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Mahatma Gandhi Murder Case: 'आइडेंटिफिकेशन के कई राउंड... गवाहों की एक-दूसरे से दूरी... आरोपियों के कपड़े बदलवाए...पुलिस की गैरमौजूदगी...' कैसे हुई थी बापू के हत्यारे गोडसे की पहचान?

Mahatma Gandhi Murder Case Verdict: 10 फरवरी 1949 को लाल किले में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का मुकदमा चला. इसमें कई साजिशकर्ता सामने आए. कई गवाहों से घंटों क्रॉस एक्जामिनेशन किया गया. बाद में मुख्य आरोपी के तौर पर बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई. इस फैसले की एक-एक बात तफ्सील से 220 पेजों की एक फाइल में दर्ज है. GNT टीम ने इस पूरी फाइल को पढ़ा. इस फाइल से हम आपके लिए निकालकर लाएं हैं कुछ कमसुनी और कुछ अनसुनी दास्तान...चार पार्ट की इस सीरीज के पहले भाग में हम आपको बताने जा रहे हैं कि हजारों लोगों के सामने गोली चलाने के बावजूद भी आखिर कैसे सुनिश्चित की गई थी बापू के हत्यारे गोडसे की पहचान?

Mahatma Gandhi Murder Case verdict (Photo: Getty Images/Delhi e museum) Mahatma Gandhi Murder Case verdict (Photo: Getty Images/Delhi e museum)
हाइलाइट्स
  • कई आइडेंटिफिकेशन परेड की गई थी

  • बचाव पक्ष ने उठाए थे आइडेंटिफिकेशन को लेकर बड़े सवाल 

Mahatma Gandhi Murder Case verdict: 10 फरवरी 1949 को लाल किले में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का मुकदमा चला. इसमें कई साजिशकर्ता सामने आए. कई गवाहों से घंटों क्रॉस एक्जामिनेशन किया गया. बाद में मुख्य आरोपी के तौर पर बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई. इस फैसले की एक-एक बात तफ्सील से 211 पेजों की एक फाइल में दर्ज है.

GNT टीम ने इस पूरी फाइल को पढ़ा. इस फाइल से हम आपके लिए निकालकर लाएं हैं कुछ कमसुनी और कुछ अनसुनी दास्तान...चार पार्ट की इस सीरीज के पहले भाग में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर हजारों लोगों के सामने गोली चलाने के बावजूद भी कैसे सुनिश्चित कई गई थी बापू के हत्यारे गोडसे की पहचान?

बापू पर गोली चलाने वाले नाथूराम गोडसे को घटनास्थल पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में नारायण डी आप्टे और विष्णु करकरे सहित कई साजिशकर्ताओं के साथ उस पर मुकदमा चलाया गया था. नाथूराम गोडसे और नारायण डी आप्टे को बाद में गांधी जी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराते हुए 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई थी. ये आजाद भारत की पहली फांसी की सजा थी.

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हत्यारों की पहचान की कार्यवाही (Identification Parade) कई महीनों तक चली और इसमें कई गवाह शामिल किए गए. ये वो लोग थे जिन्होंने हत्या के दिन या साजिश बनाने के दौरान आरोपियों को देखा था. ये पहचान काफी सख्त कानूनी प्रोटोकॉल के तहत की गईं. इन आइडेंटिफिकेशन परेड में किसी तरह की कोई गलती न हो, इसके लिए केस में शामिल मजिस्ट्रेटों ने सख्त प्रक्रियाओं का पालन किया. 

आपको बता दें, आइडेंटिफिकेशन परेड आपराधिक जांच का एक महत्वपूर्ण पहलू होता है. इसमें गवाहों को अलग-अलग व्यक्तियों में से आरोपियों की पहचान करने के लिए कहा जाता है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि अपराध करने वाले व्यक्ति की सटीक पहचान हो सके. गांधीजी की हत्या के मामले में, नाथूराम गोडसे, नारायण डी. आप्टे और विष्णु करकरे सहित हत्या में शामिल प्रमुख आरोपियों की पहचान करने के लिए कई ऐसी परेड आयोजित की गईं.

