केदारनाथ और बद्रीनाथ में हजारों लोग दर्शन के लिए जा रहे हैं. बिगड़ते मौसम और बढ़ते भूस्खलन के मामलों के बीच श्रद्धालुओं का आए दिन परेशानी उठानी पड़ रही है. कई बार तो बदरीनाथ हाईवे के पास भूस्खलन होने के कारण रास्ता बंद भी करना पड़ता है. हालांकि, ये कोई नया नहीं है. उत्तराखंड में भूस्खलन से हर साल कई सौ मौतें होती हैं. स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, 2018 और 2021 के बीच, उत्तराखंड में 253 भूस्खलन हुए, जिसके परिणामस्वरूप 127 लोगों की मौत हुई. पिछले दो दशकों में उत्तराखंड में 11,000 से अधिक भूस्खलन दर्ज किए गए थे.
उत्तराखंड में ज्यादातर क्षेत्रों में है भूस्खलन का खतरा
1998 में मालपा और ओखीमठ के अलावा अधिकांश भूस्खलन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. इन्हें अक्सर छिटपुट घटनाओं के रूप में माना जाता है लेकिन इन घटनाओं से थोड़ा-थोड़ा करते हुए बहुत नुकसान हो जाता है. इसका कारण है कि हिमालय वाले क्षेत्र में बड़े पैमाने पर थ्रस्टिंग, फॉल्टिंग, फोल्डिंग और चट्टानों का बदलाव हुआ है. ऐसे में उत्तराखंड में बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जहां लैंडस्लाइड काफी एक्टिव है. इनमें से ज्यादातर लैंडस्लाइड ऋषिकेश-रुद्रप्रयाग-चमोली-बद्रीनाथ, रुद्रप्रयाग-उखीमठ-केदारनाथ, चमोली-उखीमठ, ऋषिकेश उत्तरकाशी-गंगोत्री-गौमुख और पिथौरागढ़-खेला-मालपा वाले रूट पर हुई हैं.
इससे कैसे बचा जा सकता है?
हालांकि, इससे बचा जा सकता है. इसके बारे में बता करते हुए मैकफेरी के टेक्निकल मैनेजर डॉ रत्नाकर महाजन कहते हैं, “पहाड़ों में वेजिटेशन कवर डिस्टर्ब होता है. ऐसे में मिट्टी पर सीधे-सीधे बारिश, धूप और हवा सब पड़ती है. बारिश की वजह से पानी जमीन के अंदर जाता है और वहां पर कोल्ड प्रेशर बनता है और मिट्टी की ताकत कम हो जाती है. भूस्खलन इन्हीं सभी कारकों की वजह से होता है. ऐसे में इन्हें रोकना बहुत जरूरी है. इनको रोकने के लिए वेजिटेशन ग्रोथ जरूरी है. आम शब्दों में कहें तो यानि वहां पर हरियाली-पेड़-पौधे जरूरी हैं. इसके अलावा सड़क बनने के लिए जो पहाड़ की कटाई की गई है उसको अच्छी तरह से करना चाहिए. जैसे वहां सिंथेटिक मैट लगाने चाहिए. इनका ये काम होता है कि अगर बारिश या धूप मिट्टी पर सीधी पड़नी होगी तो ये मैट उसे रोकने का काम करेगा. उसके ऊपर हम पेड़-पौधे लगाएंगे तो ये अपने आप मिट्टी को सुरक्षित रखेंगे.”
गैबियन वॉल, सॉइल नेल वॉल और रॉकफॉल बैरियर है इसका उपाय
इसके उपायों के बारे में बात करते हुए डॉ रत्नाकर कहते हैं कि भूस्खलन को रोकने या इसके नुकसान को कम करने के लिए कई और उपाय किए जा सकते हैं. जैसे गैबियन वॉल (Gabian walls) या फिर साइल नेल वॉल (Soil nail walls) या रॉकफॉल बैरियर. इसका उदाहरण देते हुए वे कहते हैं, “बद्रीनाथ के पास नंदप्रयाग वहां पर एक लैंडस्लाइड बहुत समय से एक्टिव है. वहां पर हम लोगों ने छोटी रोड को चौड़ा कर दिया. साथ ही हमने वहां एक मिट्टी का बांध बना दिया. इससे ये फायदा हुआ कि जब पहाड़ के ऊपर से मिट्टी आई तो इस बांध ने उसे रोड पर गिरने से रोका. इसे रॉकफॉल बैरियर (Rockfall Barrier) कहते हैं. इसके अलावा, उत्तराखंड में जरूरी है कि अच्छी तरह से स्टडी की जाए.”
केवल टेक्नोलॉजी से नहीं चलेगा काम
आगे डॉ रत्नाकर कहते हैं कि उत्तराखंड में आने वाली आपदाओं को रोकने के लिए केवल टेक्नोलॉजी से काम नहीं चल सकता. वे कहते हैं, “बद्रीनाथ जैसी जगह श्रद्धालु या पर्यटक जाने बंद नहीं होंगे और न ही ये कम होने वाले हैं. बल्कि ये आने वाले समय में बढ़ेंगे ही. ऐसे में जो हमारा पहाड़ों में काम करना है उसके लिए अच्छी तरह से प्लानिंग करनी पड़ेगी. साथ ही सरकार को पहाड़ों के लिए फंड्स और मिलने चाहिए. अभी जो फंड्स दिए जाते हैं पहाड़ी क्षेत्रों के लिए उनमें लैंडस्लाइड के लिए अलग से कोई फंड नहीं होता है. ऐसे में टेंडर जो बन रहे हैं उनमें पानी के बहाव (Drainage) का ध्यान रखना चाहिए आदि. मौजूदा समय में देखें तो मान लीजिए उत्तराखंड में 200 लैंडस्लाइड एक्टिव हैं ऐसे में सरकार को ये करना चाहिए कि साल में 10 या 12 को नहीं बल्कि 50-60 का टारगेट रखना चाहिए ताकि दुर्घटनाओं से बचा जा सके. इसके लिए बस हमें फंड बढ़ाने की जरूरत है.”