मोदी सरकार (Modi Government) के तीसरे कार्यकाल के सबसे महत्वाकांक्षी बिल एक देश-एक चुनाव विधेयक यानी वन नेशन-वन इलेक्शन बिल (One Nation One Election Bill) ने पहली बाधा पार कर ली है. जी हां, इसे मंगलवार को यानी 17 दिसंबर को लोकसभा (Lok Sabha) में स्वीकार कर लिया गया.
इस बिल को पेश करने के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 मत पड़े. हालांकि इस बिल को कानून बनने के लिए भी कई चुनौतियों को पार करना पड़ेगा. इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराना मोदी सरकार के लिए उतना आसान नहीं होगा. इसमें नंबर गेम अंड़गा डाल सकता है. आइए हम आपको बताते हैं कैसे?
बिल को भेजा गया जेपीसी के पास
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन में रखा. इस बिल का अधिकांश विपक्षी दलों ने भारी विरोध किया. गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि बिल जब कैबिनेट में आया था, तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजना चाहिए. अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श के खातिर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव किया. JPC इस पर व्यापक विचार-विमर्श करके, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करके अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को देगी. इसके बाद मोदी सरकार एक देश-एक चुनाव विधेयक को संसद में पेश करेगी. मोदी सरकार विधेयक पर आम सहमति बनाना चाहती है.
नहीं है कोई सामान्य विधेयक
आपको मालूम हो कि किसी आम बिल को पास कराने के लिए दोनों सदनों राज्यसभा (Rajya Sabha) और लोकसभा में सामान्य बहुमत की जरूरत होती है जबकि संविधान संशोधन से जुड़े बिल को पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. वन नेशन-वन इलेक्शन बिल कोई सामान्य बिल नहीं है कि साधारण बहुमत से पास करवा लिया जाए और फिर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसे कानून बना दिया जाए. एक देश-एक चुनाव विधेयक एक संविधान संशोधन बिल है. इसका पूरा नाम संविधान (129वां) संशोधन बिल 2024 है. इसे आमभाषा में एक देश-एक चुनाव विधेयक या वन नेशन-वन इलेक्शन बिल कहा जा रहा है.
दोनों सदनों में एनडीए के पास बहुमत नहीं
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल एक संविधान संशोधन बिल है. संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत यह बिल पास किया जाएगा. इसको पास कराने के लिए मोदी सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. दो तिहाई बहुमत न तो एनडीए के पास लोकसभा में है और न ही राज्यसभा में है. लोकसभा में मौजूदा कुल 543 सदस्यों के हिसाब से दो तिहाई बहुमत के लिए 362 सांसदों का समर्थन चाहिए. ऐसे में मोदी सरकार के लिए लोकसभा में बिल पास कराने में मुश्किल हो सकती है क्योंकि बीजेपी (BJP) के अपने कुल 240 सांसद हैं, वहीं एनडीए (NDA) से जुड़े सभी दलों के सासंदों को जोड़ लें तो भी यह संख्या 291 तक ही पहुंचती है, जो दो तिहाई बहुमत से कम है.
लोकसभा में इंडिया गठबंधन के 234 और अन्य दलों के 18 सदस्य हैं. उधर, राज्यसभा की बात करें तो अभी इस सदन में कुल 231 सदस्य हैं, जिसमें दो तिहाई का आंकड़ा 154 होता है. इस उच्च सदन में छह मनोनित सहित एनडीए के कुल 118 सदस्य हैं, फिर भी राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत से सांसद कम हैं. ऐसे में इस बिल का अटकना तो तय है. राज्यसभा में इंडिया गठबंधन के 85 और अन्य दलों के 34 सदस्य हैं. वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को अभी जेपीसी के पास विचार-विमर्श के लिए भेजा गया है. हो सकता है कि मोदी सरकार इस विचार-विमर्श के बाद कुछ विरोधी पार्टियों के सांसदों को इस बिल के पक्ष में वोट देने के लिए मिले ले. हालांकि फिर भी बीजेपी दो तिहाई बहुमत के नंबर गेम को हासिल करने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे.
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन
हमारे देश में अभी लोकसभा चुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. ये चुनाव पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद या जब सरकार किसी कारण से भंग हो जाती है तब कराए जाते हैं. इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है. वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे. पीएम मोदी ने साल 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था.
उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए. आपको मालूम हो कि आजादी के बाद देश में पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए. तब लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी संपन्न हुए थे. इसके बाद साल 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए गए थे. इसके बाद कुछ विधानसभाएं विभिन्न कारणों के चलते भंग कर दी गई थी, जिसके चलते 1968-69 के बाद एक साथ चुनाव होने के क्रम टूट गया. चुनाव आयोग ने कई बार कह चुका है कि वह एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों को करा सकता है.
कैसे लागू होगा एक देश एक चुनाव
जानकारों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे. पहला संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, दूसरा राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित अनुच्छेद 85, तीसरा राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, चौथा राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174 और पांचवां राज्यों में राष्ट्रपति शासन को लागू करने से संबंधित अनुच्छेद 356 शामिल हैं. इतना ही नहीं यह भी अनिवार्य है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति प्राप्त की जाए.
बनाई गई थी कमेटी
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए कमेटी बनाई गई थी. रामनाथ कोविंद समिति ने वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को लागू करने को लेकर 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया था, वहीं 15 दलों ने इसका विरोध किया था. 15 ऐसे दल थे, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था. इस कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसे 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी थी.