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PM Modi Mother Birthday: मां के जन्मदिन पर पीएम मोदी ने लिखा हीराबेन के नाम खूबसूरत पत्र, पढ़कर भावुक हो जाएंगे आप

इस पत्र को पीएम ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है, जिस पर उनकी वेबसाइट का लिंक भी है, जिसे खोलकर आप पूरा पत्र पढ़ सकते हैं. इस पत्र को 14 भाषाओं में पढ़ा जा सकता है.

हीराबेन के साथ पीएम मोदी हीराबेन के साथ पीएम मोदी
हाइलाइट्स
  • 14 भाषाओं में लिखा है पत्र

  • मां से जुड़े कई किस्सों का किया जिक्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीरा बेन 100 साल की हो गई हैं. इस खास मौके पर पीएम अपनी मां के साथ हैं. मां के जन्मदिन पर पीएम मोदी आज सुबह-सुबह उनसे मिलने गांधीनगर पहुंचे. इसके पहले पीएम मोदी 11 और 12 मार्च को, दो दिन गुजरात के दौरे पर थे. इस दौरान भी वो अपनी मां से मिलने के लिए गांधीनगर पहुंचे थे. 

उन्होंने मां का आशीर्वाद लेकर उनकी तबीयत का हाल पूछा था और साथ में खिचड़ी भी खाई थी.  प्रधानमंत्री आज गुजरात में कई कार्यक्रमों में शामिल होने वाले हैं, लेकिन सबसे पहले उन्होंने मां से मुलाकात की है और उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे हैं. आज के इस खास मौके पर पीएम ने अपनी मां के लिए एक बेहद खूबसूरत सा पत्र लिखा है. पीएम ने इस पत्र में अपनी मां के कई किस्सों का जिक्र किया है. 

14 भाषाओं में लिखा है पत्र
इस पत्र को पीएम ने अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है, जिस पर उनकी वेबसाइट का लिंक भी है, जिसे खोलकर आप पूरा पत्र पढ़ सकते हैं. इस पत्र को 14 भाषाओं में पढ़ा जा सकता है. जिसमें अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, बंगाली, कन्नड़, मलयालम, तेलुगू, तमिल, मराठी, असमिया, मणिपुरी, उड़िया, उर्दू और पंजाबी शामिल है. पीएम के पत्र की कुछ झलकियां यहां देख सकते हैं. 

पीएम ने अपने पत्र की शुरुआत कुछ ऐसे की
"माँ, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है. जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है. दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है. मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है. और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है."...

स्वनिर्भर है मां
"अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया. मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं. लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो. इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं. वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी.

बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टकपता था, कभी वहां से. पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं. छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था. उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं. जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है."

मां ने जीव पर दया करना सीखाया

"मेरी मां की एक और अच्छी आदत रही है जो मुझे हमेशा याद रही. जीव पर दया करना उनके संस्कारों में झलकता रहा है. गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए वो मिट्टी के बर्तनों में दाना और पानी जरूर रखा करती थीं. जो हमारे घर के आसपास स्ट्रीट डॉग्स रहते थे, वो भूखे ना रहें, मां इसका भी ख्याल रखती थीं.

 

पिताजी अपनी चाय की दुकान से जो मलाई लाते थे, मां उससे बड़ा अच्छा घी बनाती थीं. और घी पर सिर्फ हम लोगों का ही अधिकार हो, ऐसा नहीं था. घी पर हमारे मोहल्ले की गायों का भी अधिकार था. मां हर रोज, नियम से गौमाता को रोटी खिलाती थी. लेकिन सूखी रोटी नहीं, हमेशा उस पर घी लगा के ही देती थीं."...

 

मां की याददाश्त का जिक्र

"इतने बरस की होने के बावजूद, मां की याददाश्त अब भी बहुत अच्छी है. उन्हें दशकों पहले की भी बातें अच्छी तरह याद हैं. आज भी कभी कोई रिश्तेदार उनसे मिलने जाता है और अपना नाम बताता है, तो वो तुरंत उनके दादा-दादी या नाना-नानी का नाम लेकर बोलती हैं कि अच्छा तुम उनके घर से हो.

दुनिया में क्या चल रहा है, आज भी इस पर मां की नजर रहती है. हाल-फिलहाल में मैंने मां से पूछा कि आजकल टीवी कितना देखती हों? मां ने कहा कि टीवी पर तो जब देखो तब सब आपस में झगड़ा कर रहे होते हैं. हां, कुछ हैं जो शांति से समझाते हैं और मैं उन्हें देखती हूं. मां इतना कुछ गौर कर रही हैं, ये देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया.

 

उनकी तेज याददाश्त से जुड़ी एक और बात मुझे याद आ रही है. ये 2017 की बात है जब मैं यूपी चुनाव के आखिरी दिनों में, काशी में था. वहां से मैं अहमदाबाद गया तो मां के लिए काशी से प्रसाद लेकर भी गया था. मां से मिला तो उन्होंने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के दर्शन भी किए थे? मां पूरा ही नाम लेती हैं- काशी विश्वनाथ महादेव. फिर बातचीत में मां ने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के मंदिर तक जाने का रास्ता अब भी वैसा ही है, ऐसा लगता है किसी के घर में मंदिर बना हुआ है. मैंने हैरान होकर उनसे पूछा कि आप कब गई थीं? मां ने बताया कि बहुत साल पहले गईं थीं. मां को उतने साल पहले की गई तीर्थ यात्रा भी अच्छी तरह याद है."

स्वाभिमानी है मां

"आज अगर मैं अपनी माँ और अपने पिता के जीवन को देख रहा हूँ, तो वे सबसे बढ़िया हैं और स्वाभिमान हैं. गरीबी से जूझते हुए परिस्थितियां कैसी भी रही हों, मेरे माता-पिता ने ना कभी ईमानदारी का रास्ता छोड़ा ना ही अपने स्वाभिमान से समझौता किया. कठिन कठिन से कठिन कड़ी का एक ही तरीका-मेहनत, दिन का कठिन परिश्रम.

 

जब तक वह जीवन में न आए. मेरी माँ ने भी अपने बच्चों के साथ रहने की कोशिश की, वे अपने साथ काम नहीं कर रहे थे.

 

आज भी जब मैं चाहता हूं, तो यह हमेशा की तरह होगा, "मरने के लिए किसी भी तरह से बदलने वाला, ऐसा इसलिए-फिरते जाने तो क्या".

 

मैं अपनी जीवन की वैवाहिक यात्रा में हूं."