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सिर्फ 3 बोरी धान साइकिल पर ले जा रहा था... लाइसेंस नहीं था... पुलिस ने किया गिरफ्तार, अब कलकत्ता हाईकोर्ट से मिला इंसाफ

चार साल की सुनवाई के बाद, 1995 में उन्हें दोषी करार देते हुए 6 महीने की सख्त कैद और ₹500 जुर्माने की सजा सुनाई गई. लेकिन चंद्र मोहन ने हार नहीं मानी और 1996 में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी. उसके बाद शुरू हुआ इंतज़ार… और ये इंतजार खत्म हुआ 2025 में, यानी पूरे तीन दशक बाद!

Justice after 30 years (Representative Image/Unsplash) Justice after 30 years (Representative Image/Unsplash)
हाइलाइट्स
  • 1995 में कोर्ट ने सुनाई थी सजा

  • एक आदमी की जिंदगी के 30 साल

कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta Highcourt) ने हाल ही में एक ऐसे मामले में फैसला सुनाया, जिसे सुनकर शायद आप भी कहें- "क्या वाकई ऐसा भी होता है?". एक आदमी को सिर्फ इसलिए जेल भेज दिया गया था क्योंकि वो अपनी साइकिल पर तीन बोरी धान लेकर जा रहा था, और उसके पास कोई लाइसेंस नहीं था. आरोप था कि वो धान बेचने के लिए ले जा रहा था. अब पूरे 30 साल बाद, कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दिया है.

मामला क्या था?
ये कहानी है चंद्र मोहन रॉय नाम के एक शख्स की, जो दिसंबर 1991 में पश्चिम बंगाल के ठाकुरपुरा हाट से लगभग 6 मन (225 किलो) धान खरीदकर अपनी साइकिल पर ले जा रहे थे. उसी दौरान पुलिस ने उन्हें रोका, और जब उन्होंने कोई लाइसेंस नहीं दिखाया, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
पुलिस ने उनका धान, साइकिल और अन्य सामान जब्त कर लिया. आरोप लगाया गया कि वे इस धान को "व्यापार" के लिए ले जा रहे थे और ऐसा करना Essential Commodities Act के खिलाफ है.

1995 में कोर्ट ने सुनाई थी सजा
चार साल की सुनवाई के बाद, 1995 में उन्हें दोषी करार देते हुए 6 महीने की सख्त कैद और ₹500 जुर्माने की सजा सुनाई गई. लेकिन चंद्र मोहन ने हार नहीं मानी और 1996 में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी. उसके बाद शुरू हुआ इंतजार… और ये इंतजार खत्म हुआ 2025 में, यानी पूरे तीन दशक बाद!

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हाईकोर्ट का क्या कहना है?
जस्टिस अनन्या बंदोपाध्याय ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सिर्फ यह कह देना कि आरोपी के पास धान था, ये साबित नहीं करता कि वह उसे व्यापार के लिए ले जा रहा था.

उन्होंने कहा, “सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि ठोस सबूत न हों. ना तो उस धान का ठीक से वजन किया गया, ना ही कोई ऐसा सबूत पेश किया गया जिससे ये साबित हो कि चंद्र मोहन धान बेचने जा रहे थे.”

एक आदमी की जिंदगी के 30 साल
सोचिए, एक आम आदमी, जो शायद अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था, उसे केवल शक के आधार पर "अपराधी" बना दिया गया. और जब वो अपने हक के लिए अदालत पहुंचा, तो उसे न्याय पाने में 30 साल लग गए.

अब जाकर कोर्ट ने कहा, “1995 में विशेष न्यायालय द्वारा सुनाया गया निर्णय रद्द किया जाता है. चंद्र मोहन रॉय निर्दोष हैं.”

कौन-कौन थे इस केस में?
एडवोकेट मोनामी मुखर्जी ने इस केस में amicus curiae (कोर्ट के मित्र) के रूप में पेश होकर तर्क दिया कि FIR में ऐसा कोई अपराध दर्ज नहीं था जो गिरफ्तारी लायक हो. राज्य सरकार की ओर से फारिया हुसैन और ममता जना ने पैरवी की.

बता दें, Essential Commodities Act सरकार को यह अधिकार देता है कि वह जरूरी वस्तुओं की उत्पादन, आपूर्ति, वितरण और व्यापार को नियंत्रित कर सके. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर गरीब किसान या मजदूर, जो अपने लिए या अपने परिवार के लिए कुछ सामान ला रहा है, उसे व्यापारी मानकर जेल भेज दिया जाए.