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Neerja Bhanot Birth Anniversary: हीरोइन ऑफ हाईजैक: नीरजा भनोट की कहानी, जिसके पराक्रम को पाक अमेरिका दोनों ने सराहा

1986 में बॉम्बे से उड़ान भरने वाली अमेरिकी फ्लाइट को जब आतंकियों ने हाईजैक किया तो प्लेन की हेड पर्सर नीरजा भनोट ने अपनी बहादुरी को परिचय देते हुए पैसेंजर्स और क्रू मेंबर्स सभी की जान बचा ली. पूरे 17 घंटे नीरजा ने हिम्मत नहीं हारी, लेकिन तीन अमेरिकी बच्चों के बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान दे दी.

नीरजा भनोट नीरजा भनोट
हाइलाइट्स
  • नीरजा भांप चुकी थी हाईजैकर्स का इरादा

  • पाकिस्तान और अमेरिका ने भी दिया सम्मान

5 सितंबर 1986, 30 साल पहले आतंकियों की एक टोली बॉम्बे से आने वाली अमेरिकी फ्लाइट का कराची में इंतजार कर रही थी. इस फ्लाइट को कराची से जर्मनी के फ्रैंकफर्ट होते हुए न्यूयॉर्क जाना था. उस फ्लाइट की हेट पर्सर या कहें एयर होस्टेस थी नीरजा भनोट. विमान कराची के जिन्ना एयरपोर्ट पर लैंड हुआ, तो अमेरिका जाने वाले कुछ मुसाफिर प्लेन में सवार हुए. आखिरी पैसेंजर प्लेन में चढ़ने ही वाला था, कि तभी कराची एयरपोर्ट की सिक्योरिटी को चीरते हुए 4 आतंकी विमान में घुस गए. हाथों में ऑटोमेटिक राइफल और पिस्टल लिए हुए इन आतंकियों ने प्लेन को हाईजैक कर लिया. उस वक्त विमान में 360 मुसाफिर, 13 क्रू मेंबर, और तीन पायलट मौजूद थे. यही नीरजा की जिंदगी का अंतिम मुकाम था.

नीरजा के इशारे पर कॉकपिट से बाहर हो गए पायलट
फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद के चार आतंकियों के निशाने पर अमेरिकी थे. नीरजा ने भांप लिया कि प्लेन हाईजैक हो चुका है, क्योंकि वो कुछ दिन पहले ही लंदन से ट्रेनिंग लेकर आई थी, इसलिए उसे पता था कि ऐसी हालत में क्या करना है. नीरजा के इशारे के बाद कॉकपिट के तीनों पायलट अगले दरवाजे से विमान से उतर गए. अब विमान में सिर्फ यात्री बचे और क्रू मेंबर्स, जिसकी मुखिया नीरजा भनोट थीं. प्लेन उड़ान नहीं भर सकता था, क्योंकि पायलट नहीं थे.

डटी रही नीरजा
आतंकियों ने सुरक्षा एजेंसियों के जरिए पाकिस्तान सरकार से बात शुरू की, लेकिन कोई बात बनी नहीं. वक्त बीतता जा रहा था. सुबह से दोपहर और फिर शाम होने वाली थी. लेकिन इस मुश्किल हालात में भी नीरज ने हिम्मत नहीं हारी. वो फर्ज पर डटी रही, उसे पता था कि मौत कभी भी आ सकती है, लेकिन उसका हौसला बुलंद था. 

नीरजा भांप चुकी थी हाईजैकर्स का इरादा
हाईजैकर्स की डिमांड पर पाकिस्तान सरकार तैयार नहीं थी. हाईजैकर्स का हौसला जवाब दे रहा था. बीतते वक्त के साथ उन्होंने मौत का खेल खेलने का फैसला कर लिया था. हाईजैकर्स ने सीनियर पर्सर नीरजा से पैसेंजर्स के पासपोर्ट इकट्ठा करने को कहा. हाईजैकर्स का इरादा विमान में सवार अमेरिकी पैसेंजर्स को मौत के घाट उतारना था. नीरजा हाईजैकर्स का इरादा समझ चुकी थी, क्योंकि विमान में कब्जा करते ही उन्होंने एक भारतीय मूल के अमेरिकन राजेश कुमार को मौत के घाट उतार दिया था. 

