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Mahakal Mandir: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती से लेकर मंदिर के बारे में वो रोचक बातें जो बनाती हैं उसे और भी खास, जान लीजिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी 11 अक्टूबर को महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विकास परियोजना का उद्घाटन करेंगे. 900 मीटर से भी ज्यादा लंबा बना यह महाकाल लोक कॉरिडोर पुरानी रुद्र सागर झील के चारों ओर फैला हुआ है. मंदिर के बारे में कई रोचक बातें हैं जिसे हर कोई नहीं जानता.

Mahakal Corridor Mahakal Corridor
हाइलाइट्स
  • खास होती है भस्म आरती

  • 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक

प्रधानमंत्री NarendraModi आज मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर कॉरिडोर विकास परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन करेंगे. महाकालेश्वर मंदिर में नव विकसित गलियारे का नाम श्री महाकाल लोक (Sree MahaKal Lok) रखा गया है. इसका डिजाइन शिव लीला से प्रेरित है. यहां बनें चित्र और मूर्तियां भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं.

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक
900 मीटर से भी ज्यादा लंबा बना यह महाकाल लोक कॉरिडोर पुरानी रुद्र सागर झील के चारों ओर फैला हुआ है. महाकालेश्वर मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर पुनर्विकास योजना के तहत रुद्र सागर झील को पुनर्जीवित किया गया है. गलियारे में यूं तो ऐसी कई तरह की अन्य विशेषताएं हैं लेकिन हमारा मकसद ज्योतिर्लिंग की खासियत जानने से है.

महाकाल मंदिर तीन खंडों में बंटा हुआ है. ऊपरी भाग में नागचंद्रेश्वर मंदिर, मध्य में ओंकारेश्वर तथा निचले खंड में बाबा महाकाल विराजे हैं. महाकाल मंदिर में भोलेनाथ का दक्षिणामुखी शिवलिंग है. इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के गर्भग्रह में विराजमान होकर सृष्टि का संचार करते हैं. मध्यप्रदेश के हृदय में स्थित उज्जैन पांच हजार साल पुराना शहर माना जाता है. इसे अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से जाना जाता है.

क्या है कहानी?
शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, दूषण नामक दैत्य के अत्याचार से उज्जयिनी के निवासी काफी परेशान हो गए थे. दैत्य से दुःखी होकर लोगों ने भगवान शिव की प्रार्थना की तो बाबा ज्योति के रूप में प्रकट हुए और राक्षस का संहार किया. इसके बाद उज्जयिनी में बसे अपने भक्तों के आग्रह पर वो लिंग के रूप में वहीं प्रतिष्ठित हो गए. श्री महाकालेश्वर पृथ्वी लोक के राजा हैं. यह सभी ज्योतिर्लिंगों में से एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता मृत्युंजय महाकाल के रूप में की जाती है.

महाकाल सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है. शिवपुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण के पालक नंद से आठ पीढ़ी पहले महाकाल यहां विराजित हुए थे. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में वेदव्यास ने महाभारत में, कालिदास, बाणभट्ट और आदि ने भी लिखा है. यहां पर प्रभू अलग-अलग रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. शिवरात्रि में वो दूल्हा बनते हैं तो श्रावण मास में राजाधिराज बन जाते हैं. 

भस्म आरती है सबसे स्पेशल? 
यहां की भस्म आरती सबसे स्पेशल होती है. इसके बाद बाबा भक्तों को बेहद मनमोहक रूप में दर्शन देते हैं. सबसे पहले भगवान शिव की प्रतिमा को ठंडे जल से स्नान कराया जाता है. इसके बाद उनका पंचामृत( दूध, दही, शहद, घी और गन्ने के रस से बने द्रव) से अभिषेक किया जाता है. स्नान के बाद महाकाल का फूल, भस्म और माला से बेहद सुंदर रूप से श्रृंगार किया जाता है. फिर प्रभू को रुद्राक्ष से बनी माला अर्पित की जाती है. यह नजारा देखना अपने आप में ही बेहद खास होता है.

मंदिर के बारे में और भी कई रोचक बातें है जिसके बारे में कोई खास प्रमाण नहीं है. पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी. प्राचीन काव्य ग्रंथों में भी भव्य महाकाल मंदिर का नाम लिया गया है. कहते हैं कि इस मंदिर की नींव व चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था. मान्यता के अनुसार गुप्त काल से पहले इस पर कोई शिखर नहीं था, बल्कि छतें लगभग सपाट थीं.