केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक की इजाजत दी जानी चाहिए. हाई कोर्ट का कहना है कि जिस महिला का पति दूसरी शादी करता है और पहली पत्नी को समान ट्रीटमेंट देने में विफल रहता है, तो महिला को इस आधार पर तलाक मिलना चाहिए.
केरल हाई कोर्ट ने शनिवार को कहा कि मुस्लिम महिलाओं को तब तलाक देने का अधिकार दिया जाना चाहिए जब पति ने दोबारा शादी कर ली हो और समान ट्रीटमेंट नहीं दे रहा हो. साथ ही पहली पत्नी को दूसरी के समान ही रहने की स्थिति प्रदान न कर रहा हो. अदालत ने कहा कि कुरान पत्नियों के समान व्यवहार पर जोर देता है. कोर्ट ने कहा कि अगर इसका उल्लंघन होता है तो महिलाओं को तलाक दे देना चाहिए.
पहली पत्नी की उपेक्षा होने पर दे सकती है तलाक
अदालत ने ये टिप्पणी थालास्सेरी (Thalassery) की एक मूल निवासी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही थी, जिसमें उसने अपने पति से तलाक की मांग की थी. उसके पति ने दोबारा शादी की है और वह उससे अलग रहता है. थालास्सेरी फैमिली कोर्ट में उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद वो मामला केरल हाई कोर्ट लेकर गयी थी.
न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि मुस्लिम तलाक अधिनियम की धारा 2 (8) (F) के अनुसार, महिला को तलाक की अनुमति तब दी जानी चाहिए जब पति के पुनर्विवाह के बाद पहली पत्नी की उपेक्षा की जा रही हो. पति द्वारा याचिकाकर्ता को दो साल से ज्यादा समय तक संरक्षण नहीं देना तलाक देने के लिए पर्याप्त आधार है.
महिला की याचिका पर दिया फैसला
महिला ने 2019 में तलाक के लिए याचिका दायर की थी. वह 2014 से अपने पति से अलग रह रही है. पति का दावा है कि इस अवधि के दौरान वह उसे सहायता प्रदान करता रहा है. अदालत ने हालांकि कहा कि तथ्य यह है कि वे सालों से अलग रह रहे हैं, जो यह दिखाता है कि पहली पत्नी के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है. पति भी 2014 के बाद पत्नी के साथ रहने का दावा नहीं करता है. पत्नी के साथ नहीं रहना और अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफलता कुरान की कही गई बातों का उल्लंघन है. जिसके आधार पर पहली पत्नी को केरल हाई कोर्ट ने तलाक दे दिया था.