प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राजस्थान के मानगढ़ का दौरा किया और 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' कार्यक्रम में भाग लिया. इस दौरान पीएम मोदी ने 1913 में ब्रिटिश सेना द्वारा मारे गए आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी. आपको बता दें कि बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम में भील आदिवासियों और अन्य जनजातियों के सदस्यों की सभा को संबोधित किया.
इस कार्यक्रम में, प्रधान मंत्री मोदी के साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, शिवराज सिंह चौहान और भूपेंद्र पटेल भी मंच पर मौजूद थे. मंगलवार को जारी एक सरकारी बयान के अनुसार, प्रधान मंत्री मोदी ने इस धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है.
गोविंद गुरु ने शुरू किया आंदोलन
इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री पटेल ने दावा किया कि 1913 में मानगढ़ में आदिवासियों का नरसंहार पंजाब के जलियांवाला बाग की तुलना में अधिक भीषण था. हालांकि, यह घटना कभी इतिहास में दर्ज नहीं हो पाया औक बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं.
बांसवाड़ा से क़रीब 80 किमी दूर मानगढ़ धाम बसा हुआ है और यह चारों तरफ से पहाड़ी और जंगलों से घिरा हुआ है. आपको बता दें कि इस पहाड़ी की ऊंचाई क़रीब 800 मीटर है. यहां गोविंद गुरु की प्रतिमा लगी हुई है. क्योंकि उन्होंने ही यहां पर आदिवासियों के आंदोलन का नेतृत्व किया था.
साल 1903 में गोविंद गुरु ने संप सभा बनाकर उद्देश्य विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए आंदोलन शुरू किया. उन्होंने लोगों में शिक्षा की अलख जगाने और धर्म से जोड़ने का काम किया. धीरे-धीरे यह आंदोलन बढ़ा और गोविंद गुरु के आंदोलन से काफी आदिवासी जुड़ने लगे. यह बात ब्रिटिश अधिकारियों से सहन नहीं हुई.
1500 आदिवासियों का शहादत की दास्तान
17 नवम्बर 1913 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन गोविंद गुरु का जन्म दिन मनाने के लिए आदिवासियों की टोली मानगढ़ धाम के पहाड़ पर इकट्ठा हुई थीं. लेकिन ब्रिटिश फ़ौज ऐसे ही मौके के इंतजार में थी. उन्होंने पहाड़ी का नक्शा बनाया और एक ही बार में आदिवासी क्रांतिकारियों को खत्म करने का प्लान बना लिया.
अंग्रेजों के मेजर हैमिल्टन और उनके तीन अफसरों ने हथियारबंद फौज के साथ मानगढ़ पहाड़ी को तीन ओर से घेर लिया और सेना ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया. आदिवासियों पर लगातार गोलियां बरसाई गईं और इस हमले में 1500 आदिवासियों की मौत हो गई. और गोविंद गुरु को जेल में डाल दिया गया.
राजस्थान सरकार ने 27 मई 1999 को नरसंहार में मारे गए आदिवासियों की याद में शहीद स्मारक बनवाया था और अब इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है.