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Birthday Special: साथी हो गए थे शहीद...खूद खून से थे लथपथ, फिर भी पाकिस्तान के बंकरों को कर दिया बर्बाद, कुछ ऐसी है 'परमवीर' पीरू सिंह की वीरता की कहानी 

Happy Birthday Piru Singh Shekhawat: कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत ने पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान अपना रण कौशल प्रदर्शित कर दुश्मनों को छठी के दूध याद दिला दिए थे. उन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

Piru Singh Shekhawat (photo twitter) Piru Singh Shekhawat (photo twitter)
हाइलाइट्स
  • हवलदार मेजर पीरू सिंह का जन्म 20 मई 1918 को हुआ था

  • पीरू हमेशा से सेना में होना चाहते थे भर्ती 

देश के वीर सैनिकों के सम्मान में जितने भी कसीदे पढ़े जाएं वो कम हैं. वे देश की सीमा पर रात को जागते हैं, तब हम अपने घरों में चैन से सो पाते हैं. हमारे सैनिकों ने कई युद्धों में अपने साहस और शौर्य का परिचय दिया है. हम ऐसे ही वीर योद्धा की जीवन गाथा पर चर्चा करने जा रहे जिनका जन्म आज ही के दिन 20 मई को हुआ था. 

सेना में भर्ती होने के लिए उम्र होने से पहले पहुंच गए थे
6 राजपूताना राइफल्स में हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत का जन्म 20 मई 1918 को राजस्थान के झुंझनूं जिले में स्थित बेरी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम लाल सिंह था. सात भाई-बहनों में सबसे छोटे पीरू को बचपन से ही पढ़ाई पसंद नहीं थी. एक दिन टीचर ने किसी बच्चे से झगड़ा करने के लिए पीरू सिंह को बहुत डांटा. उसके बाद पीरू कभी स्कूल नहीं गए. अपने पिता लाल सिंह के साथ खेतों में मदद करते थे. पीरू हमेशा से सेना में भर्ती होना चाहते थे. दो बार रिजेक्ट भी हुए क्योंकि वो भर्ती होने के लिए उम्र से पहले पहुंच गए थे. लेकिन 18 साल के होते ही उन्हें सेना में शामिल कर लिया गया. 

20 मई 1936 को पंजाब रेजिमेंट में किया था ज्वाइन
20 मई 1936 का दिन पीरू के लिए खुशियां लेकर आया. इसी दिन पीरू को झेलम में पंजाब रेजिमेंट की 10वीं बटालियन में हिस्सा बनाया गया था. ट्रेनिंग के बाद 1 मई 1937 को पीरू को 5वीं बटालियन में तैनाती मिली. बचपन से किताबों से दूर रहने वाले पीरू ने नौकरी के दौरान किताबों से दोस्ती की और कई परीक्षाएं पास कीं. 1940 में लांस नायक बन गए. 1942 में हवलदार बना दिए गए. 1945 में कंपनी हवलदार मेजर बनाए गए. 

साथियों संग तिथवाल ब्रिज पर संभाला मोर्चा  
पीरू सिंह के सेवाकाल में द्वितीय विश्व युद्ध की आग भड़क गई. ऐसे में उन्हें ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फोर्स के साथ जापान भेजा गया. जहां उन्होंने 1947 तक अपनी सेवा दीं. आगे भारत की आजादी के बाद उनका तबादला राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन में कर दिया गया. 6 राजपूताना राइफल्स का हिस्सा बनने के करीब एक साल बाद पीरू सिंह जम्मू-कश्मीर के तिथवाल सेक्टर पहुंचे, जहां उनको पाकिस्तानी सेना द्वारा अधिकृत एक पहाड़ी पर भारतीय तिरंगे को लहराना था. काम मुश्किल था. विरोधी एक अच्छी-खासी ऊंचाई पर मौजूद था. पाकिस्तानी फौजियों ने 8 जुलाई 1948 को रिंग कॉन्टोर पर कब्जा कर लिया. इसकी वजह से किशनगंगा नदी के पास मौजूद भारतीय फौज को पीछे हटना पड़ा. पीरू सिंह और उनके साथियों ने तिथवाल ब्रिज पर पोजिशन संभाली. 11 जुलाई को भारतीय फौज ने ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी फौज के पोस्ट पर हमला शुरू किया. चार दिन तक दोनों तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग चलती रही. लेकिन पाकिस्तानी ऊंचाई पर ऐसी जगह बैठे थे कि उनका कुछ भी बिगाड़ना मुश्किल हो रहा था.

तबाह की दुश्मन की चौकियां
ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से फेंका गया एक छोटा सा पत्थर भी भारतीय सेना के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता था. मुसीबत भरे इस काम को पीरू सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभव का प्रयोग करते हुए आसान बनाना शुरू कर दिया. आगे उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से न सिर्फ दुश्मन से लोहा लिया, बल्कि एक-एक करके उसकी कई चौकियां तबाह कर दीं.

कई साथी हो गए थे शहीद
पाक सैनिकों ने भारी गोलीबारी की और बड़ी मात्रा में हथगोले फेंके. इस हमले में पीरू सिंह के कई साथी शहीद हो गए. मगर पीरू सिंह बिचलित नहीं हुए. धैर्य का परिचय देते हुए उन्होंने साथियों से दुश्मन का मुकाबला करने को कहा. साथ ही विरोधियों के उन बंकरों को टारगेट किया, जो मशीनगन से लैश थे. इस संघर्ष के दौरान एक पल ऐसा भी आया, जब पीरू अपने टुकड़ी में जीवित बचे अकेले भारतीय थे. 

घायल होने के बाद भी पीरू सिंह रुके नहीं
पीरू के आसपास उनके साथियों के शव पड़े थे. इसके बावजूद पीरू सिंह बिचलित नहीं हुए. उन्होंने 'राजा रामचंद्र की जय' का नारा लगाते हुए मीडियम मशीन गन वाली पाकिस्तानी पोस्ट की ओर आगे बढ़ना शुरू किया. तभी उनके चेहरे के पास एक ग्रैनेड फटा. जिससे वो बुरी तरह घायल हो गए. उनकी आंखों से खून निकलने लगा. उनके स्टेन गन की गोलियां खत्म हो गई थीं. वो अगले हमले से बचने के लिए एक गड्ढे में कूदे. वहां से उन्होंने  पाकिस्तानी पोस्ट की तरफ अपनी धुंधली दृष्टि के साथ ग्रैनेड्स फेंके. इस दौरान उन्होंने दूसरे गड्ढे में कूदकर दो पाकिस्तानी फौजियों को अपनी खंजर से मौत के घाट उतार दिया. 

मशीन गन वाली पोस्ट पर ग्रैनेड फेंक तबाह कर दिया
इस गड्ढे से बाहर निकलने ही वाले थे कि एक गोली उनके सिर में लगी. लेकिन उससे पहले उन्होंने एक ग्रैनेड मशीन गन वाली पोस्ट पर फेंक दिया था. जिससे वह पोस्ट तबाह हो गया. उन्हें कंवर फायर दे रहे कंपनी कमांडर ने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा.पीरू सिंह शहीद हो गए लेकिन पोस्ट अब पाकिस्तानियों से मुक्त था. 17 जुलाई को पीरू सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया. झुंझुनूं में उनके नाम पर पीरू सिंह शेखावत सर्किल है. लोग यहां आकर शहीद को नमन करते हैं.