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Maintenance for Wife After Divorce: दिल्ली HC का फैसला! बीवी पढ़ी लिखी हो तब भी मिलना चाहिए मेंटेनेंस, जानें तलाक के बाद कितना और किस हिसाब से मिलता है गुजारा भत्ता?

Maintenance for Wife After Divorce: इस कानून का मकसद केवल इतना है कि महिलाओं को तलाक के बाद आर्थिक सुरक्षा मिली रहे. पत्नी का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी इसी कानून की है. 

Maintenance for Wife After Divorce Maintenance for Wife After Divorce
हाइलाइट्स
  • पढ़ी-लिखी हो बीवी फिर भी दें गुजारा भत्ता-HC

  • भारत में भरण-पोषण के लिए कानून बनाया गया है

भारतीय कानून कई चीजों को देखकर बनाया गया है. सदियों पुरानी परंपराओं और सामाजिक ढांचों सहित विवाह, परिवार और समाज कल्याण के अलग-अलग पहलुओं को ध्यान में रखते हुए इसे बनाया गया है. तलाक के बाद पत्नी के वित्तीय अधिकार, विशेषकर भरण-पोषण पर भी इसमें ध्यान दिया गया है. भरण-पोषण या जिसे गुजारा भत्ता भी कहा जाता है, वो एक तरह की आर्थिक मदद होती है, जिसे तलाक या अलग होने के बाद एक साथी को कानूनी रूप से दूसरे साथी से लेने का अधिकार होता है. हालांकि, ये गुजारा भत्ता कितना और कैसे मिलेगा इसका फैसला कोर्ट ही करता है. 

पढ़ी-लिखी हो बीवी फिर भी दें गुजारा भत्ता-HC
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने इसे लेकर एक जरूरी फैसला सुनाया है. मनीष बनाम NCT दिल्ली राज्य एवं अन्य (Manish v. State of NCT of Delhi & Anr) में, पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसका पति शराबी है और उसने उसका साथ शारीरिक हिंसा (Domestic Violence) करता है. इसके अलावा, दहेज (Dowry) न लाने के कारण ससुराल वालों ने लगातार उसे परेशान किया है. इन सबके कारण उसने पति को छोड़ने का फैसला किया. 

मामला फैमिली कोर्ट (Family Court) में पहुंचा, जहां पत्नी को रु. 5,500 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया. इसके अलावा, पत्नी को रु. 12,000 भी दिए गए, ये वो खर्चा था जो मुकदमेबाजी के दौरान हुआ. हालांकि, पति ने इस आदेश को चुनौती दी. पति ने यह तर्क दिया कि उसकी सैलरी काफी कम है और उसकी पत्नी पढ़ी-लिखी है, वह खुद अपना गुजारा कर सकती है. 

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दिल्ली हाई कोर्ट ने पति की अपील खारिज की. जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि पत्नी शिक्षित है इसका मतलब यह नहीं है कि उसे गुजारा भत्ता मिलने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि शिक्षित होने का मतलब यह नहीं है कि वे आर्थिक रूप से सशक्त हो. खासकर जब पत्नी घरेलू हिंसा का सामना कर रही हो और खुद को सहारा न दे सकती हो. 

भारत में भरण-पोषण के लिए कानून 
भारतीय संविधान में महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए अलग-अलग प्रावधान किए गए हैं. दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 125 में भरण-पोषण को लेकर नियम दिए गए हैं. इसमें पत्नी साथ ही नाबालिग बच्चों और बूढ़े माता-पिता के भरण पोषण की बात कही गई है. 

धारा 125 के अनुसार, अगर पति अपनी पत्नी की देखभाल करने से इनकार करता है, तो पत्नी गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है. यह कानून तलाक की प्रक्रिया शुरू होना के बाद लागू होता है, बशर्ते कि पत्नी खुद को सहारा न दे सकती हो यानि वह नौकरी न करती हो. अदालत पति की भुगतान क्षमता और पत्नी की जरूरतों के हिसाब से  महीने का गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकती है.

इसके अलावा, अगर मामला घरेलू हिंसा से जुड़ा है तो भी महिलाएं गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं. महिला अपने ससुराल में रहने और घरेलू हिंसा के मामलों में भरण-पोषण के लिए कोर्ट जा सकती है. इसके लिए महिलाओं का घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम, 2005 दिया गया है. यह अधिनियम घरेलू हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं को कानूनी मजबूती देती है. 

किन शर्तों पर मिलता है गुजारा भत्ता? 
दरअसल, तलाक या अलग होने वाले मामलों में, कोर्ट पत्नी को भरण-पोषण देने से पहले अलग-अलग चीजों पर विचार करता है:

1. दोनों पक्षों की इनकम और आर्थिक स्थिति
अदालत पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति देखती है. अगर पत्नी बेरोजगार है या पति की तुलना में काफी कम कमाती है, तो उसे गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार है. पति की सहारा देने की क्षमता को भी ध्यान में रखा जाता है, जिसमें उसकी मासिक आय, घर-जायदाद सब शामिल होती हैं. 

2. जीवन स्तर
अदालत यह सुनिश्चित करती है कि पत्नी का वही जीवन स्तर रहे जो तलाक से पहले था. 

3. कितने साल चली शादी
लंबे समय तक चली शादियों में अक्सर ज्यादा गुजारा भत्ता दिया जाता है, विशेषकर तब जब पत्नी ने परिवार के लिए अपना करियर या पढ़ाई के अवसरों को न अपनाया हो. 

4. बच्चों की कस्टडी 
अगर पत्नी बच्चे की कस्टडी मिली है, तो कोर्ट उनकी देखभाल के लिए अलग से गुजारा भत्ता दे सकती है. बच्चों का गुजारा भत्ता अलग से होता है, लेकिन इसे अक्सर पत्नी के गुजारा भत्ता के साथ ही देखा जाता है.

कितने समय तक मिलता है गुजारा भत्ता? 
गुजारा भत्ता कबतक मिलेगा ये अलग-अलग चीजों पर निर्भर करता है. जैसे बीवी जबतक दोबारा शादी न कर ले. या जबतक पत्नी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो जात या फिर पति या पत्नी का निधन नहीं हो जाता. 

कुछ मामलों में, कोर्ट मासिक गुजारा भत्ता के बजाय एक ही बार में पूरी राशि भी दे सकती है. इस कानून का मकसद केवल इतना है कि महिलाओं को तलाक के बाद आर्थिक सुरक्षा मिली रहे. पत्नी का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी इसी कानून की है.