"सन् 1965 से लेकर साल 2022 तक, तिरंगे ने भी कई दौर देखे. कभी इंदिरा गांधी के वक्त इमरजेंसी का दौर देखा तो कभी अटल बिहारी वाजपेई के वक्त 13 दिन के लिए उनकी सरकार का दौर देखा. उसके बाद अन्ना आंदोलन में भी तिरंगे की खूब डिमांड आई लेकिन, तब से लेकर अब तक साल 2022 के हर घर तिरंगे का यह दौर एक ऐतिहासिक दौर है. यह कहना है 71 वर्षीय अब्दुल गफ्फार का जो अब्दुल गफ्फार झंडेवाले के नाम से ही जाने जाते हैं.
भारत हैंडलूम क्लॉथ हाउस के नाम से इनकी दुकान दिल्ली के सदर बाजार के पान गली में पिछले 60 साल से मौजूद है. कुल छः भाई मिलकर यह काम कर रहे हैं. अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि इनकी दुकान देश की पहली दुकान थी, जिन्होंने झंडे बनाने की शुरुआत की थी इसलिए इनके यहां पर बने तिरंगों ने कई सारे दौर देखे.
'हर घर तिरंगा' से बढ़ी तिरंगे की डिमांड
देश को आजाद हुए 75 साल हुए हैं और हम आजादी का महोत्सव माना रहे हैं. इसे और भी ज्यादा खास बनाने के लिए सरकार ने हर घर तिरंगा के मुहिम की शुरुआत की. यह 13 से पंद्रह 15 अगस्त तक चलाई जाएगी. इसके लिए देश के तमाम राज्यों - शहरों के बड़ी मात्रा में तिरंगे बनाए जा रहे हैं.
एक दिन में बन रहे डेढ़ लाख तिरंगे
अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि पिछले साल तक 15 अगस्त के दौरान हर दिन 4-5 हजार तिरंगे बनते थे लेकिन, अब चूंकि आजादी के अमृत महोत्सव का दौर है इसलिए एक दिन में हम एक से डेढ़ लाख तिरंगे बना रहे हैं. डिमांड इतनी ज्यादा है कि कारीगर दुगनी संख्या में चार शिफ्ट्स में काम कर रहे हैं.
24 घंटे 4 शिफ्ट में हो रहा है काम
गफ्फार बताते हैं कि 24 घंटे उनका काम चालू रहता है. गफ्फार बताते हैं कि जिस हिसाब से ऑर्डर्स आ रहे हैं उस हिसाब से ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में एक दिन में दो लाख तिरंगे बनाएंगे.
हर दिन 500 कारिगरों को मिल रहा है रोजगार
अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि इस मुहिम से कई लोगों को रोजगार भी मिला है. वे कहते हैं कि "पहले मेरे यहां पर करीब 300 कारीगर काम करते थे, जिन्हें हर दिन के हिसाब से 200-250 रुपए मिल जाते थे लेकिन, अब चूंकि काम बढ़ गया है इसलिए हर रोज 500 कारीगर काम कर रहे हैं, जिन्हें हर दिन के हिसाब से एक हजार रुपए मिल रहे हैं. अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि 500 कारीगरों में से 80 प्रतिशत मुस्लिम हैं और उनमें भी ज्यादातर महिलाएं हैं.
अब्दुल गफ्फार के यहां काम करने वाले कारीगर जहूर अहमद पिछले 30 साल से झंडे बनाने का काम कर रहे हैं. वे कहते हैं इस बार हम जितना काम कर रहे हैं उतना आज तक नहीं किया. दिन रात शिफ्ट में काम हो रहा है. इससे आमदनी भी बढ़ रही है और रोजगार भी.
चीन से आने वाला सामान भी भारत में बन रहा है
वहीं, जमीर अहमद बताते हैं कि उनके घर की सभी महिलाएं तिरंगा बनाने का काम कर रही हैं. मोहम्मद रहमतुल्लाह जो पास की मस्जिद के इमाम हैं उन्होंने बताया कि बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी इस मुहिम में हिस्सा ले रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि जो सबकुछ पहले चीन से आता था अब भारत में भारत के लोगों द्वारा बनाया जा रहा है
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