अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अलगाववादियों से आजाद कराने के लिए चलाया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) आज ही के दिन खत्म हुआ था. ऑपरेशन ब्लू स्टार की आज 38वीं बरसी है. ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून से 8 जून 1984 के बीच अमृतसर में चलाया गया था. 3 जून को भारतीय सेना स्वर्ण मंदिर में प्रवेश कर गई और इसे घेर लिया गया. 6 जून, 1984 को अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया था. स्वर्ण मंदिर से भिंडरावाले के आदमियों को निकालने में सेना को दो दिन और लगे.
492 लोग मारे गए थे
1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था. ऑपरेशन ब्लू स्टार पंजाब में बिगड़ती कानून-व्यवस्था से निपटने के लिए इंदिरा गांधी ने चलवाया था. इस पूरे ऑपरेशन में 83 सैनिक मारे गए और 248 सैनिक घायल हुए. इसके अलावा 492 अन्य लोगों की मौत हुई थी. साथ ही 1,592 लोगों को हिरासत में लिया गया था.
क्यों हुआ था ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत में खालिस्तानी आंदोलन का परिणाम था. भले ही खालिस्तान आंदोलन 1940 और 1950 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन 1970 और 1980 के दशक के बीच इसने लोकप्रियता हासिल की. खालिस्तान आंदोलन का उद्देश्य पंजाब को भारत से अलग किए जाने के लिए यानी एक अलग मुल्क ख़ालिस्तान बनाने का था. जरनैल सिंह भिंडरावाले सिखों की धार्मिक संस्था दमदमी टकसाल का लीडर था. उसकी मांग थी कि हिन्दू पंजाब छोड़ कर चले जाएं.
एक नेता के रूप में, भिंडरावाले का सिख युवाओं पर प्रभाव था. पंजाब में आए दिन बढ़ती हिंसक गतिविधियां पूरे देश के लिए चिंता का सबब बनी हुई थीं. भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित अकाल तख्त परिसर को अपने कब्जे में ले लिया था. ऐसे में सत्ता के शीर्ष से एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया, और ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया. ऑपरेशन ब्लू स्टार का उद्देश्य विशेष रूप से स्वर्ण मंदिर परिसर से जरनैल सिंह भिंडरावाले को हटाना और हरमंदिर साहिब पर नियंत्रण हासिल करना था.
इंदिरा गांधी की हत्या
7 जून 1984 को सेना ने हरमंदिर साहिब परिसर पर अपना कब्जा जमा लिया. बेशक सरकार को इस ऑपरेशन में कामयाबी मिली हो लेकिन इससे पूरे विश्व में सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुईं. इसे बहुत बड़ी राजनीतिक हार माना गया. आखिरकार ऑपरेशन ब्लू स्टार की कीमत इंदिरा गाँधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी.