भारत और पाकिस्तान के बीच 1965, 1971 और 1999 के पहले भी एक युद्ध हुआ था. वह युद्ध आजादी के ठीक बाद 1948 में हुआ था. जिसमें भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. इस जीत के हीरो थे मेजर राम राघोबा राणे. उन्होंने 72 घंटे तक दुश्मन को सांस नहीं लेने दी थी. अद्म्य साहस और वीरता का प्रदर्शन करने के चलते मेजर राणे को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से थे प्रभावित
रामा राघोबा राणे का जन्म 26 जून 1918 को कर्नाटक के चंदिया गांव में हुआ था. उनके पिता राज्य पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे. महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित राणे देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा के चलते सेना में भर्ती हुए.
अद्म्य साहस का दिया था परिचय
10 जुलाई 1940 को रामा राघोबा राणे के सैन्य जीवन की शुरुआत बांबे इंजीनियर्स के साथ हुई. उन्हें सबसे पहले 26वीं इन्फैंट्री डिवीजन की इंजीनियरिंग यूनिट में तैनात किया गया, जो उस दौरान बर्मा बार्डर पर जापानियों से लोहा ले रही थी. उन्होंने यहां अद्म्य साहस का परिचय दिया, जिसके चलते उन्हें जल्द ही सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशंड ऑफिसर बना दिया गया. इस तरक्की के बाद उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर में कर दी गई.
पाकिस्तानियों ने बारूदी सुरंगें बिछाई थी
आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरुआत हुई थी और ये युद्ध अप्रैल 1948 को जाकर खत्म हो सका था. भारतीय सेना ने दुश्मन सेना को करारी मात देते हुए नौशेरा की जीत हासिल कर ली थी. दिक्क्त ये थी कि उसके आगे राजौरी के पोस्ट कैसे हासिल किए जाएं. 8 अप्रैल 1948 को चौथी डोगरा बटालियन राजौरी की तरफ आगे बढ़ी. इस दौरान बटालियन ने बरवाली रिज से पाकिस्तानियों को भगाया और उसपर कब्जा किया. ये जगह नौशेरा से 11 किलोमीटर दूर थी. लेकिन आगे रास्ते में कई ब्लॉक्स बनाए गए थे. बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं. न सैनिक बढ़ पा रहे थे और न ही टैंक्स. तब 37वीं असॉल्ट फील्ड कंपनी के एक सेक्शन के कमांडर राम राघोबा राणे डोगरा रेजिमेंट की मदद के लिए आए.
जख्मी होने के बाद भी बारूदी सुरंगें हटाते रहे
राम राघोबा राणे अपनी टीम के साथ रास्ते को क्लियर करने लगे. रोड ब्लॉक्स और बारूदी सुरंग हटाने लगे. इस दौरान पाकिस्तानियों ने मोर्टार दागे. इसमें राणे के दो साथी शहीद हो गए और पांच जख्मी. राणे भी जख्मी हुए. लेकिन राणे और उनकी टीम रुकी नहीं. जवाबी हमला करते हुए बारूदी सुरंग हटा दी. इसकी वजह से लड़ाई के लिए भारतीय टैंकों को मोर्चो तक सफलता पूर्वक पहुंचाया जाना संभव हुआ और इस तरह से भारत की जीत हुई.
परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित
सेकेंड लेफ्टिनेंट राणे की वीरता के लिए उन्हें 8 अप्रैल 1948 को सेना के सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उन्हें 1954 में कैप्टन बनाया गया. 25 जनवरी 1968 को राणे मेजर के पद से रिटायर हुए. 11 जुलाई 1994 को पुणे के कमांड हॉस्पिटल में उनकी मृत्यु हो गई.