
आस्था के सबसे बड़े मेले महाकुंभ में सनातन धर्म से जुड़ी प्रथा का पालन किया जा रहा है. महाकुंभ के आरंभ होने में अभी कई दिन का वक्त शेष है. फिर भी संगम के तट पर बने मेला क्षेत्र के एक हिस्से में बड़ी-बड़ी कड़ाही-चूल्हे पर दिन-रात चढ़ी हुए हैं.
कड़ाहियों में बड़े जतन से कलछी चलाने का मकसद बेहद नेक है. केसरिया वस्त्रों में दिख रहे सेवादारों की सिर्फ एक ही इच्छा है कि इनके दर पर आने वाले कोई श्रद्घालु, कर्मचारी या सफाईकर्मी किसी वक्त भी भूखा ना रहे.
'ओम नमः शिवाय' भंडारा
15 दिन पहले से इतने बड़े स्तर पर भंडारे का आयोजन 'ओम नमः शिवाय' नाम के एक बाबा की तरफ से करवाया जा रहा है. जो भंडारे के सफल आयोजन के लिए अन्नदान के साथ खुद श्रमदान भी कर रहे हैं.
क्या है अन्नदान का महत्व
सनातन धर्म से जुड़े लोगों से भंडारे का महत्व नहीं छिपा है. किसी भी धार्मिक कार्यक्रम या अनुष्ठान के मौके पर भंडारे का आयोजन अवश्य किया जाता है. भंडारे में आने वाले सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव, प्रेम और आदर के साथ भरपेट खाना खिलाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि अन्नदान या भंडारे से धार्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार सभी दानों में सबसे श्रेष्ठ दान अन्न का माना जाता है.
मेले में देखने तो मिलेगा तकनीक का तड़का
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम महांकुभ में तकनीक का तड़का भी देखने को मिल रहा है. सरकार की तरफ से महाकुंभ से जुड़ी सभी व्यवस्थाओं, सुविधाओं और सुरक्षा को हाईटेक बनाने के प्रयास लगातार जारी है. ऐसे में महाकुंभ में पधारे प्रमुख अखाड़ों से जुड़े साधु-संत और बाबा कैसे पीछे रहते. वो भी महाकुंभ में अपनी व्यवस्थाओं को भी डिजिटली हाईटेक करने में जुटे हैं. अखाड़ों के प्रमुख बाबाओं को कम्युनिकेशन और कमांड देने के लिए वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल करते देखा जा सकता है.
इस बार घाटों, अखाड़ों और यहां तक मंडपों को बेहतर तरीके से समाहित करने के लिए 4 हजार हेक्टेयर से ज्यादा का मेला क्षेत्र है. ऐसे में कई बार महाकुंभ में मोबाइल से एक सेक्टर से दूसरे सेक्टर में मौजूद व्यक्ति से बात करना मुश्किल हो जाता है. यही वजह है कि मोबाइल के विकल्प के तौर पर वॉकी-टॉकी का इंतजाम किया गया है.