राजधानी दिल्ली के महरौली इलाके में मौजूद ये मीनार, महज इमारत भर नहीं है. बीते वक्त की न जाने कितनी दास्तानें इसमें दफन हैं. दुनिया इसे कुतुब मीनार के नाम से जानती है. उस शख्स के नाम से पहचानती है जिसने इसकी नींव रखी. इतिहास कहता है कि कुतुब मीनार 12वीं सदी के अंत और तेरहवीं सदी के आरंभ में वजूद में आया था. जब कुतुबुद्दीन-ऐबक ने इसकी नींव रखी. लेकिन क्या कुतुब मीनार की हकीकत इतनी भर है. बेशक इसकी दरो-दीवारें बहुत कुछ कहती हैं. लेकिन बारीकी से देखें तो बहुत कुछ छुपाती भी हैं. हम आपके सामने archaeological survey of India का वो दस्तावेज़ दिखाने जा रहे हैं तो कुतुब मीनार की अनसुनी दास्तां बयां करता है
गुड न्यूज टुडे के पास साल 1871-72 में ASI की तैयार की गई वो रिपोर्ट है. जिसे तब के सीनियर अधिकारी जेडी बेगलर ने तैयार किया था. इस शोध में तथ्यों के आधार पर दावा किया गया कि इस परिसर में बनाई गई मस्जिद से पहले यहां मंदिर था और यहां मौजूद एक-एक साक्ष्य इसे प्रमाणित करता है. मौजूदा वक्त में पुरातत्व विभाग से जुड़े एक्सपर्ट भी मानते है कि जेडी बेगलर के शोध में सामने आए तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता.
जेडी बेगलर की रिपोर्ट में खुलासा
अब जेडी बेगलर की इस जांच में सामने आए तथ्यों पर गौर कीजिए. खुदाई के दौरान देखा गया कि अंदर के उत्तरी द्वार पर कई सारे बदलाव किए गए हैं. जेडी बेगलर ने शोध में दावा किया कि मस्जिद की बाहर और अंदर की दोनों दीवारों पर हिंदू सभ्यता से जुड़े प्रतीक मौजूद हैं. कोने के गुंबद पर भी हिंदू संस्कृति की झलक साफ दिखती है. भले ही मीनार का निर्माण मुस्लिम शासकों द्वारा किया गया था और इसकी नींव मंदिर की दीवारों के लंबे समय बाद रखी गई थी. खुदाई के दौरान पाया गया कि बाहरी दक्षिण द्वार, उन अधिरचनाओं की नींव और कारीगरी से मेल खाती है. बाकी दीवारों पर भी हिंदू संस्कृति और परम्परा के चित्र उकेरे गए हैं.
मस्जिद की दीवारों पर हिंदू मान्यताओं से जुड़े प्रतीक
कुतुब मीनार के परिसर पर गौर करें तो बाक़ी के निर्माण में अवशेष ही अवशेष नज़र आते हैं. कहीं स्तंभों पर बनी मूर्तियों के चेहरे तोड़े हुए नजर आते हैं. कहीं दीवारों और बुनियादों में हिंदू निर्माण वाली कलाकृतियां नजर आती हैं. जेडी बेगलर की रिपोर्ट में सामने आया एक महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि कुतुब परिसर में मौजूद सभी खंभे एक ही मंदिर से निकाले गये दिखते हैं और उनकी ऊंचाई भी बराबर है. इन खंभों पर वैष्णव कलाकृतियां, अवतार, अनंत सर्प में नारायण की मूर्तियां चिन्हित हैं. 1872 की ASI रिपोर्ट में कुतुब परिसर के लौह स्तंभ को लेकर भी साफ लिखा गया है कि ये स्तंभ हिंदुओं का है. भारतीय इतिहासकार भी मानते हैं कि ये लौह स्तंभ पांचवीं सदी का हो सकता है. जाहिर है कुतुब परिसर में दिख रहे ये सबूत आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के दावे और जेडी बेगलर के शोध में पाए गए तथ्यों की पुष्टि करते हैं और बेशक कुतुब मीनार की छिपी हुई दास्तां बयां करते हैं.