दिल्ली पुलिस एक एप पर काम कर रही है जो जांच अधिकारियों को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगी, जिसे 1 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा. यह ऐप पुलिस को अपराध स्थल (क्राइम सीन) को फिल्माने और रिकॉर्डिंग को संरक्षित करने के अलावा यह सब अदालतों को सौंपने में मदद करेगा. सूत्रों के मुताबिक, एप अपराध स्थल से वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिंग और तस्वीरों को संभालेगी है और जांच अधिकारी इन्हें एप से सीधा अपलोड कर सकेंगे.
नए कानूनों के लागू होने में बहुत कम समय बचा है और ऐसे में, पुलिस अधिकारी तकनीकी विशेषज्ञों की मदद से ऐप को दुरुस्त कर रहे हैं. एप का फोकस डिजिटल प्रूफ को बिना किसी छेड़छाड़ के उनकी शुद्धि बनाए रखने पर है. 1 जुलाई को भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और आपराधिक अपराधों की सभी एफआईआर बीएनएस के तहत दर्ज की जाएंगी.
होंगे नए कानून लागू
इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम भी लागू होगा. CrPC की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लागू होगा, जो आपराधिक जांच और परीक्षण के लिए अपडेटेड प्रोसीजर और आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए समय-सीमाओं को परिभाषित करता है. अदालतों सहित क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की सभी शाखाओं के पूर्ण डिजिटल इंटीग्रेशन की जरूरत है. पुलिस अधिकारियों ने 15,000 से ज्यादा कर्मियों को नए कानूनों के कार्यान्वयन के लिए प्रशिक्षण दिया है, जिनमें असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर शामिल हैं, जो IO और यहां तक कि SHO और ASP के रूप में काम करते हैं.
पुलिस स्टेशन लेवल पर ज्यादातर पुलिसकर्मी या तो प्रशिक्षण ले चुके हैं या एक बुकलेट के जरिए नए कानूनों से परिचित हो चुके हैं. पुलिस अधिकारी नए कानूनों को लागू करने के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं. उपराज्यपाल वीके सक्सेना पुलिस आयुक्त से नियमित अपडेट मांगते रहे हैं. जल्द ही एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक होगी, जहां पुलिस अधिकारी तैयारियों का जायजा लेंगे, अगले दो सप्ताह में गृह मंत्रालय और एलजी सहित कई बैठकें होने वाली हैं.
जोड़े गए हैं नए कानून
बीएनएस आईपीसी के ज्यादातर अपराधों को बरकरार रखता है, लेकिन इसकी कुछ अलग विशेषताएं हैं. उदाहरण के लिए, यह कम्यूनिटी सर्विस को सजा के रूप में जोड़ता है. संगठित अपराध एक अपराध है और छोटे संगठित अपराध भी. राजद्रोह अब कोई अपराध नहीं है और इसकी जगह एक व्यापक अपराध ने ले ली है जो 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों' के अंतर्गत आता है. आतंकवाद को भी एक अपराध के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और पुलिस को सिर्फ यूएपीए पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. मॉब लिंचिंग - नस्ल, जाति, लिंग और भाषा जैसे विशिष्ट आधारों पर पांच या अधिक लोगों द्वारा हत्या या गंभीर चोट पहुंचाना - भी अब एक अलग अपराध है.