पूरा देश अभी से होली के रंग में रंगा नजर आने लगा है. होलिका दहन 17 मार्च को है और रंग वाली होली 18 मार्च को है, लेकिन इस त्योहार का रंग लोगों पर अभी से चढ़ने लगा है. मथुरा की हवा में गुलाल की खुशबू है तो वृंदावन, गोकुल और बरसाना में होली की खुमारी छाई हुई है.
श्री कृष्ण की ब्रजभूमि में इन दिनों होली की अद्भुत छटा बिखरी है. ब्रज क्षेत्र में बसंत पंचमी के साथ ही 40 दिन के फागोत्सव की शुरुआत हो गई. जैसे-जैसे होली का दिन पास आ रहा है ब्रज पर चढ़ा होली का रंग और गाढ़ा होता जा रहा है.
होली के रंग में सराबोर गोकूल
समूचा गोकूल छड़ीमार होली के रंग में सराबोर हो गया है. यहां होली की रंगा-रंग शुरुआत हो गई है. गोपियां तैयार होकर कृष्ण को लेकर मुरलीधर घाट पहुंची हैं. हर तरफ फूल, छड़ी और उत्साह दिख रहा है. इस होली की खास बात ये भी है कि लोग इस होली में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं.
छड़ीमार होली में कृष्ण को लेकर डोला मुरलीधर घाट जाता है, जहां छड़ीमार होली गोपियां श्री कृष्ण के साथ आज भी उतने ही उत्साह के साथ खेलती है, जैसे कृष्ण के वक्त हुआ करती थी. गोपियां अपने हाथ में हल्की छड़ी लिए चलती है ताकि नन्हें कान्हा के साथ होली खेल सकें.
क्यों होता है छड़ी का इस्तेमाल
मान्यता छड़ी की इसलिए है क्योंकि गोकुल में श्री कृष्ण का बचपन बीता है और उस वक्त उनकी उम्र छोटी थी तो कृष्ण को ज्यादा चोट न लगे इसलिए लठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल होता है.
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