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कोरोना काल में लापता हुई बच्ची को पहुंचाया वापस घर, अब तक 700 बच्चों को मिलवा चुकी हैं परिवार से

कोरोना काल में लापता हुई बच्ची को बालकुंज टीम ने तीन साल बाद पहुंचाया है. बालकुंज छछरौली की सुप्रीडेंट मोना चौहान गुमशुदा बच्चों के लिए मसीहा बन चुकी हैं.

Representational Image (Photo: Pixabay) Representational Image (Photo: Pixabay)
हाइलाइट्स
  • कोरोना काल में लापता हुई करीब 10 वर्षीय बच्ची आज तीन साल बाद अपने घर पहुंची

  • 10 सालों में 700 मिसिंग बच्चों को घर पहुंचा चुकी है मोना

हरियाणा के यमुनानगर जिले से कोरोना काल में लापता हुई करीब 10 वर्षीय बच्ची आज तीन साल बाद अपने घर पहुंच गई है. बच्ची को सकुशल अपने सामने देख परिवार में खुशी का ठिकाना नही है. घर में त्यौहार जैसा माहोल है और बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है.

कोरोना काल में अपने घर से रास्ता भटक कर लापता हुई सोनिया (काल्पनिक नाम) अब तीन साल बाद अपने घर पहुंची है. अपनी लाडली को सकुशल देख उम्र के आखरी पड़ाव पर बैठी दादी को मानो जिंदगी भर की तपस्या का फल मिल गया हो. मां ने बेटी को जब गले लगाया तो दोनों के बीते तीन सालों के जख्मों पर मरहम लग गया.

पिता, ताया, चाचा हर किसी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. केक काटकर बेटी के नए जन्म को सेलिब्रेट किया गया. आस पड़ोस और रिश्तेदार भी खबर मिलते ही सोनिया को देखने आ रहें हैं. 

बाल आश्रमों में रही मासूम

सोनिया (काल्पनिक नाम) के लिए तीन सालों का यह सफर इतना आसान नहीं था. किसी तरह बच्ची अंबाला चिल्ड्रन शेल्टर होम पहुंच गई तो खाने पीने को मिलने लगा. लेकिन वह इस दौरान किसी से बात नही करती थी, और न ही अपने बारे में कुछ बता पाती. इसके बाद उसे करनाल और फिर कुरूक्षेत्र के बाद यमुनानगर के बाल कुंज शिफ्ट कर दिया गया. 

मोना चौहान बनीं मसीहा

यमुनानगर छछरौली बालकुंज में इस बच्ची को सुप्रीडेंट मोना चौहान मिलीं. बस यहीं से सोनिया की किस्मत ने उसका साथ देना शुरू कर दिया. मोना ने बच्ची के साथ भावनात्मक नजदीकियां बनाई, और उसकी बड़ी बहन बनकर उसके दिल को टटोला. उसे परिवार की अहमियत के बारे में समझाया. जिसके बाद बच्ची ने अपनी चुप्पी तोड़ी. उसे अपने बारे में ज्यादा तो कुछ नही पता था, सिर्फ बाल्मिकी बस्ती का बार-बार जिक्र कर रही थी. जिसके बाद मोना चौहान ने दिन रात एक कर बच्ची का परिवार ढूंढ निकाला. 

बच्ची के परिवार ने तीन साल पहले पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करवा रखी थी. पंचकुला क्राइम ब्रांच भी बच्ची की तलाश में प्रयास कर रही थी. लेकिन 3 सालों के लंबे इंतजार ने परिजनों की उम्मीद तोड़ दी थी. आस पड़ोस और रिश्तेदार के लोग भी समझने लग गए थे कि शायद अब बच्ची जिंदा नहीं रही होगी. 

10 सालों में 700 मिसिंग बच्चों को घर पहुंचा चुकी है मोना

बता दें कि मोना चौहान पिछले दस सालों में करीब 700 मिसिंग बच्चों को उनके परिवार से मिलावा चुकी है. यह बच्चे देश के अलग- अलग राज्यों से थे. हर केस की एक अलग मार्मिक कहानी होती है जिसे जान मोना खुद को रोक नहीं पाती और गुमशुदा बच्चों के परिवार ढूंढने में जी-जान लगा देती हैं. 

बाल कुंज के ऑफिसर इन चार्ज राजिंदर बहल ने भी मोना को बधाई देते हुए कहा कि उनकी कामना है कि मोना चौहान इसी तरह संस्थान का नाम रोशन करती रहें.

(आशीष शर्मा की रिपोर्ट)