सूझबूझ से छिपा दिए अमेरिकियों के पासपोर्ट 
हाईजैकर्स की बंदूक के दम पर नीरजा ने सभी पैसेंजर्स के पासपोर्ट इकट्ठा करना शुरू किया. अपनी साथी होस्टेस को नीरजा ने इशारा किया कि अमेरिकी लोगों के पासपोर्ट छुपा दें. अमेरिकियों के पासपोर्ट प्लेन की सीट के नीचे या दूसरी जगह छिपा दिए गए. हाईजैकर्स को प्लेन में एक भी अमेरिकी नहीं मिला. आतंकियों के सिर पर मौत सवार हो गई, उन्होंने प्लेन में विस्फोटक लगाना शुरु कर दिया. उन्होंने मुसाफिरों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी. मौत पैसेंजर्स और नीरजा के एकदम करीब खड़ी थी. लेकिन भारत की इस बहादुर बेटी के दिमाग में एक प्लैन और था.

फर्ज के लिए दे दी जान की कुर्बानी
शाम ढल रही थी, 17 घंटे से पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर खड़े विमान का ईंधन भी खत्म होने लगा था. प्लेन की लाइट ऑफ होने लगी, एसी ने काम करना बंद कर दिया. हाईजैकर्स ने समझा कि ये पाकिस्तानी कमांडो के ऑपरेशन का संकेत है. वो हैंड ग्रेनेड फेंकने लगे. नीरजा ने हाईजैकर्स के बंदूक बम की परवाह न करते हुए, प्लेन का इमरजेंसी गेट खोल दिया. अगर उसे अपनी जान प्यारी होती, उसे पैसेंजर्स की जान की परवाह न होती, तो सबसे पहले प्लेन से उतर सकती है. लेकिन नीरजा को ये मंजूर नहीं था. सबसे पहले प्लेन के क्रू मेंबर्स विमान से उतरे और फिर एक-एक कर यात्री भी. प्लेन में अफरा-तफरी का माहौल बन गया. 

आतंकी गोलियां बरसाने लगे. नीरजा निडर होकर सबको प्लेन से निकाल ही रही थीं, कि तभी उनकी नजर तीन अमेरिकी बच्चों पर पड़ी. नीरजा ने बच्चों को सीने से लगाया और इमरजेंसी गेट की तरफ बढ़ी. तभी सामने से आतंकी आ गया. आतंकी के बंदूक के निशाने पर था छोटा मासूम. नीरजा ने अद्मय बहादुरी का परिचय दिया. उसने पलक झपकते ही अपनी पीठ आतंकी की तरफ कर दी. हाईजैकर की गोली से उसका जिस्म छलनी हो गया. लेकिन बच्चे बाल-बाल बच गए. 

पाकिस्तान और अमेरिका ने भी दिया सम्मान
नीरजा की इसी बहादुरी, हिम्मत, हौंसले और फर्ज के लिए कुर्बानी की खातिर पूरी दुनिया ने उन्हें क्वीन ऑफ हाईजैक कहा. वो रातों रात दिलेरी की मिसाल बन गई. उनके जज्बे को भारत सरकार ने सलाम किया और अशोक चक्र से सम्मानित किया. शांतिकाल में दिया जाने वाला ये सबसे बड़ा वीरता सम्मान है. नीरजा पहली सिविलियन थीं, जिन्हें शांति काल में सैनिकों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान दिया गया. शूरवीर नीरजा की गाथा को पाकिस्तान ने भी सलाम किया. ये पहली बार था, जब भारत की किसी बेटी को पाकिस्तान ने सम्मान दिया. पाकिस्तान ने उन्हें तमगा-ए-इंसानियत के खिताब से नवाजा. अमेरिकी सरकार ने अपने नागरिकों की जान बचाने वाली नीरजा को जस्टिस ऑफ क्राइम अवॉर्ड से नवाजा. 2004 में भारत सरकार ने नीरजा के पराक्रम का सम्मान करते हुए उनके नाम का डाक टिकट भी जारी किया. भारत की इस बेटी पर वाकई पूरा देश गर्व करता है.