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बंदरों की जानता है भाषा, अनोखी है बंदरों से बात करने वाले इस टीचर की कहानी

लोकेंद्र सिंह ने बंदरों को समझने में 40 साल से ज्यादा वक्त गुजार दिया है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने केवल कुछ बंदरों के साथ लंबा वक्त बिताया हो इसलिए यह बंदर उनकी बात मानते हों. वो बंदरों के अलग-अलग गुटों के साथ समय बिताते रहते हैं.

बंदरों की जानता है भाषा बंदरों की जानता है भाषा
हाइलाइट्स
  • बंदरों को समझने में गुजारा 40 साल से ज्यादा वक्त.

  • बंदरों की भाषा, उनके हाव भाव से उनके बारे में आसानी से जान जाते हैं.

शहरों में बंदर आ जाने पर अक्सर लोग वहां से भाग जाते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के आगर मालवा का एक शख्श ऐसा है जिसे बंदरों से बिल्कुल डर नहीं लगता, बल्कि वह तो बंदरों का दोस्त है. उसे ना सिर्फ बंदरों के बीच रहना पसंद है बल्कि वो वह बंदरों को एक आवाज और इशारे में पास भी बुला लेता है. 

आगर मालवा के निवासी इस शख्स का नाम है लोकेंद्र सिंह. लोकेंद्र सिंह पेशे से शिक्षक हैं और वर्तमान में झाबुआ के एक स्कूल में पोस्टेड हैं. उन्हें बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रहा है विशेषकर बंदरों और चिड़ियाओं से. नौकरी के बाद जब भी वक्त मिलता है यह आसपास के जंगलों में पहुंच जाते हैं. खासकर वहां जहां पर बंदर मौजूद हों और फिर उन बंदरों से दोस्ती करने में जुट जाते हैं. सालों की मेहनत के बाद लोकेंद्र सिंह बंदरों की भाषा, उनके हाव भाव से उनके बारे में आसानी से जान जाते हैं कि आखिर बंदर क्या चाहते हैं. जैसे ही वह कुछ आवाज करते हैं और कुछ इशारे करते हैं तो बंदर उनके पास चले आते है. 

बंदरों पर प्रैक्टिकल करते रहते हैं

लोकेंद्र सिंह इन जंगली बंदरों पर प्रैक्टिकल भी करते रहते हैं और उनकी बुद्धिमत्ता, उनकी धैर्यशीलता की परीक्षा भी लेते रहते हैं.अपनी लगातार मेहनत के कारण लोकेंद्र सिंह जान गए हैं कि बंदरों से कैसा व्यवहार किया जाए जिससे वे इंसानों से डरे नहीं. हालांकि उनका भी यह मानना है कि इसके लिए जानवरों को प्यार के साथ-साथ कुछ खाने का लालच भी दिया जाए तो वे जल्द ही अपनी ओर आकर्षित हो जाते हैं. 

बंदरों को समझने में गुजारे 40 साल

लोकेंद्र सिंह ने बंदरों को समझने में 40 साल से ज्यादा वक्त गुजार दिया है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने केवल कुछ बंदरों के साथ लंबा वक्त बिताया हो इसलिए यह बंदर उनकी बात मानते हों. वे समय की अनुकूलता के अनुसार बंदरों के अलग-अलग गुटों के साथ समय बिताते रहते हैं. क्षेत्र के प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर में रहने वाले पुजारी मुकेश भी पिछले 5 सालों में लोकेंद्र सिंह को कई बार मंदिर प्रांगण में बंदरों के बीच देख चुके हैं. उन्हें देखकर वह भी बंदरों से डरना भूलकर अब उन्हें स्नेह करने लगे हैं. 

लोकेंद्र सिंह को राज्यपाल से उत्कृष्ठ शिक्षक का 2018 में पुरुस्कार भी मिला है. लोकेंद्र सिंह बताते है जैसे ही उन्हें पुरस्कार मिला था वो सीधे उसे लेकर बंदरो के पास पहुंचे और उन्हें दिखाने लगे. उन्हें अपनी खुशियों के पल इन बेजुबान बंदरों के साथ बांटने में अच्छा लगता है. लोकेंद्र सिंह को आगर के बंदरों के बारे में यह तक मालूम है कि बंदरों के 7 अलग-अलग झुंड हैं और कौन सा झुंड कहां रहता है. लोकेंद्र सिंह कहते हैं कि बंदरों को समझने और उनके संरक्षण की सख्त जरूरत है. 

इस दुनिया में इंसान हो या जानवर हर किसी को प्यार की जरूरत होती है. यही प्यार बेसहारा जानवरों को देकर उन्हें अपना भी बनाया जा सकता है. आगर मालवा के मंकी मैन से सीख लेने की जरूरत है जिससे इन बेजुबान जानवरो को प्यार से अपना बनाया जा सके और इनका संरक्षण भी किया जा सके.