नाथूराम गोडसे की पहचान कैसे हुई
इस केस में सबसे जरूरी पहचान नाथूराम गोडसे की थी. 28 फरवरी, 1948 को, पहली आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित की गई, जिसकी निगरानी मजिस्ट्रेट किशन चंद ने की. इस परेड में गोडसे के साथ नारायण आप्टे और विष्णु करकरे भी शामिल थे, साथ ही बारह दूसरे विचाराधीन आरोपी भी थे. इस प्रोसेस को काफी सख्त प्रोटोकॉल के साथ पूरा किया गया. 

(फोटो- Getty Images)
(फोटो- Getty Images)

इस परेड के दौरान, कई गवाहों ने गोडसे को सही ढंग से पहचाना.  प्रमुख गवाहों में राम चंदर, कालीराम, सी. पाचेको, मार्टो थडियस, सुरजीत सिंह, मस्त. कोलोचंस और छोटू बन शामिल थे. ये वो लोग थे, जिन्होंने बिना किसी संदेह के गोडसे को पहचाना. इन कई गवाहों की पहचान ने गोडसे के खिलाफ मामले को और भी मजबूत कर दिया.

आरोपी

गवाह

नाथूराम गोडसे

राम चंदर (Ram Chander), कलिराम (Kaliram),  सी. पाचेको (C.Pacheco), मार्टिन थडियस (Martin Thaddeus), सुरजीत सिंह (Surjit Singh), एमएसटी. सोलोचन (Mst.Solochans), छोटू राम (Chhotu Ram)

नारायण आप्टे

राम चंदर (Ram Chander), कलिराम (Kaliram), सुरजीत सिंह (Surjit Singh), एमएसटी. सोलोचन (Mst.Solochans), छोटू राम (Chhotu Ram), भूर सिंह (Bhur Singh) और जन्नू (Jannu)

विष्णु करकरे

राम सिंह (Ram Singh), मार्टिन थैडियस (Martin Thaddeus), छोटू राम (Chhotu Ram), भूर सिंह (Bhut Singh), जन्नू (Jannu)

बचाव पक्ष ने उठाए थे आइडेंटिफिकेशन को लेकर बड़े सवाल 
इस पूरे आइडेंटिफिकेशन प्रोसेस के दौरान दो सबसे बड़े सवाल बचाव पक्ष ने उठाए थे: 
1. सिर ढकने का मुद्दा: बचाव पक्ष का दावा था कि नाथूराम गोडसे को पहचानने के लिए आइडेंटिफिकेशन परेड के दौरान उसके सिर पर पट्टी बांधी गई थी, जिससे उसे अलग से आसानी से पहचाना जा सकता था. जबकि दूसरे विचाराधीन कैदियों को ये पट्टियां नहीं बांधी गई थीं, जिससे गवाहों के लिए गोडसे का पता लगाना आसान था.

हालांकि, मजिस्ट्रेट किशन चंद ने अपनी गवाही में इसे लेकर साफ किया था. उन्होंने इस बात से इनकार किया और कहा कि सिर पर लगे कपड़े के कारण गोडसे की पहचान नहीं की गई है, बल्कि कई दूसरे कारण भी हैं. इसके अलावा, खुद गोडसे ने अपने बयान में माना था कि परेड में शामिल कुछ लोगों ने अपने सिर पर रूमाल या तौलिया ढका हुआ था, लेकिन उसके सिर पर बंधी पट्टी और दूसरों के बीच कोई खास अंतर नहीं था.

2. महाराष्ट्रीयन पहचान: बचाव पक्ष का एक और तर्क ये था कि नारायण आप्टे और विष्णु करकरे की पहचान मराठी होने की वजह से की गई. वे दोनों महाराष्ट्रीयन जैसे दिखते थे, जबकि जिन विचाराधीन कैदियों के साथ उन्हें खड़ा किया गया था, वे मराठी नहीं थे. इसे लेकर बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि इससे गवाहों के लिए उन दोनों की पहचान करना आसान हो गया था. 

