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Climate Heroes Part 1: नोएडा के इस कंक्रीट इलाके में उग आया हरा भरा जंगल... पढ़िए जापान के मियावाकी मेथड से पीपल बाबा ने कैसे बना दिया उदय उपवन

Noida Uday Upvan: स्वामी प्रेम परिवर्तन बताते हैं कि एक डॉक्टर के रूप में, उनके पिता ने 36 साल तक आर्मी में सेवा की और एक बच्चे के रूप में वे उनके साथ भारत के कई कस्बों और गांवों में घूमे. इस दौरान उन्होंने एक क्लब भी बनाया जिसका नाम गिव मी ट्रीज रखा. वे बताते हैं कि अक्सर उनकी नानी कहा करती थी कि पेड़ों से कहानी शुरू होती है और पेड़ों पर खत्म हो जाती है. 

Peepal Baba Peepal Baba
हाइलाइट्स
  • 5 फुट नीचे है कंक्रीट का मलबा 

  • आसपास के लोगों ने की थी परेशानी खड़ी 

अगर आपसे कहा जाए कि नोएडा के गौतम बुद्ध नगर में कंक्रीट जगह के बीच में एक हरा भरा जंगल है तो क्या आप मानेंगे? सोरखा गांव में उदय उपवन नाम का अर्बन फॉरेस्ट स्वामी प्रेम परिवर्तन या जिन्हें लोग पीपल बाबा के नाम से भी जानते हैं, ने बनाया है. 58 साल के पीपल बाबा की संस्था गिव मी ट्रीज अब तक देश में 2.5 करोड़ से भी ज्यादा पेड़ लगा चुकी है. स्वामी प्रेम परिवर्तन पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से पेड़ लगा रहे हैं. पेड़ों के प्रति उनके प्यार की कहानी 1976 से शुरू हुई थी. सोरखा गांव के उदय उपवन में अब बच्चे और बड़े नेचर  वॉक और बर्ड वॉच करने के लिए आते हैं. 

अपने सफर के बारे में पीपल बाबा ने GNT डिजिटल से बात की. उन्होंने बताया कि जब पुणे में वे महज 11 साल के थे तब उनकी कक्षा अध्यापिका और अंग्रेजी शिक्षिका मिसेज विलियम्स ने प्रकृति को लेकर जागरूक किया था. वे अक्सर पर्यावरण और इको-सिस्टम के बारे में बच्चों को कहानियां सुनाया करती थीं और उनकी कहानियों में बार-बार आने वाले विषयों में से एक होता था पृथ्वी के सामने आने वाला खतरा- क्लाइमेट चेंज.

हालांकि, मिसेज विलियम्स की कही एक बात 11 साल के स्वामी प्रेम परिवर्तन के दिल में घर कर गई. मिसेज विलियम्स अक्सर कहा करती थी कि 'डॉक्टर या इंजीनियर नहीं, कुछ ऐसा करो जिससे तुम्हें सभी याद रखें, कुछ बड़ा करो. 

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टारजन और फैंटम जैसी कॉमिक्स पढ़ने की उम्र में जब स्वामी प्रेम ने अपनी नानी के मुंह से भी ऐसी ही बातें सुनी तो उन्होंने कुछ अलग और बड़ा करने की ठान ली. वे बताते हैं कि अक्सर उनकी नानी कहा करती थी कि पेड़ों से कहानी शुरू होती है और पेड़ों पर खत्म हो जाती है. 

स्वामी प्रेम परिवर्तन बताते हैं, “26 जनवरी 1977 को, मेरी दादी ने मुझे 25 पैसे दिए थे, जो उस समय एक बड़ी रकम थी और मुझसे पौधे खरीदने के लिए कहा. बस तभी से मैं पेड़ लगा रहा हूं और उनकी देखभाल कर रहा हूं. अब तक मैं 2.5 करोड़ पेड़ लगा चुका हूं और आगे और लगाने की तैयारी में हूं.”

