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उड़ीसा की अनोखी शादी, पंडित और हवन कुंड के बजाय जोड़े ने 'संविधान' की शपथ लेकर कर ली शादी

शादी के बाद दोनों ने मेहमानों से महंगे गिफ्ट्स लेने की बजाय रक्तदान करने का आग्रह किया और उनसे कहा कि वे अपनी मृत्यु के बाद अपने शरीर के अंगों (Body Organ) को दान करने का संकल्प लें. यहां तक ​​कि रिसेप्शन के पास लगे हुए एक रक्तदान शिविर में बिजय और श्रुति दोनों ने अपना ब्लड डोनेट किया.

अनोखी शादी अनोखी शादी
हाइलाइट्स
  • संविधान की शपथ लेते हुए अपनी शादी की

  • शादी के बाद किया रक्तदान

उड़ीसा में एक युवा जोड़े ने बेहद अनोखी शादी की है. इस शादी में न तो कोई फेरे हुए हैं, न मंडप था, न हवन कुंड और न ही कोई पंडित. जी हां, ओडिशा में एक युवा जोड़े ने कुछ ऐसी ही अनोखी शादी की है जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया है. इस जोड़े न हवन कुंड और हिंदू रीति-रिवाजों के बजाय संविधान को साक्षी मानकर उसकी शपथ लेते हुए अपनी शादी की. 

ये जोड़ा है बिजय कुमार और श्रुति सक्सेना का. जहां बिजय ओडिशा के बेरहामपुर के रहने वाले हैं, वहीं श्रुति का परिवार उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखता है, हालांकि दोनों चेन्नई में एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं.

बिजय और श्रुति की शादी
बिजय और श्रुति की शादी

मेहमानों से किया ब्लड डोनेट करने का आग्रह 

शादी के बाद दोनों ने मेहमानों से महंगे गिफ्ट्स लेने की बजाय रक्तदान करने का आग्रह किया और उनसे कहा कि वे अपनी मृत्यु के बाद अपने शरीर के अंगों (Body Organ) को दान करने का संकल्प लें. यहां तक ​​कि रिसेप्शन के पास लगे हुए एक रक्तदान शिविर में बिजय और श्रुति दोनों ने अपना ब्लड डोनेट किया. 

शादी के बाद किया रक्तदान  

नवविवाहित श्रुति ने बताया कि वे 2015 में चेन्नई में बिजय से मिली थीं. वे दोनों साथ काम करते थे. और उनके कॉमन फ्रेंड्स ही उन्हें एक दूसरे से करीब लाए. उन्होंने कहा, “हमारी शादी अलग है. हमने शपथ ली और फिर ब्लड डोनेट किया. मुझे लगता है कि हमने समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा किया है. मुझे आशा है कि यह दूसरों के लिए एक उदाहरण बनेगा. हम दोनों इससे काफी खुश हैं.”

रक्तदान करते बिजय और श्रुति
रक्तदान करते बिजय और श्रुति

ऐसी शादियां और होनी चाहिए 

बिजय के पिता डी मोहन राव कहते हैं, “2019 में मेरे बड़े बेटे ने भी इसी तरह संविधान की शपथ लेते हुए शादी की थी. इस तरह की शादियां ज्यादा होनी चाहियें, जो बिना जाति, दहेज और अन्य पारंपरिक रीति-रिवाजों के होती हैं. इससे सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में मदद मिलेगी.”

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