झारखंड से "नेहरू की आदिवासी पत्नी" बुधनी मंझियाइन नाम की एक संथाली के स्मारक के लिए मांगें उठ रही हैं. बुधनी की तीन दिन पहले 80 साल की उम्र में उनकी जनजाति द्वारा वर्षों तक बहिष्कृत होने के बाद मृत्यु हो गई थी. बुधनी को जीवनभर बहिष्कार का दंश झेलना पड़ा क्योंकि उनके साथ एक ऐसी घटना हुई थी जिसकी वजह से उनके समुदाय के लोगों को यह कदम उठाना पड़ा. दरअसल 1959 में एक बांध के उद्धाटन के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सम्मान के तौर पर फूलों का हार पहना दिया था. इसके बाद उनका काफी विरोध किया गया और बहिष्कार कर दिया गया. बुधनी उस समय मात्र 16 साल की थीं.
कौन थी बुधनी?
बुधनी संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती थीं. इस समुदाय के लोगों का मानना है कि नेहरू ने बुधनी को माला पहनाई थी इसलिए उनकी शादी नेहरू से हो गई है. समुदाय के बाहर शादी होने की वजह से समुदाय के लोगों ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया था. इस वजह से पंचेत बांध के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री नेहरू ने जो हार पहनाया था वो बुधनी के लिए अभिशाप बन गया. संथाल आदिवासी समुदाय में अगर कोई पुरुष महिला को माला पहना देता है तो इस शादी की मान्यता दी जाती है. अगर कोई समुदाय से बाहर विवाह करता है तो उसका बहिष्कार किया जाता है. बुधनी की गांव में एंट्री भी बैन थी. वह गांव के बाहर ही एक टूट-फूटे मकान में अपनी बेटी रत्ना के साथ रहती थीं.
क्या है लोगों की मांग
स्थानीय राजनेताओं और अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग बुधनी मंझियाइन को अंतिम विदाई देने के लिए आए. वहां मौजूद कई लोगों ने बुधनी मंझियाइन को देश के पहले प्रधान मंत्री की 'पहली आदिवासी पत्नी' बताया. वहां मौजूद लोगों ने स्थानीय पार्क में नेहरू की मौजूदा मूर्ति के बगल में बुधनी के सम्मान में एक स्मारक बनाने की मांग की है. उन्होंने बुधनी की बेटी रत्ना (60) के लिए पेंशन की भी मांग की. अभी तक स्मारक बनाने की मांग को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है.
किसने दिया आश्रय
बुधनी का जीवन बहुत ही उतार-चढ़ाव में बीता. बांध के निर्माण के दौरान उनकी पुश्तैनी जमीन डूब गई. उनके पास जमीन के अलावा आय का कोई और स्त्रोत नहीं था. हालांकि बुधनी ने इसके बाद भी कभी हार नहीं मानी. उसने बांध निर्माण के दौरान मजदूरी की। बुधनी पहली ठेका मजदूरों में से थी. 5 दिसंबर 1959 को जब डैम का उद्घाटन हुआ तो पंडित नेहरू का उन्हें हार पहनना उनके लिए और बड़ी मुसीतबत साबित हुआ. साल 1962 में, बुधनी को कई अन्य डीवीसी अनुबंध श्रमिकों के साथ हटा दिया गया था. वह पड़ोसी राज्य बंगाल के पुरुलिया में साल्टोरा चली गईं और दिहाड़ी मजदूर के रूप में मेहनत करने लगीं. वहां, बुधनी की मुलाकात एक कोलियरी में ठेका कर्मचारी सुधीर दत्ता से हुई, जिसने उसे आश्रय दिया और बाद में उससे शादी कर ली.