स्वामी प्रेम परिवर्तन बताते हैं कि एक डॉक्टर के रूप में, उनके पिता ने 36 साल तक आर्मी में सेवा की और एक बच्चे के रूप में वे उनके साथ भारत के कई कस्बों और गांवों में घूमे. इस दौरान उन्होंने एक क्लब भी बनाया जिसका नाम गिव मी ट्रीज रखा. वे कहते हैं, “मेरी मुहिम को 2010 में गति मिली, जब मेरी मुलाकात एक्टर जॉन अब्राहम से हुई. उन्होंने मुझसे सीएसआर (कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी) फंडिंग लेने और पूरे भारत में वृक्षारोपण में तेजी लाने के लिए एक एनजीओ बनाने के लिए कहा.”

फोटो- गिव मी ट्रीज
फोटो- गिव मी ट्रीज

कब लगाते हैं पेड़?
स्वामी प्रेम परिवर्तन सोरखा गांव के जंगल के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “नोएडा के सोरखा गांव में उनकी टीम ने शहरी जंगल बनाया है. इसे 'उदय उपवन' नाम दिया गया है. सोरखा गांव में शहरी जंगल बनाने के लिए, जिला प्रशासन ने हमें 2017 में पांच साल की अवधि के लिए पांच हेक्टेयर की बंजर भूमि दी थी.” हालांकि, दो साल के अंदर ही स्वामी प्रेम परिवर्तन की टीम ने वहां मौजूद कचरे को हजारों पेड़ों से बदल दिया. 

5 फुट नीचे है कंक्रीट का मलबा 
हालांकि, पीपल बाबा कहते हैं, “जंगल कहना मुझे इसलिए ठीक नहीं लगता है क्योंकि हम किसी एक जगह को पक्षियों और लोगों के लिए तैयार कर रहे हैं,  बाकी का काम तो प्रकृति खुद करती है. हम मिट्टी के साथ ज्यादा छेड़खानी नहीं करते हैं. लोग अक्सर यूरिया वगैरह डालने की सलाह देते हैं लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं. इसको भी आप खोदकर देखेंगे तो 5 फुट नीचे आपको सारा कंक्रीट मलबा, सीमेंट, लोहे के सरिए, सब मिलेंगे. एक समय में ये मेट्रो की लैंडफिल साइट थी, लोग यहां आकर उन सब चीजों को डंप कर देते थे.”

जमीन उपजाऊ कैसे बनाई? इसे लेकर वे कहते हैं, “हम सबसे पहले खुद की मिट्टी बनाते हैं. गोबर, सूखे पत्ते, गोमूत्र आदि से देसी तरीके से हम अपनी मिट्टी बनाते हैं ताकि वो उपजाऊ बन सके. उसके बाद हम सोच समझकर बीजों को चुनते हैं और उन्हें लगाते हैं.” 

आसपास के लोगों ने की थी परेशानी खड़ी 
वीरवती जो 2017 से उदय उपवन में काम कर रही हैं बताती हैं कि जब वे यहां आए थे तब केवल 2 बस्तियां थीं लेकिन अब ये पूरा जंगल चारों तरफ से लोगों के मकान से ढक गया है. उन्होंने अपने हाथ से यहां पौधे लगाएं हैं और जंगल को अपनी आंखों के सामने बढ़ते देखा है. इससे पहले वीरवती ग्राउंड में सब्जी उगाने का काम करती थीं, लेकिन एक समय उनकी मुलाकात पीपल बाबा से हुई और उन्होंने इस जंगल के लिए काम करने के लिए कहा. बस तभी से वीरवती, उनके पति अपनी 3 बेटियों के साथ इसी जंगल में रहते हैं और इसकी देखभाल करते हैं. 

फोटो- गिव मी ट्रीज
फोटो- गिव मी ट्रीज

वीरवती कहती हैं, “मेरा यहां से शहर जाने का भी मन नहीं होता है. यहां हर सुबह-शाम घूमना भी हो जाता है. लोग अक्सर कहते हैं कि तुम जंगल में रहती हो सांप वगैरह से डर नहीं लगता? मैं उन्हें बस यही कहती हूं कि अगर हम सांप को कुछ नहीं कहेंगे तो वो भी हमें कुछ नहीं कहेगा. पर इंसानों के साथ ऐसा नहीं है. जब ये जंगल बनाया जा रहा था तब आसपास के लोग आकर परेशान करते थे और पौधे नहीं लगाने देते थे, उखाड़कर ले जाते थे. शुरुआत में तो पत्थर भी मारते थे कि हमें यहां से भगा दें, लेकिन हम डटे रहे. जंगल लगाने का फायदा कम से कम ये हुआ है कि यहां पक्षी वगैरह भी लगे हैं.”    

