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UNESCO ने 700 साल पुराने Moidams को World Heritage List में किया शामिल, यहां इस Assam के पिरामिड के बारे में जानिए सबकुछ

Moidams are Now UNESCO World Heritage Site: मोइदाम को पहली बार केंद्र सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास विश्व धरोहर स्थल घोषित करने के लिए भेजा था. उस समय यूनेस्को ने इसे संभावित सूची में शामिल कर लिया था. अब जाकर इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है.

Moidams (Photo: PTI) Moidams (Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • 10 सालों से भारत सरकार मोइदाम को विश्व धरोहर घोषित करने की कर रही थी मांग 

  • ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं के बने हैं कब्र स्थल

यूनेस्को (UNESCO) ने असम के चराइदेव स्थित मोइदाम को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है. यह निर्णय शुक्रवार को दिल्ली में चल रहे विश्व धरोहर समिति (WHC) के 46वें सत्र के दौरान लिया गया. मोइदाम का इतिहास 700 साल पुराना है. यहां पर चीन से आई ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं के कब्र स्थल बने हुए हैं. मोइदाम नॉर्थ इंडिया का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है. इसे असम का पिरामिड भी कहा जाता है.

 यूनेस्को ने भेजी थी जांच टीम 
 मोइदाम को पहली बार केंद्र सरकार ने  15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास विश्व धरोहर स्थल घोषित करने के लिए भेजा था. उस समय यूनेस्को ने इसे संभावित सूची में शामिल कर लिया था.  इसके बाद भारत ने 2023 से 2024 के लिए  UNESCO की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने के लिए देश की ओर से नामांकन के रूप में  मोइदाम का नाम दिया था.

इसके बाद यूनेस्को की एक जांच टीम भारत आई थी. जांच टीम ने मोइदाम को हरी झंडी दे दी थी. अब मोइदाम यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में जगह बनाने वाली पूर्वोत्तर भारत की पहली सांस्कृतिक संपत्ति बन गई है. काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यानों के बाद यह असम का तीसरा विश्व धरोहर स्थल है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा ने खुशी जताते हुए असम के लोगों को बधाई दी.

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क्या है मोइदाम
मोइदाम शब्द ताई शब्द फ्रांग-माई-डैम या माई-टैम से लिया गया है. फ्रांग-माई का अर्थ है कब्र में डालना या दफनाना और डैम का अर्थ है मृतक की आत्मा. मोइदाम पिरामिड सरीखी अनूठी टीलेनुमा संरचनाएं हैं. इनका इस्तेमाल ताई-अहोम वंश के लोग अपने राजवंश के सदस्यों को उनकी प्रिय वस्तुओं के साथ दफनाने के लिए करते थे.

पहले मृतकों को उनके व्यक्तिगत सामान के साथ दफनाया जाता था, लेकिन 18वीं शताब्दी के बाद अहोम शासकों ने दाह संस्कार की हिंदू पद्धति को अपनाया और हड्डियों और राख को दफन किया जाने लगा. चीन से आए ताई-अहोम राजवंश ने असम में मौजूद इस स्थल पर लगभग 600 साल तक शासन किया था. इन्होंने उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न हिस्सों में अपनी राजधानी स्थापित की थी. अहोम राजवंश की स्थापना चाओलुंग सुकफा ने की थी.

इस समय करवाया था इन दफन टीलों का निर्माण
कहा जाता है कि चराइदेव स्थित इस दफन टीलों का निर्माण 13वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान ताई-अहोम राजाओं ने किया था. यह शाही मैदान केवल असम राज्य के चराइदेव में ही पाए जाते हैं. यहां 90 से अधिक टीलों का घर है. मोइदाम अहोम राजाओं और रानियों के दफन स्थल है.

मोइदाम अर्धगोलाकार दफन टीले हैं, जो मृतक की स्थिति के आधार पर आकार में भिन्न होते हैं. इसमें एक कक्ष, प्रसाद के लिए ईंट की संरचना के साथ एक मिट्टी का टीला और पश्चिम की ओर एक धनुषाकार प्रवेश द्वार के साथ एक अष्टकोणीय सीमा दीवार होती है. मोइदाम तुलना मिस्र के पिरामिडों से की जा सकती है.