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Marriage Certificate: क्या हर शादी के लिए जरूरी है रजिस्ट्रेशन? जानें नहीं करवाने पर क्या हैं नुकसान

हिन्दू मैरिज एक्ट में रजिस्टर्ड मैरिज का भी जिक्र किया गया है. इसे बोलचाल की भाषा में कोर्ट विवाह या सिविल मैरिज भी कहा जाता है. ये धार्मिक अनुष्ठानों से रहित होते हैं. इस तरह की शादियां किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बिना, अदालत की निगरानी में, आमतौर पर रजिस्ट्रार के ऑफिस में होती हैं.

Hindu Marriage (Photo-Unsplash) Hindu Marriage (Photo-Unsplash)
हाइलाइट्स
  • धार्मिक प्रथाएं निभानी जरूरी हैं 

  • केवल सर्टिफिकेट होना ही काफी नहीं 

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने एक जरूरी फैसला सुनाया था. इसमें कहा  गया था कि मैरिज सर्टिफिकेट होने के बावजूद भी हिंदू जोड़े को पति और पत्नी का दर्जा हासिल नहीं होगा. इसके लिए हिंदू विवाह अधिनियम में बताए गए सभी अनुष्ठानों को पूरा करना होगा. दरअसल, कोर्ट के सामने एक पति-पत्नी का जोड़ा आया था, जिन्हें एक दूसरे से तलाक लेना था. नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया कि तलाक की मांग कर रहे जोड़े ने कभी भी कानूनी रूप से शादी नहीं की थी, जिससे उनके लिए तलाक लेने की आवश्यकता खत्म हो गई.

धार्मिक प्रथाएं निभानी जरूरी हैं 

किसी भी हिन्दू शादी को पूरा करने के लिए उचित अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को पूरा करना जरूरी है. भारत में, शादी को पवित्र माना जाता है. देश में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act) के साथ-साथ बहुत सारे व्यक्तिगत कानून शादी से जुड़े हुए हैं. हालांकि, शादी से जुड़ी इन सभी प्रथाओं को व्यक्तिगत कानून का नाम दे दिया गया है लेकिन ये सभी धर्म पर आधारित हैं. कोई भी विवाह तभी वैध माना जाएगा जब इन सभी रीति-रिवाजों को पूरा किया जाएगा. 

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व्यक्तिगत कानून और शादी से जुड़े रीति-रिवाज और परंपरा

उदाहरण के लिए, हिंदू और ईसाई विवाहों को अक्सर धार्मिक महत्व से जुड़े संस्कारों के रूप में माना जाता है. हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 7 के अनुसार कन्यादान, पाणिग्रहण और सप्तपदी जैसे अनुष्ठान हिंदू विवाह को पूरा बनाते हैं. इसी तरह, ईसाई चर्च परिसर के भीतर समारोहों में भाग लेते हैं, क्षेत्रीय परंपराओं के आधार पर रीति-रिवाज अलग-अलग होते हैं.

रजिस्टर्ड मैरिज क्या है?

इसके विपरीत, हिन्दू मैरिज एक्ट में रजिस्टर्ड मैरिज का भी जिक्र किया गया है. इसे बोलचाल की भाषा में कोर्ट विवाह या सिविल मैरिज भी कहा जाता है. ये धार्मिक अनुष्ठानों से रहित होते हैं. इस तरह की शादियां किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बिना, अदालत की निगरानी में, आमतौर पर रजिस्ट्रार के ऑफिस में होती हैं. हालांकि, व्यक्तिगत कानूनों में जो धार्मिक रीति-रिवाज या अनुष्ठान बताए गए हैं, उनके पूरा होने पर ही ऐसी शादियों को वैध माना जाता है. इन रीति-रिवाजों के साथ ही किसी भी शादी को एसएमए के तहत मान्यता दी जाती है.

अगर शादी रजिस्टर न हो तो?

वैसे भारत में विवाह और तलाक संविधान में समवर्ती सूची में आते हैं. इसका मतलब है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों इनके बारे में कानून बना सकती हैं. केंद्र सरकार के पास जन्म, मृत्यु और विवाह पंजीकरण अधिनियम, 1886 नाम का एक कानून है, लेकिन यह ज्यादातर जन्म और मृत्यु को रिकॉर्ड करने पर केंद्रित है, न कि विवाह पर. मैरिज रजिस्ट्रेशन के संबंध में हर राज्य के अपने कानून हैं. उदाहरण के लिए, कर्नाटक और दिल्ली जैसे राज्यों में शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है.

केवल सर्टिफिकेट होना ही काफी नहीं 

इंडियन  एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शादी का ये सर्टिफिकेट आधिकारिक तौर पर काफी फायदेमंद हो सकता है. जैसे आप spousal visa या जॉइंट मेडिकल इंश्योरेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं. हालांकि, सिर्फ इसलिए कि आपने अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया इसका मतलब यह नहीं है कि यह वैध नहीं है. शादी का रजिस्ट्रेशन करने से खुद वैध या नहीं करने से अमान्य नहीं हो जाती है. 

अगर कभी इस बात पर विवाद होता है कि विवाह वैध है या नहीं, तो इसे साबित करने के लिए मैरिज सर्टिफिकेट होना हमेशा पर्याप्त नहीं होता है. हालांकि, एक विशेष प्रकार का सर्टिफिकेट है जिसे स्पेशल मैरिज एक्ट सर्टिफिकेट कहा जाता है, सबूत के रूप में गिना जाता है. इसमें कहा गया है कि एक बार मैरिज ऑफिसर इसे मैरिज सर्टिफिकेट बुक में दर्ज कर दे, तो यह निश्चित प्रमाण माना जाता है कि इस अधिनियम के तहत विवाह हुआ है.