आपकी जिद दूसरों की जिद से बड़ी होनी चाहिए 
इसी के बारे में बात करते हुए स्वामी प्रेम परिवर्तन कहते हैं, “लोग पहले शुरुआत में हमारे जनरेटर उठा ले जाते थे, फावड़े ले जाते थे, केयरटेकर को परेशान करना … ये सब होता था. लेकिन हम तब भी नहीं रुके. दुनिया में कुछ भी करो, आपकी जिद दूसरों की जिद से बड़ी होनी चाहिए. बस लगे रहिए अपने काम में, लोग आते जाएंगे. जब हम पेड़ लगाए रहे थे तो लोग हंसते थे हमपर कि कई लोग पहले भी आकर के चुके ट्राई खरबों रुपये लगा चुके हैं आप क्या कर लोगे? लेकिन हमने कर दिखाया. हमने महिलाओं और बच्चों को अपनी तरफ किया, उनको शिक्षित किया पेड़-पौधों को लेकर. इसमें हमें 2 साल लग गए. मौजूदा समय में हम 300-400 साइट पर फोकस कर रहे हैं.” 

फोटो- गिव मी ट्रीज
फोटो- गिव मी ट्रीज

मियावाकी मेथड से लगाए हैं पेड़ 
गिव मी ट्रीज ट्रस्ट के संस्थापक पीपल बाबा ने उदय उपवन में एक समृद्ध जंगल बनाने के लिए मियावाकी मेथड का इस्तेमाल किया है. जंगल में लोकल जलवायु के हिसाब से पेड़ चुनकर और मिट्टी की गड़बड़ी से परहेज करके, एक नेचुरल इको-सिस्टम बनाया गया है. साथ ही पेड़ों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया गया है.  बता दें, जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी ने इस मेथड को सबसे पहले शुरू किया था. इसमें पौधों को बहुत करीब से बोया जाता है. इससे नए पेड़ों को एक-दूसरे की रक्षा करने और सूरज की रोशनी को जंगल की जमीन पर गिरने से रोकने में मदद मिलती है, जिससे बैक्टीरिया या वायरस पौधों पर नहीं आते हैं. इस प्रक्रिया से पौधों का10 गुना तेजी से बढ़ते हैं. 

स्वामी प्रेम परिवर्तन कहते हैं, “हमने वो 40 पौधे लगाए हैं जो पिछले 100 साल में इस जिले में उग रहे हैं. बाकी जो भी उगता है वो प्राकृतिक रूप से उगता है. घास काटने वालों को भी साफ कहा जाता है कि घास को जड़ से नहीं काटना है केवल ऊपर से काटना है.” 

फोटो- गिव मी ट्रीज
फोटो- गिव मी ट्रीज

आसपास के लोग भी हैं खुश 
उदय उपवन के केयरटेकर राम बताते हैं कि वे यहां 2019-20 से काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, “जहां भी खाद, पानी चाहिए होता है वो हम देखते हैं. आसपास के लोग आते रहते हैं. छुट्टी वाले दिन तो और भी भीड़ रहती है. लेकिन सब खुश होकर जाते हैं. हमलोग बच्चों के लिए बर्ड वॉक का नेचर वॉक करवाते हैं. बच्चे भी बढ़ चढ़कर आते हैं.”

आखिर में प्रेम परिवर्तन कहते हैं, “स्वस्थ हवा, मिट्टी और पानी ही हमें स्वस्थ रख सकते हैं. पेड़ लगाने इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि क्लोरोफिल ही भगवान है. कोई भी जमीन, किसी भी धर्म की दीवारें होती हैं वो कोई भी ऑक्सीजन नहीं देती हैं, लेकिन क्लोरोफिल देता है. ये हमें जिंदगी देता है. जिस तरह नानी कहती थीं कि पत्ता ही परमात्मा है… पत्ता ही परमात्मा है.”