आज की दुनिया में मेंटल हेल्थ केवल एम्प्लोयी ही नहीं बल्कि एम्प्लॉयर के लिए भी एक चिंता की वजह बन गया है. मेंटल हेल्थ सीधे तौर पर काम करने वाले की प्रोडक्टिविटी, कंपनी से जुड़ाव और उसके काम करने के तरीके को प्रभावित कर सकती है. लेकिन ऐसे में एक बड़ा सवाल अक्सर उठता है: क्या अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल करना केवल कर्मचारियों की ही जिम्मेदारी है? कंपनी की नहीं?
भारत के लेबर लॉ और कई दूसरे मामलों में कोर्ट ने इसमें सीधे तौर पर अपनी टिप्पणी की है.
ऑफिस में कर्मचारी की मेंटल हेल्थ है सबसे जरूरी
मेंटल हेल्थ कर्मचारियों की वर्क प्रोडक्टिविटी को बेहतर करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है. ऑफिस में काम करने की जगह स्ट्रेस भरी हो सकती है. ये ज्यादातर मामलों में मैनेजमेंट पर निर्भर करता है कि वह ऑफिस को काम करने के लिए कैसा स्पेस बनाते हैं. हालांकि, ये खुद कर्मचारी पर भी निर्भर करता है कि वे अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल कैसे रखते हैं. इसके लिए वे अलग-अलग उपाय कर सकते हैं, जैसे:
1. सेल्फकेयर करना और जरूरी होने पर दूसरों से मदद लेना.
2. अपने मैनेजर या एचआर से ऑफिस स्ट्रेस के बारे में बात करना.
3. वर्कआउट से बचने के लिए काम और पर्सनल लाइफ के बीच में बैलेंस बनाए रखना.
हालांकि, जिम्मेदारी केवल कर्मचारियों पर ही खत्म नहीं होती. कंपनी की भी जिम्मेदारी होती है. ऑफिस का माहौल कैसा हो ये सबसे बड़ी जिम्मेदारी एम्प्लॉयर यानि आपकी कंपनी की होती है. इसके लिए कंपनी को अलग-अलग नियम बनाने चाहिए. साथ ही वे अपने कर्मचारियों की मेंटल हेल्थ को लेकर अपनी आंखें नहीं मूंद सकते, क्योंकि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
भारत का कानून क्या कहता है?
भारत में वर्कप्लेस और मेंटल हेल्थ को लेकर चर्चा बढ़ रही है. हालांकि, भारतीय कानून में भी इसको लेकर कई चीजें कही गई हैं:
1. मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 (The Mental Healthcare Act, 2017)
भारत में कर्मचारियों के लिए मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 दिया गया है. इस अधिनियम का उद्देश्य मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को मेंटल हेल्थ केयर सर्विस देना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है. हालांकि, ये विशेष रूप से वर्कप्लेस से जुड़ा नहीं है, लेकिन इस एक्ट का कंपनियों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. अधिनियम की कई विशेषताएं हैं:
- मेंटल हेल्थकेयर फैसिलिटी तक पहुंच का अधिकार.
- मानसिक बीमारी के कारण भेदभाव से सुरक्षा.
- गरिमा और गोपनीयता के साथ जीवन जीने का अधिकार.
2. फैक्ट्री एक्ट, 1948 (The Factories Act, 1948)
फैक्ट्री अधिनियम, 1948 एक पुराना लेकिन प्रासंगिक कानून है जो एम्प्लॉयर को बताता है कि वे अपने एम्प्लोयी के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाएं. हालांकि यह सीधे मेंटल हेल्थ से जुड़ा नहीं है, लेकिन एक हेल्दी वर्कस्पेस स्ट्रेस को कम करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.
3. ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ और वर्किंग कंडीशन कोड, 2020
ये कानून भी कर्मचारियों के लिए एक सेफ वर्कस्पेस की वकालत करता है. एक सेफ वर्कस्पेस में केवल फिजिकल सेफ्टी ही नहीं बल्कि मेंटल वेलनेस भी शामिल होती है. इसमें सरकार का मकसद एम्प्लॉयर को बताना है कि वे हैरेसमेंट, ओवर वर्कलोड और बुलिंग से जुड़े नियम बनाएं.
मेंटल हेल्थ से जुड़े कुछ जरूरी केस
भारत में पहले भी कई ऐसे केस आ चुके हैं जिनमें कोर्ट ने जरूरी टिप्पणी की है. ये मामले मेंटल हेल्थ मुद्दे को लेकर आ चुके हैं:
1. के. चिन्नपांडी बनाम तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम, 2006
इस मामले में कर्मचारी के. चिन्नपांडी ने अपने सीनियर अधिकारियों के हरासमेंट के कारण वर्कप्लेस स्ट्रेस से सुसाइड कर ली थी. इस पूरे मामले को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि इसके लिए एम्प्लॉयर जिम्मेदार है. क्योंकि ये उनकी ड्यूटी है की वे अपने काम की जगह को अच्छा माहौल बनाएं. इस मामले ने एंप्लॉयर की भूमिका को लेकर बात की गई. साथ ही कहा गया कि वर्कप्लेस को स्ट्रेस फ्री बनाने के लिए कंपनियां काम करें.
2. राजश्री भोसले बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2007
राजश्री भोसले, एक पब्लिक सेक्टर में काम करती थीं. उनके सीनियर्स उनका हरासमेंट करते थे, जिसकी वजह से उनकी मेंटल हेल्थ काफी प्रभावित हुई. इस मामले को कोर्ट में ले जाया गया जिसमें अदालत ने कहा कि वर्कप्लेस हरासमेंट और मेंटल स्ट्रेस बड़ा मामला है, एम्प्लॉयर को इसे लेकर कुछ कदम उठाना चाहिए.
3. पी. रामनाथ पिल्लई बनाम केरल राज्य, 2019
पी. रामनाथ पिल्लई बनाम केरल राज्य के मामले में, कर्मचारी को वर्कस्पेस पर हरासमेंट की वजह से गंभीर मेंटल हेल्थ समस्याओं का सामना करना पड़ा. कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि हरासमेंट और दूसरी ऐसी स्थितियां मेंटल हेल्थ को खराब करती हैं, इन्हें सहन नहीं किया जा सकता है. इसे एम्प्लॉयर द्वारा सुलझाया जाना चाहिए.
ऐसे में जरूरी है कि हर कंपनी अपने यहां एक ऐसा माहौल बनाएं कि सभी वहां काम कर सकें. इसके लिए उन्हें मेंटल हेल्थ पॉलिसी बनानी चाहिए. इसमें वर्क लाइफ बैलेंस, मेंटल हेल्थ वेकेशन, हरासमेंट से जुड़े नियम बनाए जाने चाहिए. इसके अलावा, मैनेजर्स और HR को कर्मचारियों के साथ नियमित मीटिंग करनी चाहिए ताकी यह पता लगाया जा सके कि माहौल कैसा है.