प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो को कश्मीर से हैंड मेड रेशमी कालीन और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो को यूपी के वाराणसी से लाकरवेयर राम दरबार गिफ्ट किया. इसके अलावा भी उन्होंने सभी राष्ट्र प्रमुखों को भारत को दुनिया में पहचान दिलाने वाली कई अनूठी चीजें उपहार के रूप में दी. इसमें रामायण थीम वाली डोकरा कला, जरी जरदोजी बॉक्स, मेटल मरोडी नक्काशी वाला मटका और टी सेट भी शामिल थे.
हाथ से बुने हुए रेशमी कालीन अपनी कोमलता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं. एक कश्मीरी रेशम कालीन अपनी सुंदरता, परफेक्शन और मेहनत से बनाए जाने के लिए जाना जाता है. वहीं, राम दरबार खास गूलर की लकड़ी पर बनाया जाता है और मेटल मरोडी नक्काशी वाला मटका उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में बनाया जाता है. यही कारण है कि मुरादाबाद को उत्तर प्रदेश की पीतल नगरी भी कहा जाता है.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से मेटल मरोडी नक्काशी वाला मटका उपहार में दिया. यह पीतल का बर्तन जिला मुरादाबाद से एक उत्कृष्ट कृति है, जिसे भारत के उत्तर प्रदेश के पीतल नगरी या "पीतल शहर" के रूप में भी जाना जाता है. वहीं, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा को छत्तीसगढ़ से रामायण थीम वाली डोकरा कला भेंट की. ऐसी धातु की ढलाई का उपयोग भारत में 4,000 से अधिक वर्षों से होता आ रहा है.
इसके अलावा मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को वाराणसी, उत्तर प्रदेश से गुलाबी मीनाकारी ब्रोच और कफलिंक सेट उपहार में दिया है. ये कफलिंक राष्ट्रपति के लिए और मैंचिग ब्रोच फर्स्ट लेडी के लिए तैयार किए गए थे. वहीं, सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल को उत्तर प्रदेश के सीतापुर से मूंज की टोकरियां और कपास की दरियां गिफ्ट की. सेनेगल में हाथ से बुनाई की परंपरा को मां से बेटी तक पारित किया जाता है. यह खासतौर पर महिलाओं द्वारा संचालित सांस्कृतिक है.
भारत में कालीन का इतिहास
पीएम मोदी ने जस्टिन ट्रूडो को कश्मीर में बना हैंड मेड रेशमी कालीन गिफ्ट किया लेकिन, क्या आपको मालूम है भारत में कालीन बनाने की शुरुआत कहां से हुई थी. उत्तर प्रदेश के जिले भदोही में इसे बनाया गया था, जोकि आज भी दुनियाभर में अपने कालीन के लिए जाना जाता है. इसकी शुरुआत आज से नहीं बल्कि मुगलकाल के दौरान हुई थी.
भारत में कालीन उद्योग को लाने का श्रेय मुगल बादशाह अकबर को जाता है, उसी तरह भारतीय कालीन को विश्व विख्यात करने और इस उद्योग में एशिया के सबसे बड़े कालीन मेले के जनक हाजी जलील अहमद अंसारी का नाम भी याद रखा जाएगा.
कांतिलाल ने बनाई थी पहली पर्शियन कारपेट
1960 के दशक में कांतिलाल नाम के बुनकर ने पर्शियन कारपेट बनाने की शुरुआत की थी. उस दौरान जो कालीन बने वह शाही कालीन कहलाए. हालांकि, कालीन का इतिहास 5000 साल पुराना है. उस दौरान सबसे पहले मिश्र में कालीन बनी थी लेकिन, भदोही की कालीन को आज भी दुनियाभर को लोग खरीदना पसंद करते हैं. माना जाता है कि यहां की कालीन की बात ही अलग होती है.
इस शहर में है कालीन निर्माण का सबसे बड़ा काम
मिर्जापुर, भदोही, पानीपत, जम्मू कश्मीर, राजस्थान समेत कई शहरों से कालीन बनाने का काम किया जाता है, लेकिन पूरे देश में कालीन निर्माण और निर्यात के सबसे बड़े क्षेत्र भदोही और मिर्जापुर हैं. पूरे विश्व में भदोही की हस्तनिर्मित कालीनों की एक अलग पहचान है. हालांकि, कालीन भारत में लाने करने का श्रेय आज भी मुगल बादशाहों को ही जाता है. उन्होंने अपने शाही दरबारों और महलों के लिए इसका निर्माण करवाया था.
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