हमारे सपने बड़े होने चाहिए. हमारी महत्त्वाकांक्षा ऊंची होनी चाहिए. हमारी प्रतिबद्धता गहरी होनी चाहिए और हमारे प्रयत्न बड़े होने चाहिए. ये कहना था धीरूभाई अंबानी का जिन्होंने एक साधारण परिवार से दुनिया के सबसे अमीर आदमी में से एक होने का संघर्ष भरा रास्ता तय किया. धीरूभाई अंबानी की सफलता की कहानियां बहुत सी है. इंटरनेट पर अगर आप उनका नाम डालकर सर्च करेंगे तो आपको उनकी सफलता की तमाम कहानियां मिल जाएगी. लेकिन आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे किस्सों के बारे में बताएंगे, जो उन्हें औरों से अलग बनाते हैं.
जोखिम उठाना आगे बढ़ने का मंत्र है
हम सभी अपने जीवन में इस मकसद से काम करते हैं, कि आज नहीं तो कल हमें सफलता जरूर मिलेगी. लेकिन हम में से बहुत कम लोग हैं जो जिंदगी में रिस्क फैक्टर में विश्वास रखते हैं. लेकिन धीरूभाई अंबानी कभी भी अपनी जिंदगी में रिस्क लेने से पीछे नहीं हटे. उनके बारे में एक बहुत मशहूर किस्सा है कि, जब उनको पहली तनख्वाह मिली ढाई सौ रुपए कि तो वो उन पैसों से तुरंत सामने के फाइव स्टार होटल में चाय पीने चले गए. ये देखकर उनके साथ काम करने वाले एक को-वर्कर ने आश्चर्य से पूछा कि तुम इतने कम पैसे कमाते हो, और उसकी तुमने चाय पी ली, फिर अपने परिवार का पेट कैसे भरोगे? इस पर धीरूभाई बोले की "मैं देखना चाहता हूं कि मेरे साथ ढाई सौ रुपए की चाय पीने वाले लोग बातें क्या करते हैं? क्या सपने हैं उनके? और उस ढाई सौ रुपए में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है." धीरूभाई अंबानी के अंदर जोखिम उठा कर काम करने का जो जज्बा था, वो ही नतीजा है कि आज केवल उनका नाम ही काफी है.
कॉन्फिडेंस हो तो धीरूभाई अंबानी जैसा
एक बार धीरुभाई अंबानी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय कहा था कि, "हमारे देश में लोग कहते हैं कि रिलायंस देश के उद्योगों का वो बुलबुला है जिसमें फूटकर छा जाने की कूवत है. मैं कहता हूं कि मैं वो बुलबुला हूं जो फूट चुका है." दरअसल उनके इस स्टेटमेंट पर उनकी काफी आलोचना हुई थी. उनके आलोचकों ने यहां तक कह दिया था धीरूभाई में एरोगेंस है, और वो ज्यादा दिन नहीं चलेगा. लोग कह रहे थे कि अब ये बर्बाद हो जाएगा. लेकिन धीरुभाई ने कभी भी खुद के ऊपर भरोसा कम नहीं किया. और इसी का तो नतीजा है की आज रिलायंस देश का सबसे बड़ा उद्योग घराना है. इस देश के उद्योग के लिए अंबानी का नाम एक होप का नाम है. इस नाम के आते ही तमाम संशय, विवाद, आरोप सामने आ जाते हैं. पर एक तथ्य ये भी है कि सब कुछ होते हुए अपनी क्षमता को साबित करने का अंदाज भी यहां से आता है.
अरब के शेख को हिंदुस्तान की मिट्टी बेच दी
दरअसल धीरूभाई के शिक्षा पर नजर डाली जाए तो वो काफी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे. लेकिन शुरू से ही उनमें बिजनेस की समझ काफी अच्छी थी. देश-विदेश में घुम-घुम कर नौकरी कर के लौटने के बाद धीरूभाई ने अपना खुद का बिजनेस स्टार्ट करने की ठानी. सबसे पहले अपने भाई से कुछ पैसे लेकर उन्होंने मसालों का व्यापार करना शुरू किया, और धीरे-धीरे उन्हें इस बिजनेस से काफी मुनाफा भी होने लगा. मुंबई के भात बाजार में उन्होंने अपना ऑफिस खोल लिया. अदन में नौकरी करते वक्त उनके कांटेक्ट बन ही गए थे. तो जिंजर, कार्डेमम, टर्मरिक और मसाले एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया. पर एक मजेदार बात ये थी कि सऊदी अरब का एक शेख अपने यहां गुलाब गार्डन बनवाना चाहता था, और उसके लिए उसे मिट्टी चाहिए थी. धीरूभाई ठहरे बिजनेस के खिलाड़ी, और उनका एक ही उसूल था, किसी को ना नहीं कहते थे.
धीरूभाई अंबानी के जीवन के ये किस्से सिर्फ ये बताती हैं कि हर किसी को अपने काम पर, और अपने ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए. जब आप अपने ऊपर भरोसा करेंगे, तभी दूसरे आप के ऊपर भरोसा कर पाएंगे.
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