आपने कई तरह के पशुओं के बाजार के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक जानवरों के एक ऐसे बाजार के बारे में बताने वाले हैं जिसके बारे में सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. दरअसल पुणे जिले के जेजुरी में पौष पूर्णिमा के अवसर पर सालों से गधों का बाजार लगता आ रहा है. सबसे अनोखी बात यह है कि तकनीक के इस दौर में जानवरों का इस्तेमाल भले ही कम हो गया हो, लेकिन जेजुरी के इस बाजार में हर साल लाखों रुपये का व्यापार होता है.
बाजार में इस बार कम हुआ कारोबार
हालांकि कोरोना के तीसरी लहर के कारण इस बार कम कारोबार हुआ. लेकिन सैकड़ों वर्षों से शुरू हुई परंपरा इस महामारी के दौर में भी कायम है. कोरोना काल में लगी पाबंदियों के कारण इस साल बाजार में ज्यादा गधे नहीं दिखाई दिए लेकिन फिर भी महाराष्ट्र के कई जिलों से लोग गधे खरीदने आए थे. तीसरी लहर के कारण इस साल गधों की खरीदी बिक्री ज्यादा नहीं हुई है.
गधों का रंग और दांत देखकर तय की जाती है कीमत
इस बाजार का इतिहास बहुत पुराना है. कहा जाता है कि यह बाजार जेजुरी मे लगभग दो सौ वर्षों से लगता आ रहा है. हर साल दूर-दूर से व्यापारी इस बाजार में जानवर खरीदने आते हैं, जिनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक राज्य के व्यापारी शामिल हैं. इस बाजार में गधों का रंग और दांत देखकर कीमत तय की जाती है. यहां दो-दांत, चार-दांत, खोखले, अखंड जवान जैसे विभिन्न प्रकार के गधे बेचे जाते हैं. गावठी और काठेवाड़ जाति के गधों की कीमत तीस से पैंतीस हजार रुपये तक होती है.
गधे खरीदने दूर-दूर से आते हैं व्यापारी
गधों का बाजार राज्य में दो स्थानों पर लगाया जाता है. पहला बाजार नगर जिले के मढ़ी में रंगपंचमी के दौरान और दूसरा पौष पौर्णिमा को जेजूरी में लगता है. गधे खरीदने के लिए पूरे राज्य के व्यापारी इस बाजार में आते हैं. इसके अलावा अठरा पगड जाति के लोग जैसे कि वडार, कुंभार, वैदु, कोल्हाटी, बेलदार, कैकाड़ी, डोंबारी, पारिट, पथरावत, गरुडी, आदि बाजार के लिए जेजुरी आते हैं. गधे उनकी निर्वाह का पारंपरिक साधन हैं. इसलिए, गधों को खरीदने और बेचने के लिए भारी भीड़ होती है. गधे की कीमत आमतौर पर 7 हजार रुपये से 35 हजार रुपये तक होती है.
वसंत मोरे की रिपोर्ट