी को कम से कम दो हजार करोड़ रुपए का नुकसान होने का अंदाजा था. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री रहते समय उनके करीबी महाड़ के विधायक भरत गोगावले को एसटी महामंडल का अध्यक्ष बनाया गया था. इसके बाद गोगावले ने 1310 बस कॉन्ट्रेक्ट पर लेने का निर्णय लिया था. लेकीन फडणवीस ने पूरी प्रक्रिया रद्द करने के साथ नए सिरे से और पारदर्शकता से प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा था.
गार्डियन मिनिस्टर्स की नियुक्ती में भी एकनाथ शिंदे को झटका
देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार दावोस गए थे. महाराष्ट्र के लिए बडी इन्वेस्टमेंट लाने का प्लान था. लेकीन जाने से पहले उन्होंने महाराष्ट्र के हर जिले के लिए गार्डियन मिनिस्टर नियुक्त करने के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इसमें एकनाथ शिंदे के कैबिनेट मिनिस्टर और रायगढ़ के नेता भरत गोगावले, नासिक के मालेगाव से मंत्री बने दादा भुसे को इस लिस्ट में शामील नहीं किया गया. रायगढ़ में फडणवीस ने राष्ट्रवादी प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे की बेटी और मंत्री आदिती को गार्डियन मिनिस्टर बनाया. नासिक में होनेवाले कुंभ मेले के पार्श्वभूमीवर यहां की जिम्मेदारी गिरीश महाजन को सौंपी गई. इससे नाराज हुए एकनाथ शिंदे अपने पैतृक गांव चले गए. उनकी नाराजगी की गूंज दावोस तक पहुंची और मुख्यमंत्री फडणवीस ने रायगढ़ और नासिक के गार्डियन मिनिस्टर्स के नाम को स्थगित कर दिया. लेकीन फडणवीस ने अभी तक वहां पर नए नामों की घोषणा नहीं की है.
उद्योगमंत्री उदय सामंत ने भी जाहीर की नाराजगी
उदय सामंत शिंदे के करीबी मंत्री हैं लेकीन उनके विभाग के अफसर ‘ऊपर से आनेवाले’ ऑर्डर्स के आधार पर काम करने लगे हैं. ऐसा सूत्रों का मानना है. कुछ पॉलिसी डिसीजन भी उदय सामंत से चर्चा न करते हुए लिए जाने लगे. इससे नाराज होकर उदय सामंत ने उद्योग विभाग के प्रधान सचिव और सीईओ को लेटर लिखकर नाराजगी जताई. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक लिख दिया की कोई भी निर्णय लेने से पहले उद्योग विभाग के सचिव, सीईओ और बाकी अधिकारी उनसे सलाह कर लें. उसके बिना कोई भी निर्णय करना गलत ठहराया जाएगा.
पड़ता है करोड़ों का बोझ
लाडली बहना योजना के कारण महाराष्ट्र सरकार के तिजोरी पर हर साल 46 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है. फिर मुफ्त सिलेंडर औ बाकी चीजें जोड़ी जाएं तो राज्य को पटरी पर लाना बड़ा मुश्कील है. इसलिए सीएम फडणवीस ने उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में शुरू हुई शिवभोजन थाली और एकनाथ शिंदे की ओर से शुरू की गई आनंदाचा शिधा इन दोनों योजनाओं की समीक्षा करने के लिए कहा है. हालांकी दोनों योजनाए बंद हो जाती हैं तो राज्य का कम से कम 500 करोड़ रुपए बच जाएगा.
ओएसडी और पीए की नियुक्ति रोक दी
जब मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो पीए और ओएसडी बनने के लिए अधिकारियों मे होड़ लग गई. लेकिन सभी शिफारसे सीएम ऑफिस ने रोक कर रखी थी. किसी भी अधिकारी या प्राइवेट व्यक्ति की पृष्ठभूमि कि जांच नहीं होती, तब तक किसी को भी पीए नियुक्त करने का अधिकार नहीं था. उन फाइलों पर हस्ताक्षर ही नहीं हुए थे. इस वजह से बहुत से मंत्री और उनके खास नाराज हो गए. उन्होंने इसे अपने अधिकार में हस्तक्षेप की तरह देखना शुरू किया. हालांकि कोई भी आगे आकर इसका विरोध नहीं कर सका.
फडणवीस और शिंदे का अलग-अलग वॉर रूम
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य की प्रमुख परियोजनाओं की निगरानी के लिए 'वॉर रूम' बनाया है. उनके अलावा दोनों डिप्टी सीएम-अजीत पवार और एकनाथ शिंदे ने उन परियोजनाओं पर नजर रखने के लिए अपने अलग वॉर रूम स्थापित किए हैं, जो उन जिलों के अंतर्गत आती हैं, जिनके वे संरक्षक मंत्री हैं. दोनों अपने वॉर रूम से उन विभागों के कामकाज की निगरानी भी करते हैं, जो उनकी संबंधित पार्टियों के मंत्रियों द्वारा संभाले जाते हैं. मुख्यमंत्री राहत कोष से इतर, शिंदे ने राज्य सचिवालय में एक चिकित्सा सहायता कक्ष भी स्थापित किया है.
उपरोक्त के अलावा कई और घटनाएं हुई हैं, जो सीधे तौर पर फडणवीस और शिंदे के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा की ओर इशारा करती हैं. इतना ही नहीं शिंदे और फडणवीस कैबिनेट मीटिंग को छोड़कर साथ-साथ किसी प्रोग्राम में दिखने से भी परहेज करते है. इसकी वजह भी दोनों के बीच चल रहा कोल्ड वॉर माना जा रहा है. हालांकि फडणवीस और शिंदे दोनों ने अपने बीच किसी भी तरह के मतभेद से इनकार किया है. आपको मालूम हो कि भाजपा के नेतृत्व वाले तीन दलों के गठबंधन महायुति ने दिसंबर 2024 में महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीट में से 230 सीट जीतकर सरकार बनाई थी.
(अभिजीत करंडे की रिपोर्ट)