Rajasthan: मेवाड़ राजघराने का संपत्ति विवाद अब सड़क पर पहुंच गया है. नए महाराणा विश्वराज सिंह की 25 नवंबर 2024 को ताजपोशी के बाद विवाद काफी बढ़ गया है. 400 साल पुराने उदयपुर सिटी पैलेस (Udaipur City Palace) में एंट्री को लेकर राजपरिवार में ठन गई है.
सिटी पैलेस के बाहर हंगामा होने के बाद जमकर पथराव हुआ. आइए जानते हैं आखिर विश्वराज सिंह मेवाड़ (Vishvaraj Singh Mewar) के राजतिलक रस्म पर क्यों बवाल हुआ और इस सिटी पैलेस को किसने बनवाया था व यह कितना भव्य है?
खून से तिलक लगाकर गद्दी पर बैठाया गया
उदयपुर के राजपरिवार के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे और नाथद्वारा से बीजेपी विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ का सोमवार को चित्तौड़गढ़ किले में पारंपरिक राजतिलक हुआ. मेवाड़ परिवार महाराणा प्रताप का वंशज है. ऐसे में उन्हें गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई. 21 तोपों की सलामी के साथ खून से तिलक लगाकर विश्वराज सिंह को गद्दी पर बैठाया गया. आपको मालूम हो कि 1531 के बाद पहली बार चित्तौडगढ़ दुर्ग में तिलक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इससे पहले महाराणा सांगा के बेटे तत्कालीन महाराणा विक्रमादित्य का तिलक हुआ था.
राजतिलक रस्म पर क्यों हुआ बवाल
विश्वराज सिंह का राजतिलक होने के बाद सिटी पैलेस में धूणी माता के दर्शन का कार्यक्रम था. लेकिन सिटी पैलेस में विश्वराज सिंह और उनके समर्थकों को घुसने नहीं दिया गया. इस पर जमकर बवाल हुआ दरअसल, महेंद्र सिंह और उनके छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच काफी समय से संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है. अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बेटे लक्ष्य राज सिंह ने विश्वराज सिंह के राजतिलक पर नाखुशी जताई है. ऐसे में राजतिलक की परंपरा निभाने से रोकने के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस के गेट बंद कर दिए गए थे.
सिटी पैलेस वर्तमान में अरविंद सिंह मेवाड़ के अधीन है, जो दिवंगत महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ की वसीयत के आधार पर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज सिंह के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है. विश्वराज सिंह और उनके समर्थकों ने महल में प्रवेश करने से रोके जाने पर उदयपुर सिटी पैलेस के बाहर डेरा डाल दिया. विश्वराज सिंह के समर्थकों ने पथराव शुरू कर दिया और महल में जबरन घुसने की कोशिश की. महल के भीतर मौजूद लोगों ने जवाबी कार्रवाई की, जिससे हालात और बिगड़ गए.
महाराणा भूपाल सिंह ने भगवत सिंह को लिया था गोद
मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के बीच संपत्ति विवाद एक बार फिर तूल पकड़ लिया है. भूपाल सिंह 1930 से 1955 तक महाराणा रहे. भूपाल सिंह को कोई संतान नहीं हुआ. इसके बाद भूपाल और उनकी पत्नी वीरद कुंवर ने परिवार के ही एक सदस्य प्रताप सिंह के बेटे भगवत सिंह को गोद ले लिया. मेवाड़ के पूर्व राजघराने के आखिरी महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के दो बेटे और एक बेटी हैं. बड़े बेटे का नाम महेंद्र सिंह मेवाड़ और छोटे बेटे का नाम अरविंद सिंह मेवाड़ है. बेटी का नाम योगेश्वरी है. महेंद्र सिंह के बेटे विश्वराज सिंह और अरविंद सिंह के पुत्र के नाम लक्ष्यराज सिंह है.
महेंद्र सिंह मेवाड़ ने अपने पिता पर जब कर दिया था केस
महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ ने अपने जीवनकाल में कई संपत्तियां बेच दी थी. वह बची कुछ और संपत्ति को बेचना चाह रहे थे. इसके लेकर भगवत सिंह और उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह में विवाद हो गया. महेंद्र सिंह ने साल 1984 में संपत्ति विवाद को लेकर अपने पिता के खिलाफ केस दर्ज करा दिया था. मामला कोर्ट में चला गया. भगवत सिंह इससे इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपनी वसीयत में संपत्तियों का एग्जीक्यूटर छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को बना दिया. महेंद्र सिंह को अपनी प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बेदखल कर दिया.
