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आईटीआई के छात्रों ने टायर का इस्तेमाल करके बनाये हाथी,घोड़ा...देश का सबसे बड़ा टायर पार्क बनाने की है इच्छा

ओडिशा के गंजाम जिले के ब्रह्मपुर शहर के आईटीआई के छात्रों ने पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे कचरे का इस्तेमाल करके ऐसी चीजें तैयार की हैं, जिसे देखकर हर कोई हैरान है. छात्रों ने वेस्ट का इस्तेमाल करके उसे कला का रूप दिया है. संस्थान के करीब 100 छात्रों ने वाहनों में इस्तेमाल के बाद रद्दी या क्षतिग्रस्त हुए टायरों को कलाकृति की बनावट से अनोखा रूप दिया है.

हाइलाइट्स
  • 100 से अधिक छात्र कर रहें हैं काम

  • अब तक 700 टायरों का कर चुके हैं इस्तेमाल

ओडिशा के गंजाम जिले के ब्रह्मपुर शहर के आईटीआई के छात्रों ने पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे कचरे का इस्तेमाल करके ऐसी चीजें तैयार की हैं, जिसे देखकर हर कोई हैरान है. छात्रों ने वेस्ट का इस्तेमाल करके उसे कला का रूप दिया है. संस्थान के करीब 100 छात्रों ने वाहनों में इस्तेमाल के बाद रद्दी या क्षतिग्रस्त हुए टायरों को कलाकृति की बनावट से अनोखा रूप दिया है. इन छात्रों ने क्षतिग्रस्त टायरों की मदद से हाथी, घोड़ा, डायनासोर और कौवे बनाए हैं. वहीं आईटीआई के प्रबंधक रजत कुमार पाणिग्रही का इसे लेकर एक दूसरा खयाल भी है. रजत ने बताया कि वह आने वाले नये साल पर वो इन कलाकृतियों की मदद से देश का सबसे बड़ा टायर पार्क बनाना चाहते हैं. 

100 से अधिक छात्र कर रहें हैं काम
गंजाम जिले के ब्रह्मपुर में स्थिति आईटीआई संस्थान अब इसी उद्देश्य पर काम करते हुए देश को सबसे बड़ा टायर पार्क बनाने की योजना पर काम कर रहा है. संस्थान के करीब 100 से अधिक छात्र बड़े पैमाने पर वाहनों में इस्तेमाल हुए क्षतिग्रस्त टायरों को इकठ्ठा करके उनसे खूबसूरत ढांचा तैयार कर रहे हैं. टायर पार्क का परिसर करीब 4,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है. इस पार्क में टायरों की मदद से 5 से 30 फीट की मूर्तियां बनाने की योजना बनाई जा रही है.

 
टायरों को रिसाइकल करने में होती है दिक्कत

आजतक से हुई बातचीत में आईटीआई प्रबंधक रजत कुमार पाणिग्रही ने बताया कि हमारा मुख्य उद्देश्य कौशल विकास है. इस वर्ष हमने ऑटोमोबाइल के ई-वेस्ट (टायर) को एक अनोखा रूप देने की योजना बनाई है. आमतौर पर सड़को पर वाहनों में इस्तेमाल किए हजारों की संख्या में क्षतिग्रस्त टायर पड़े रहते हैं, जिसका रिसाइकल करना संभव नहीं होता है और पर्यावरण के लिए प्रदूषण का कारण बनते हैं. इसके अलावा इधर-उधर पड़े क्षतिग्रस्त टायर में अक्सर बारिश के कारण पानी भर जाता है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर डेंगू मच्छर पैदा होते हैं. इन सभी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए स्किल डेवलपमेंट का इस्तेमाल कर टायरों को एक नया रूप दिया जा रहा है.   

छात्र तैयार करते हैं 5 से 30 फीट की मूर्ति 
पाणिग्रही ने बताया कि टायरों से मूर्तियों के निर्माण के लिए छात्रों ने आवश्यकता अनुसार टायरों को आकार देने के लिए पैकिंग नामक विशेष तकनीक को अपनाया. छात्र पहले A4 आकार के चित्र को बड़े आकार में बदलते हैं. इसके बाद 2डी ड्राइंग की मदद से आंतरिक धातु के ढांचा को वेल्डिंग कर मूर्तियों का निर्माण करते हैं. टायरों द्वारा 5 फीट से 30 फीट की ऊंचाई की मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है. आगामी नये साल पर हमें बहुत जल्द टायर पार्क बनाने जा रहे हैं. तैयार होने पर यह देश का सबसे बड़ा टायर पार्क होगा. 

अब तक 700 टायरों का कर चुके हैं इस्तेमाल
आजतक से बातचीत में एक छात्र संतोष स्वैन ने कहा कि हमने क्षतिग्रस्त टायरों से दो हाथियों और एक घोड़े की मूर्ति बनाई है. हम डायनासोर और कौवे की मूर्ति पर काम कर रहे हैं. अब तक इन आकृतियों के लिए लगभग 700 क्षतिग्रस्त टायरों का इस्तेमाल किया जा चुका है. पार्क में अन्य जानवरों के लिए लगभग 3000 क्षतिग्रस्त टायरों की जरुरत पड़ सकती है. संस्थान को ब्रह्मपुर नगर निगम (बीएमसी) और आरटीओ ने कुछ क्षतिग्रस्त टायर दान दिए थे, जिसके तीन मूर्तियों को तैयार किया जा चुका है. छात्र बड़ी संख्या में बूचड़खाना एवं अन्य स्थानों से क्षतिग्रस्त टायरों को संग्रह कर रहे हैं. बता दें कि इससे पहले संस्थान के छात्रों ने ई-कचरा और बेकार घास का इस्तेमाल करके मूर्तियां तैयार की थीं.