24 अप्रैल 1993... दिल्ली एयरपोर्ट पर लगभग 20 साल के एक युवा, दाढ़ी वाले व्यक्ति के बगल में बैठे देख श्रीनगर के डॉक्टर आसिफ खांडेय ने कहा, “वे खतरनाक हैं”... डॉ. आसिफ उस आदमी के दोनों पैरों पर लगे प्लास्टर को सहारा देने वाली स्टील की छड़ों की बात कर रहे थे...खुद को एचएम रिजवी बताने वाले व्यक्ति ने बताया कि वह जयपुर में एक दुर्घटना का शिकार हो गया था. डॉक्टरों ने उसे सहारा देने के लिए स्टील की छड़ से कास्ट पहनने की सलाह दी है....
जब वे बात कर रहे थे, तो न तो डॉ. आसिफ और न ही रिज़वी को पता था कि उनकी फ्लाइट में कितना बड़ा हादसा होने वाला है. दोनों व्यक्ति इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी 427 के यात्री थे, जो दिल्ली से श्रीनगर की फ्लाइट थी.
हाईजैक का खुलासा हुआ
फ्लाइट जैसे ही उडी कुछ देर बाद ही बड़ी ही अजीब सी घटना घटी. वह व्यक्ति जो एयरपोर्ट पर लंगड़ाकर चल रहा था, अचानक सीधा चलने लगा. रिजवी ने अपनी असली पहचान बताई: मोहम्मद यूसुफ, एक आतंकवादी संगठन हिज्ब-उल-मुजाहिदीन का टॉप रैंकिंग मेंबर. उसके पैरों पर प्लास्टर के भीतर दो भरी हुई 9 मिमी पिस्तौलें छिपी हुई थीं, जिन्हें वह प्लेन पर कंट्रोल हासिल करने के लिए लहरा रहा था.
यूसुफ ने घोषणा की, "मैं जनरल हसन हूं, हिज्ब-उल-मुजाहिदीन के सुप्रीम कमांडर सैयद सलाहुद्दीन के निर्देशों के तहत एक स्पेशल मिशन पर." उसकी मांग? फ्लाइट को काबुल, अफगानिस्तान की ओर मोड़ा जाए.
लेकिन आसमान में प्लेन को नेविगेट करना कभी भी आसान नहीं होता है. लाहौर के एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने अलग प्लेन को पाकिस्तानी एयरपोर्ट में प्रवेश करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे पायलटों को अमृतसर में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अमृतसर में संकट
जहाज पर नौ बच्चे और छह चालक दल के सदस्यों सहित 141 लोगों के बीच में डर का माहौल था. यूसुफ ने पूरी फ्लाइट को बंधक बना लिया था. हाईजैक करने वालों की मांग थी कि विमान में फ्यूल भरा जाए ताकि वह काबुल जा सके. जैसे ही प्लेन अमृतसर में सड़क पर खड़ा हुआ, दिल्ली में क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप (CMG) हरकत में आ गया. हाईजैक करने वालों के साथ बातचीत करने के लिए तुरंत अमृतसर में डिप्टी कमिश्नर और सीनियर पुलिस सुपरिटेंडेंट को एक्टिव कर दिया गया.
घंटों तक बातचीत चलती रही, लेकिन यूसुफ जिद पर अड़ा रहा. एक पॉइंट पर, उसने डर बैठाने के लिए प्लेन को छेदते हुए एक गोली भी चलाई.
25 अप्रैल 1993 के शुरुआती घंटों में, जब फ्लाइट आईसी 427 के यात्रियों को बंदी बना लिया गया था. लेकिन एनएसजी कमांडो हरकत में थे. उन्होंने ठीक रात 1:05 बजे, उन्होंने प्लेन के सभी छह दरवाजों को तोड़ते हुए हाईजैकर्स को पकड़ लिया. जब कमांडो ने हमला किया तो यूसुफ पंजाब पुलिस प्रमुख केपीएस गिल के साथ रेडियो फोन पर बातचीत कर रहा था.
अचानक हुए हमले को हाईजैकर्स समझ ही नहीं पाए. इससे पहले कि वह अपनी पिस्तौल से गोली चला पाता, एनएसजी कमांडो ने साइलेंसर से लैस हथियार से उस पर गोली चला दी. मोहम्मद यूसुफ को जिंदा पकड़ लिया गया, लेकिन बाद में पुलिस द्वारा ले जाने के दौरान उसने दम तोड़ दिया.
दो हाईजैक की कहानी
इसे ऑपरेशन अश्वमेध नाम दिया गया. लेकिन ये फ्लाइट आईसी 814 के कुख्यात हाईजैक से बिल्कुल अलग था. छह साल बाद दिसंबर 1999 में एक बार फिर से कुछ ऐसा ही पर इससे ज्यादा खतरनाक मामला सामने आया. इसमें हाईजैकर्स ने काठमांडू से रास्ते में इंडियन एयरलाइंस की एक फ्लाइट को अपने कब्जे में ले लिया था. इसे कंधार, अफगानिस्तान की ओर मोड़ दिया गया था. जबकि IC 427 के हाईजैक में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं हुआ था. और ऑपरेशन भी जल्दी ही खत्म हो गया था. IC 814 को लेकर सात दिन तक ऑपरेशन चलाया गया. जिसके परिणामस्वरूप आखिर में कई लोग मारे गए.
इंडिया टुडे रिपोर्ट के मुताबिक, इन दो हाईजैक पर जो प्रतिक्रिया हुई उनके बीच काफी फर्क था. और इसपर आज भी बहुत बहस होती है. कई लोग पूछते हैं कि आखिर 1993 में एनएसजी कमांडो ने जो एक्शन लिया था वो 1999 में क्यों नहीं दोहराया जा सका? आईसी 814 हाईजैक के दौरान क्या गलत हुआ जिससे स्थिति इतनी नियंत्रण से बाहर हो गई?
इसमें एक्सपर्ट्स कई वजह बताते हैं. सबसे पहले, आईसी 814 हाईजैक में निर्णय जल्दी नहीं लिया गया. प्लेन अमृतसर में जमीन पर 45 मिनट तक रहा, इस दौरान कई लोगों ने तर्क दिया कि प्लेन पर हमला करने के लिए एनएसजी को तैनात किया जा सकता था. हालांकि, प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने संकोच किया और वह क्षण चूक गया. हाईजैकर्स कंधार तक फ्लाइट को कंट्रोल कर सकते थे, जहां तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान में बातचीत करना काफी मुश्किल था.
इसके विपरीत, 1993 में आईसी 427 के हाईजैक काफी सलीके से संभाला गया. इसमें एनएसजी कमांडो को तेजी से तैनात किया गया, समय निकालने के लिए बातचीत की गई और ऑपरेशन को बिना किसी नुकसान के अंजाम दिया गया.
ऑपरेशन अश्वमेध बड़ा ऑपरेशन
ऑपरेशन अश्वमेध एनएसजी और भारतीय एविएशन सिक्योरिटी के लिए काफी बड़ा मौका था. अपनी सूझबुझ से कमांडो ने हाईजैक को खत्म किया. इस ऑपरेशन को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में "सबसे तेज कमांडो ऑपरेशन" के रूप में जाना जाता है.
(सुशीम मुकुल की रिपोर्ट)