यहीं से सपंत्ति विवाद की कानूनी लड़ाई शुरू हुई. मामला कोर्ट में 37 सालों तक चला. इसके बाद साल 2020 में उदयपुर की जिला अदालत ने फैसला सुनाया. इसके मुताबिक जो संपत्तियां भगवत सिंह ने अपने जीवनकाल में बेच दी थीं, उन्हें दावे में शामिल नहीं किया जाएगा. इस फैसले के बाद सिर्फ तीन संपत्ति शंभू निवास पैलेस, बड़ी पाल और घास घर ही बची. जिला अदालत ने इसे महेंद्र सिंह, अरविंद सिंह और योगेश्वरी के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. लेकिन होईकोर्ट ने साल 2022 में जिला अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा कि अंतिम निर्णय होने तक इन तीनों ही प्रॉपर्टी पर अरविंद सिंह मेवाड़ का ही अधिकार रहेगा. मौजूदा समय में अरविंद सिंह मेवाड़ अपने बेटे लक्ष्यराज सिंह के साथ सिटी पैलेस उदयपुर में रहते हैं.
सिटी पैलेस नागर, राजपूत और मुगल शैली का है मिश्रण
उदयपुर का सिटी पैलेस अपनी खूबसूरती के लिए देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फेमस है. इसे देखने हर दिन हजारों पर्यटक आते हैं. सिसोदिया राजपूत के वंशज महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने उदयपुर सिटी पैलेस को साल 1559 में बनवाना शुरू किया था. हालांकि वह इसको पूरा नहीं करवा पाए थे. इसको बनवाने में 22 राजाओं ने अपना योगदान दिया.
इन सभी राजाओं ने अपने-अपने कार्यकाल में कुछ न कुछ सिटी पैलेस में निर्माण करवाया. अपने अंदाज में इस महल को रूप दिया. इसी के कारण ये राजमहल इतना भव्य है. सिटी पैलेस कोई एक महल नहीं है बल्कि कई पैलेस का समूह है. इसको पूरा बनने में 400 सालों का समय लगा था. इसके कैंपस में 11 महल हैं. सिटी पैलेस नागर, राजपूत और मुगल शैली का मिश्रण है.
पिछोला झील के किनारे पर बना हुआ है सिटी पैलेस
उदयपुर का सिटी पैलेस पिछोला झील के किनारे पर बना हुआ है. इस राजमहल को शीश महल भी कहा जाता है क्योंकि इसमें हजारों शीशे का इस्तेमाल किया गया है. यह राजमहल अपनी खूबसूरत बालकनी और टॉवर के लिए भी जाना जाता है. इस राजमहल की लंबाई 244 मीटर और ऊंचाई 30.4 मीटर है.
त्रिपोलिया गेट का निर्माण
सिटी पैलेस के मुख्य द्वार त्रिपोलिया गेट का निर्माण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने साल 1710 में कराया था. इसके ऊपर हवा महल बना हुआ है. इसका निर्माण महाराजा भीम सिंह ने करवाया था. गेट के सामने की दीवार अगद कहलाती है, यहां हाथियों की लड़ाई होती थी. सिटी पैलेस के कुछ हिस्से को दो होटलों में बदल दिया गया है. पैलेस के कमरे में एक पंखा रखा हुआ है.
इसे चलाने के लिए बिजली की नहीं बल्कि मिट्टी के तेल की जरूरत होती है. सिटी पैलेस के एक हिस्से में म्यूजियम बना है. यहां एंट्री फीस 400 रुपए प्रति व्यक्ति है. यहां महाराजाओं की कई चीजें रखी हैं. महल में झरोखे, बरामदे, घुमावदार गलियां बेहद आकर्षक लगती हैं. इस राजमहल में घूमने वालों का वैसे तो पूरे साल तांता लगा रहता है, लेकिन यहां जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च महीने तक रहता है.