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डॉक्टरों ने कर डाला चमत्कार, 115 दिन बाद मौत के मुंह से निकला नवजात

शिशु 80 दिनों तक सहायक वेंटिलेशन पर था और 10-12 ब्लड ट्रांसफ्यूजन  किया गया था. बच्चा हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित था और उसके फेफड़ों में भी संक्रमण काफी ज्यादा फैल चुका था. इसके अलावा उसे कई बार ब्रेन हैमरेज भी हो चुका था.

नवजात नवजात
हाइलाइट्स
  • IVF के जरिए हुआ था जुड़वा बच्चों का जन्म

  • इलाज के दौरान कई बीमारियों से ग्रस्त था शिशु

डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है. मेडिकल साइंस के कारण कई तरह के चमत्कार मुमकिन हुए हैं. हाल ही में दिल्ली में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है. जिसमें डॉक्टर ने एक नवजात शिशु को जिंदगी दी है. दरअसल दिल्ली में एक नवजात शिशु को 115 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद चमत्कारी रिकवरी मिली है. 

IVF के जरिए हुआ था जुड़वा बच्चों का जन्म
शिशु के मां-बाप दिल्ली के ही रहने वाले हैं. उन्होंने इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन (In-Vitro Fertilisation- IVF) के जरिए जुड़वा बच्चे प्लान किए थे. हालांकि उसमें एक बच्चे की जन्म के तुरंत बाद मौत हो गई. वहीं दूसरा बच्चा भी कई बीमारियों से जूझ रहा था. बच्चे की बीमारी को देखते हुए डॉक्टरों को बच्चे को बचाना काफी मुश्किल लग रहा था. हालांकि, 115 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद, बच्चे को हाल ही में फोर्टिस वसंत कुंज से छुट्टी दे दी गई है. 

इलाज के दौरान कई बीमारियों से ग्रस्त था शिशु
अस्पताल के निदेशक, बाल रोग और नवजात विशेषज्ञ ने बताया कि जन्म के तुरंत बाद बच्चा शॉक में चला गया था और 24 घंटों के अंदर स्थिर हो गया था. जन्म के दौरान बच्चे को कई तरह की बीमारियां थीं. यहां तक समय के पहले जन्म लेने की वजह से उसका वजन भी केवल 704 ग्राम था. इलाज के दौरान बच्चे को कई तरह की बीमारियां भी थी. जैसे कि डिसेचुरेशन, मस्तिष्क के दौरे, फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप के साथ पेटेंट डक्टस आर्टेरीओसस जैसे हृदय संबंधी बीमारियां. इलाज के दौरान बच्चे को 12 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन से गुजरना पड़ा. हालांकि अब ये बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है, और इसका वजन भी बढ़कर 1.95 किलोग्राम हो गया है. 

प्रीमैच्योर पैदा हुए थे बच्चे
फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की मां को  इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन इसलिए कराना पड़ा क्योंकि वो खुद से बच्चे को जन्म देने में असक्षम थीं. गर्भावस्था के छह महीने में जुड़वा बच्चे समय से पहले पैदा हुए थे. ऐसे मामलों में बच्चों के बचने का बहुत कम चांस होता है. एक बच्चे की जन्म के समय ही मौत हो गई और दूसरा बच गया लेकिन उसकी हालत बेहद नाजुक थी. बच्चे के जीवित रहने की संभावना कम थी क्योंकि वह कई बीमारियों से जूझ रहा था. उसके शरीर की अधिकांश अंग ठीक से काम नहीं कर रहे थे.

80 दिनों तक वेंटिलेशन पर रहा बच्चा
शिशु 80 दिनों तक सहायक वेंटिलेशन पर था और 10-12 ब्लड ट्रांसफ्यूजन  किया गया था. बच्चा हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित था और उसके फेफड़ों में भी संक्रमण काफी ज्यादा फैल चुका था. इसके अलावा उसे कई बार ब्रेन हैमरेज भी हो चुका था. फोर्टिस अस्पताल वसंत कुंज के निदेशक डॉ राजीव नैयर ने कहा, "शिशु की गंभीर स्थिति को देखते हुए यह एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण मामला था. क्योंकि बच्चे में पहले ही कई सारी बीमारियां थी, और उसको बचा पाना काफी मुश्किल था. तमाम दिक्कतों के बावजूद  भी हमारे डॉक्टरों ने उसे बचा लिया."