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हिंदू मंदिर में 5 पीढ़ियों से मुस्लिम परिवार कर रहा है संगीत वादन, अब बच्चे भी आगे बढ़ाएंगे परंपरा

शेख जलील अपने परदादा शेख मथा साहेब को याद करते हुए बताते हैं कि उनके दादा जो कि लक्ष्मी जनार्दन मंदिर में संगीत बजाते थे, उन्हें मंदिर की तरफ से एक एकड़ जमीन भेंट की गई थी. उन्होंने बताया कि उनके दादा को ये भेंट मंदिर में संगीत बजाने के लिए मिला था.

हिंदू मंदिर में 5 पीढ़ियों ने मुस्लिम परिवार कर रहा है संगीत वादन हिंदू मंदिर में 5 पीढ़ियों ने मुस्लिम परिवार कर रहा है संगीत वादन
हाइलाइट्स
  • विवाद के बाद भी श्रद्धा से बजाते हैं संगीत

  • साल के 4 महीने बजाते हैं नादस्वर  

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और शायद यही इसकी खूबसूरती है. हालांकि कई बार धर्म और जाति के आधार पर लोगों को बांट दिया जाता है, लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो इस भेदभाव से कोसों दूर हैं. कर्नाटक के उडुपी जिले के कौप में एक ऐसे शख्स हैं, जो मुसलमान होने के बावजूद मंदिरों में नादस्वर बजाते हैं. उडुपी जिले के कौप में एक मूराने मारी गुड़ी (तीसरा मारी मंदिर) है, जहां पर पुजारी पूजा करते हैं, साथ ही वाद्य यंत्रों के साथ देवी का गीत गाया जाता है. देवी की आराधना के लिए कई तरह के वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है. इसी में से नादस्वर बजाने वाले व्यक्ति का नाम शेख जलील साहेब है. 

विवाद के बाद भी श्रद्धा से बजाते हैं संगीत
कौप उस वक्त काफी चर्चा में आया था जब मुस्लिम स्ट्रीट वेंडरों को मंदिर मेलों के दौरान दुकानें लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया था, क्योंकि उन्होंने हिजाब के फैसले के खिलाफ बंद का समर्थन किया था. इस विवाद के बावजूद भी जलील और उनके छोटे भाई शेख अकबर साहब शहर के मंदिरों में नादस्वर बजाते रहते हैं. उनका कहना है कि, "हम मंदिरों में संगीत बजाते हैं, लक्ष्मी जनार्दन मंदिर से लेकर तीन मारी गुड़ियों (मंदिरों) तक जब भी जरूरत पड़ती थी, हमें ही बुलाया जाता है. रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखने के बावजूद, ऊपर वाला हमें नादस्वर बजाने की ताकत दे रहा है." 

पांच पीढ़ियों से कर रहे हैं संगीत वादन
शेख जलील अपने परदादा शेख मथा साहेब को याद करते हुए बताते हैं कि उनके दादा जो कि लक्ष्मी जनार्दन मंदिर में संगीत बजाते थे, उन्हें मंदिर की तरफ से एक एकड़ जमीन भेंट की गई थी. उन्होंने बताया कि उनके दादा को ये भेंट मंदिर में संगीत बजाने के लिए मिला था. जलील ने ये भी बताया कि उनके पिता बबन साहब, दादा इमाम साहब और परदादा मुगदुम साहब ने विभिन्न मंदिरों की संगीत बजाया है.

साल के 4 महीने बजाते हैं नादस्वर  
वह लक्ष्मी जनार्दन मंदिर में त्योहारों के दौरान साल में लगभग चार महीने नादस्वर बजाते हैं. हर मंगलवार दोपहर को मूराने मारी गुड़ी (तीसरा मारी मंदिर) में देवी मारी के 'दर्शन' के दौरान उनकी उपस्थिति जरूरी है. दरअसल ये जनार्दन मंदिर के ट्रस्टियों द्वारा स्थापित एक प्रथा है. वहीं जलील के छोटे भाई अकबर मारी गुड़ी के नए मंदिर में नागस्वर बजाते हैं. अकबर शहर के कई अन्य मंदिरों में भी सेवा प्रदान करते हैं, जिनमें वेंकटरमण, कोप्पलंगडी वासुदेव और आसपास के कई देवस्थान शामिल हैं.

बच्चे भी करेंगे परंपरा का पालन
जलील और अकबर एक संयुक्त परिवार में कौप समुद्र तट के पास पाडु में एक मामूली घर में रहते हैं, जो नागा बनास (सर्प देवता का निवास) और देव स्थानों से घिरा हुआ है. अब जलील को कोई बेटा नहीं है, इसलिए उन्हें चिंता है कि इस खानदानी परंपरा को कौन आगे बढ़ाएगा. हालांकि उनके छोटे भाई अकबर के बच्चे इस परंपरा को जारी रखेंगे. उनका मानना है कि दोनों धर्मों के ईश्वर उन्हें एक बेहतर जीवन देंगे.