हालांकि, मजिस्ट्रेट ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा था कि नारायण आप्टे प्रत्यक्ष रूप से महाराष्ट्रीयन नहीं दिखते हैं. इसके अलावा, दोनों को परेड के दौरान अपने कपड़े बदलने का ऑप्शन भी दिया गया था. इस बात का कोई कारण नहीं था कि उन्हें केवल उनके जातीय पृष्ठभूमि के कारण पहचाना गया हो. 

(फोटो- Getty Images)
(फोटो- Getty Images)

कई परेड की गई थी आयोजित 
पहचान की ये प्रक्रिया सिर्फ एक परेड से नहीं रुकी. बॉम्बे के हेड प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट ऑस्कर बी ब्राउन ने नाथूराम गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और अन्य के खिलाफ कई आइडेंटिफिकेशन परेड की. ये कार्यवाही कई महीनों तक चली:

-7 जनवरी, 1948 को गोडसे और नारायण आप्टे के खिलाफ एक आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित की गई थी.

-1 फरवरी, 1948 को एक और आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित की गई, जिसमें गोडसे, आप्टे, करकरे और अन्य शामिल थे.

-मार्च 16, मार्च 10, मार्च 14, और 9 अप्रैल, 1948 को भी आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित की गई थी.

कई सावधानियां बरती गईं
किसी भी तरह की कोई गलती न हो और निष्पक्षता से पूरी प्रक्रिया हो सके, इसके लिए मजिस्ट्रेटों ने कई सावधानियां बरतीं. उदाहरण के लिए, पहचान करने वाले गवाहों को एक अलग कमरे में रखा गया था और उन्हें एक-दूसरे से बात करने की अनुमति नहीं थी. अभियुक्तों को अपने कपड़े या टोपी बदलने की आजादी दी गई थी, और परेड करने वाले लोगों को अभियुक्तों की उम्र और शारीरिक बनावट के हिसाब से ही चुना गया था.

पहचान की कार्यवाही में मजिस्ट्रेट ऑस्कर बी. ब्राउन ने अपनी तरफ से गवाही के लिए अलग से सावधानी बरती. उन्होंने परेड के लिए अलग-अलग कोर्ट रूम से अपने आप लोगों का चयन किया और यह सुनिश्चित किया कि जांच में शामिल कोई भी पुलिस अधिकारी कार्यवाही के दौरान उपस्थित नहीं रहे.

ये प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी थी. जजमेंट के मुताबिक, इसमें शामिल सभी पक्षों के सामने पंचनामा (ज्ञापन) लिखा जाता था. इसके अलावा, कोई भी पंचनामे पर किसी भी आपत्ति या सुधार के लिए आवाज उठा सकता था. इन परेडों के दौरान किसी भी आरोपी ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. 

(फोटो- Getty Images)
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नाथूराम गोडसे और उसके साथ साजिश करने वालों की पहचान ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद मुकदमे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सख्त कानूनी प्रोटोकॉल के तहत इन सभी की पहचान की गई थी. 

गौरतलब है कि महात्मा गांधी मर्डर केस की ओरिजिनल जजमेंट फाइल को दिल्ली हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट ई-म्यूजियम नाम के ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड किया है. इसमें कई ऐतिहासिक केस की ओरिजिनल जजमेंट फाइल अपलोड की गई है. जिसमें डिस्ट्रिक्ट कोर्ट सुप्रीम कोर्ट दोनों के दस ऐतिहासिक केस के डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं. दिल्ली हाई कोर्ट का पहला जजमेंट, इंदिरा गांधी हत्या, संसद हमला और लाल किला हमला जैसे कई जरूरी जजमेंट को शामिल किया गया है. का यह पहला भाग गांधी की हत्या के बाद की कानूनी प्रक्रिया के बारे में है.

इस सीरीज के अगले भागों में, हम मुकदमे के दूसरे पहलुओं का जिक्र करेंगे, जिसमें बचाव पक्ष की दलीलें, फैसला और मामले के जरूरी पक्षों को शामिल किया जाएगा.