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नक्सलियों ने कर दी थी पिता की हत्या, अब उसी इलाके में लोगों की सेवा कर रही डॉक्टर बेटी

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में भामरागढ़ तालुका नक्सली हिंसा से संवेदनशील इलाका माना जाता है. इस क्षेत्र में सुदूर आरेवाड़ा प्राइमरी हेल्थ सेंटर के तहत आने वाले मरकनार प्राइमरी हेल्थ यूनिट में कार्यरत है डॉक्टर भारती मालू बोगामी. डॉ भारती के पिता लाहेरी गांव के सरपंच थे.

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नक्सलियों ने जहां पिता की हत्या कर दी थी, बेटी डॉक्टर बन उसी क्षेत्र में आदिवासी समाज की सेवा कर रही है. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में नक्सल संवेदनशील भामरागढ़ तहसील के हजारों मरीज डॉ. भारती मालू बोगामी के सेवा से लाभान्वित हो रहे हैं. उच्च शिक्षा लेकर समाजसेवा का निश्चय कर अन्य युवाओं के लिए डॉ. भारती एक आदर्श बन चुकी हैं.

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में भामरागढ़ तालुका नक्सली हिंसा से संवेदनशील इलाका माना जाता है. इस क्षेत्र में सुदूर आरेवाड़ा प्राइमरी हेल्थ सेंटर के तहत आने वाले मरकनार प्राइमरी हेल्थ यूनिट में कार्यरत हैं डॉक्टर भारती मालू बोगामी. डॉ भारती के पिता लाहेरी गांव के सरपंच थे. जिला कांग्रेस कमिटी के जिलाध्यक्ष थे. माडिया गोंड आदिवासी समुदाय में वे खासे परिचित थे. नक्सलियों ने सरपंच पिता को 2002 में मौत के घाट उतार दिया. इसी समय भारती की बारहवी की परीक्षा चल रही थी.

दृढ़ निश्चय के साथ डॉक्टर भारती ने पिता के मौत के दूसरे दिन के परीक्षा देकर अच्छे अंक हासिल किए. बदतर वित्तीय हालात का सामना और ब्रेन ट्यूमर के बीमारी के बावजूद भारती ने पुणे के बीएसडीटी आयुर्वेद महाविद्यालय से 2011 को बीएएमएस डिग्री हासिल की. इसके तुरंत बाद डॉ. भारती गढ़चिरौली के इलाके में लौट आई, जहां उनके पिता की नक्सलियों ने हत्या की थी. अपने आदिवासी समाज में जाकर सेवा करने का उनका निश्चय अब रंग ला रहा है. जहां कई आदिवासी युवा उच्च शिक्षा को लेकर जागरूक हो गए हैं.

मरकनार प्राइमरी हेल्थ सेंटर में डॉ भारती अपने डॉक्टर पति के साथ हजारों आदिवासी मरीजों का इलाज कर रही है. विख्यात समाजसेवी बाबा आमटे उनकी प्रेरणा हैं. जिस इलाके में सड़के और मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है ऐसे क्षेत्र में डॉ. भारती निरंतर सेवा कर रही हैं. 24 घंटे कार्यरत रहते हुए स्वास्थ्य शिविर और ऑपरेशन कर दुर्गम क्षेत्र में इलाज आसान बना रही हैं. आदिवासी दुर्गम इलाकों में डॉक्टर्स की कमी है. लेकिन कोई डॉक्टर यहां आने के लिए नहीं तैयार नहीं है. ऐसे में नक्सली संवेदनशील और पिता की हत्या की जगह सेवा का अलख जगाने वाली डॉक्टर भारती का आदिवासी समुदाय में अभिनंदन हो रहा है.

डॉ भारती के इस निश्चय का उनके पति डॉ सतीश ने भली-भांति साथ दिया है. इन दोनों की पोस्टिंग जॉइनिंग के समय अलग-अलग जगह थी. लेकिन मूलतः महाराष्ट्र के बीड़ जिले के निवासी डॉक्टर सतीश को गढ़चिरौली जिले के आदिवासी समाज की तकलीफों का भारती के बातों से परिचय हुआ था. जिसके चलते अतिदुर्गम पिछड़े, नक्सली संवेदनशील इलाके में दोनों ने अपनी पोस्टिंग इच्छा से करा ली. अब आदिवासी समाज में बेहतर शिक्षा का वातावरण बने और कोई मरीज बिना इलाज के ना रहे इस और यह दंपति ध्यान दे रहा है. फिलहाल डॉ. सतीश भामरागढ़ तहसील आरेवाड़ा प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं.

महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला पिछले 4 दशकों से नक्सली हिंसा से जूझ रहा है. आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव भी प्रगति में बाधा बना है. डॉ. भारती ने इस स्थिति में बदलाव के लिए कदम उठाया है. जिसके फलस्वरूप आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति नई अलख भी जगी है. नक्सली हिंसा से दूर आदिवासी युवाओं को शिक्षा की मूल धारा में लाने का डॉक्टर दंपत्ति का प्रयास सुनहरे भविष्य की ओर इशारा कर रहा है.

-व्येंकटेश दुडमवार की रिपोर्ट