प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को हिमाचल प्रदेश की अपनी यात्रा के दौरान एम्स, बिलासपुर का उद्घाटन किया. वह अपनी यात्रा के दौरान प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा समारोह में भी भाग लेंगे. उद्घाटन समारोह के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे.
रघुनाथ के दर्शन करेंगे पीएम मोदी
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि पीएम मोदी 3,650 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करने और चुनावी राज्य में एक जनसभा को संबोधित करने के लिए हिमाचल प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव 5 से 11 अक्टूबर तक कुल्लू के ढालपुर मैदान में मनाया जाएगा. यह आयोजन इस मायने में अनूठा है कि यह घाटी के 300 से अधिक देवताओं के उपासकों का जमावड़ा है. यह पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री समारोह में भाग लेंगे. इस तरह पीएम मोदी इस मेले में शामिल होने वाले पहले प्रधानमंत्री होंगे. पीएम यहां रघुनाथ जी के दर्शन कर उनका रथ भी खींचेंगे.
क्या है इतिहास?
बता दें कि कुल्लू दशहरा का इतिहास 372 साल पुराना है. 1660 में पहली बार इस ऐतिहासिक उत्सव का आयोजन हुआ था. उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी और जगत सिंह वहां के राजा थे. जगत सिंह ने साल 1637 से 1662 ईसवीं तक शासन किया. ऐसा कहा जाता है कि उनके शासनकाल में ही मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी निवासी गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त राजा की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया. इसका दोष राजा जगत सिंह को लगा. इस दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था.
तब राजा जगत सिंह को एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं. इन मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दें तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी. राजा ने उनकी बात मानी और श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के शिष्य दामोदर दास को अयोध्या भेजा. काफी मशक्कत के बाद मूर्ति कुल्लू पहुंची थी.
कुल्लू का दशहरा सबसे खास
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे अलग और खास अंदाज में मनाया जाता है. जिस दिन पूरे भारत में विजयदशमी की समाप्ति होती है. उस दिन से कुल्लू घाटी में इस उत्सव का रंग और अधिक बढ़ने लगता है. जब देश के लोग दशहरा मना चुके होते हैं तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है. कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है. लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटे मोटे रस्सों से खींचकर दशहरे की शुरुआत होती है.
इस दौरान राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा पहनकर छड़ी लेकर खड़े रहते हैं. यहां के दशहरे में रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते हैं. कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बलि दी जाती है. हालांकि दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन जरूर होता है. इसमें भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं.