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Mohammad Usman Birth Anniversary: 'नौशेरा का शेर' ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, पाकिस्तान का ठुकराया था ऑफर, बचपन में कुएं में कूदने की कहानी जानिए

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को देश नौशेरा के शेर के नाम से जानता है. 36 साल की उम्र में वो देश के लिए शहीद हो गए थे. मोहम्मद उस्मान बचपन से ही दिलेर थे. एक बार जब वो 12 साल के थे, तब एक बच्चा कुएं में गिर गया था. मोहम्मद उस्मान कुएं में कूद गए थे और बच्चे को सुरक्षित निकाल लाए थे.

Brigadier Mohammad Usman Brigadier Mohammad Usman

'नौशेरा का शेर' नाम से मशहूर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान साल 1948 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के हीरो थे. ब्रिगेडियर उस्मान सिर्फ 36 साल की उम्र में शहीद हुए थे. मोहम्मद उस्मान उस जंग में शहीद होने वाले सबसे बड़े अधिकारी थे. वो 3 जुलाई 1948 को शहीद हुए थे. मोहम्मद उस्मान को बचपन से हकलाने की बीमारी थी. बचपन में एक बार एक बच्चे को बचाने के लिए मोहम्मद उस्मान ने कुएं में छलांग लगा दी थी.

बनारस में कोतवाल थे उस्मान के पिता-
उनका जन्म आज यानी 15 जुलाई साल 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बाबीपुर गांव में हुआ था. उनके पिता काजी मोहम्मद फारुक बनारस के कोतवाल थे. अंग्रेजों ने उनको 'खान बहादुर' की उपाधि दी थी. मोहम्मद उस्मान की 3 बड़ी बहनें और 2 भाई थे. उनके एक भाई गुफरान भी सेना में ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हुए. मेजर जनरल वीके सिंह ने अपनी किताब 'लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी' में मोहम्मद उस्मान के बचपन की एक कहानी का जिक्र किया है. 12 साल की उम्र में उस्मान रास्ते से जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक बच्चा कुएं में गिर गया है. उन्होंने कुएं में छलांग लगा दी और बच्चे को बाहर निकाल लाए.

मानेकशॉ से 4 दिन सीनियर थे उस्मान-
मोहम्मद उस्मान ने साल 1932 में सेना में भर्ती होने के लिए आवेदन किया था और सैंडहर्स्ट के लिए चुने गए थे. सैंडहर्स्ट से पास हुए कैडेट्स को KCIOs यानी किंग्स कमीशन्ड ऑफिसर कहा जाता था और IMA से पास हुए कैडेट्स को ICOs यानी इंडियन कमीशन्ड ऑफिसर कहा जाता था. उस साल बैच में 45 कैडेट्स थे. जिसमें से 10 भारतीय थे. मोहम्मद उस्मान सेना में मानेकशॉ ने पूरे 4 दिन सीनियर थे. इसका भी जिक्र वीके सिंह ने अपनी किताब में किया है. मोहम्मद उस्मान 1 फरवरी 1934 को कमीशन्ड हुए थे.

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मोहम्मद उस्मान ने पाकिस्तान का ऑफर ठुकराया-
जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना तो सेना का भी बंटवारा हुआ.डिवीजन का हेडक्वार्टर, 50 पैरा और 77 पैरा ब्रिगेड भारत के हिस्से में आई और 14 पैरा ब्रिगेड पाकिस्तान को मिला. इसके साथ जवानों और अफसरों को किसी एक देश चुनने का भी अधिकार दिया गया.

उस समय मोहम्मद उस्मान बलूच रेजीमेंट में थे और उस समय ब्रिगेडियर के पद पर पहुंच चुके थे. उस समय मोहम्मद उस्मान को मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन उस्मान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. इसके बाद पाकिस्तान ने उनपर 50 हजार रुपए का इनाम रख दिया था.

ब्रिगेडियर के लिए मंगवाया गया था पलंग-
आजादी के बाद साल 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर में अघोषित युद्ध शुरू कर दिया. पाकिस्तान पुंछ तक कब्जा करके कश्मीर को भारत से काटना चाहता था. इसी के तहत उसने झंगड़ पर कब्जा किया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना धीरे-धीरे नौशेरा की तरफ बढ़ रही थी. ब्रिगेडियर उस्मान की अगुवाई में भारतीय सेना झंगड़ पर कब्जा कर लिया. जब पाकिस्तान ने झंगड़ पर कब्जा किया था, तब ब्रिगेडियर उस्मान ने प्रण लिया था कि जब तक झंगड़ पर कब्जा नहीं करेंगे, तब तक पलंग पर नहीं सोएंगे. जब भारतीय सेना ने झंगड़ पर कब्जा कर लिया, तब ब्रिगेडियर उस्मान के लिए पलंग मंगवाया गया.

पाकिस्तान का नौशेरा पर हमला-
6 फरवरी 1948 को पाकिस्तान ने नौशेरा पर बड़ा हमला किया. ब्रिगेडियर की अगुवाई में भारतीय सेना ने उस दिन जीत हासिल कर ली. ब्रिगेडियर को नौशेरा का शेर कहा जाने लगा. ब्रिगेडियर की बहादुरी से पाकिस्तान जल रहा था. पाकिस्तान ने ब्रिगेडियर उस्मान का सिर कलम करने वाले को 50 हजार रुपए इनाम देने का ऐलान कर दिया.

मोहम्मद उस्मान की शहादत-
3 जुलाई 1948 को पाकिस्तान ने झंगड़ पर फिर से हमला किया. ब्रिगेडियर उस्मान मोर्चे पर डटे रहे. इस दौरान एक उनके करीब गिरा और मोहम्मद उस्मान शहीद हो गए. उन्होंने आखिरी शब्द कहा था- हम तो जा रहे हैं, लेकिन देश की जमीन के एक टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा ना होने पाए. ब्रिगेडियर उस्मान के जनाजे को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में दफनाया गया. मरणोपरांत उनको महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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