‘आजादी ही मेरी दुल्हन है’ भगत सिंह की ये पंक्तियां उनके मन में आजादी को लेकर अथाह प्रेम दिखाती हैं. कुछ ऐसा ही कहा है, ओडिशा की पहलवान ताहिरा खातून का. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मेरी कुश्ती से शादी हो चुकी है”. ताहिरा को बुर्का अपनाने और कुश्ती को छोड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन उसने अपने "धर्म" को बनाए रखने के साथ-साथ आगे बढ़ने का कठिन चुनाव किया. एक मुस्लिम परिवार से आने वाली 28 वर्षीय ताहिरा को बचपन से कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. ताहिरा जानती थी कि ऐसे राज्य में जहां कुश्ती लोकप्रिय नहीं है, उनका रास्ता मुश्किलों भरा होगा. लेकिन उनकी दृढ़ता और दृढ़ संकल्प ने ही उन्हें आगे बढ़ाया. अपने राज्य में अब तक अपराजित ताहिरा ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया है.
कुश्ती के लिए नहीं कर रहीं शादी
अपनी कुश्ती को बेहतर बनाने के लिए उनके क्लब में न तो मजबूत स्पैरिंग पार्टनर हैं और न ही शारीरिक रूप से मजबूत बनने के लिए उन्हें सही आहार मिलता है. लेकिन उन्हें बड़े मंच पर सफलता न मिलने का अफसोस नहीं है क्योंकि रेसलिंग मैट पर कदम रखना ही उसके लिए खुशी की बात है. ताहिरा ने एक इंटरव्यू में कहा,"अगर मैं शादी कर लेती हूं, तो मुझे कुश्ती छोड़ने के लिए कहा जाएगा क्योंकि मुस्लिम लड़कियों के लिए शादी के बाद इस तरह के खेल को जारी रखना मुश्किल है, और मैं ऐसा करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हूं. उन्होंने आगे बताया "मेरे बैच के तीन साथियों की शादी हो गई और अब वे पारिवारिक दबाव के कारण नहीं खेल सकते हैं, मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ ऐसा कुछ हो.
माता-पिता के गुजर जाने पर भाई बने सहारा
ताहिरा को जो भी थोड़ा सा सहयोग मिला है, वह उनके भाइयों (एक ऑटो चालक और दूसरा चित्रकार) और कोच राजकिशोर साहू से मिला है. जब वह 10 साल की थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. उन पर दुखों का पहाड़ तब टूटा जब 2018 में उनकी मां भी चल बसीं. पहले वह अपने पिता की मृत्यु के बाद डिप्रेशन को दूर करने के लिए टेबल टेनिस खेलती थीं लेकिन रेसलिंग कोच रिहाना ने उन्हें खेल बदलने के लिए मनाया. रिहाना ने उसे एक महीने के लिए प्रशिक्षित किया और उसे जिला चैंपियनशिप के लिए 'खुर्दा पहला' ले गई, जहां वह चैंपियन बनी और इसे खेल ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया.
अपने शहर में पहनती हैं 'बुर्का'
ताहिरा ने कहा, "लोग मुझसे कहते हैं कि 'कुश्ती ने आपको कुछ नहीं दिया. कोई सुविधा नहीं है, कोई नौकरी नहीं है. लेकिन मेरी मां ने मुझसे कहा कि अगर मुझे यह पसंद है तो मुझे इसे करना चाहिए." ताहिरा कुश्ती जारी रखना चाहती है और अपने समुदाय को निराश भी नहीं करना चाहती. उन्होंने बताया कि वह जब भी कटक में प्रवेश करती हैं, तो 'बुर्का' पहन लेती हैं. जब भी वह खेलने के लिए बाहर जाती हैं तो मैं जो कुछ भी आवश्यक होता है वह पहनती हैं. इस तरह वह अपने करियर और धर्म में संतुलन बना कर चलती हैं.
आर्थिक तंगी सबसे बड़ी समस्या
हालांकि, उसके लिए और भी समस्याएं खड़ी हैं. उसे अपने कोच और भाइयों से जो थोड़ा सा सहयोग मिलता है, वह काफी नहीं है. वह जानती है कि उसका करियर खत्म होने की कगार पर है, लेकिन वह अपनी भतीजी को खेल में शामिल करना चाहती है और ऐसा होने के लिए उसे पैसों की जरूरत है. वह योग के होम ट्यूशन देकर और फिजियोथेरेपी देकर अपने खर्चों को मैनेज करती है. उन्होंने बताया कि उन्होंने इसे स्वयं प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेकर और पहलवानों से सीखा है. वह महीने के 4-5 हज़ार ही कमा पाती हैं.
ताहिरा की कहानी हमें जीवन जीने का नया तरीका सिखाती है. यह हमें बताती है कि हम अगर सच में कुछ करना चाहते हैं, तो हमें वो करने से कोई रोक नहीं सकता. बस जरूरत है सामंजस्य बिठाने की.