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उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी की शादी है… क्या उसे छुट्टी मिल सकती है? मद्रास हाईकोर्ट ने इसपर क्या कहा?

इस मामले में रेजिना बेगम नाम की महिला ने याचिका दायर की थी. उनका बेटा मरगोत अली तिरुचिरापल्ली सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. एक महिला मरगोत अली से शादी करने के लिए तैयार थी और यह शादी 15 जनवरी 2025 को दरगाह में तय थी. उनकी मां ने बेटे के लिए 25 दिन की छुट्टी मांगी थी. जेल प्रशासन ने यह कहते हुए छुट्टी देने से इनकार कर दिया कि कैदी ने अभी तीन साल पूरे नहीं किए हैं.

उम्रकैद की सजा और शादी का अधिकार उम्रकैद की सजा और शादी का अधिकार

शादी हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, चाहे वह आम नागरिक हो या सजा काट रहा कैदी. इसी सिद्धांत को स्वीकार करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में एक कैदी को शादी के लिए 15 दिन की आपातकालीन छुट्टी (इमरजेंसी लीव) देने का आदेश दिया. यह फैसला 3 जनवरी 2025 को सुनाया गया, जिससे वह अपनी शादी में शामिल हो सके, जो 15 जनवरी 2025 को होने वाली थी.

मद्रास हाई कोर्ट की जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन और जस्टिस आर. पूर्णिमा की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि एक कैदी को भी शादी करने का अधिकार है और तमिलनाडु सस्पेंशन ऑफ सेंटेंस रूल्स, 1982 के नियम 6 के तहत यह अधिकार मान्यता प्राप्त है.

नियम 6 के तहत किन स्थितियों में मिलती है छुट्टी?
इसके लिए एक नियम भी है. नियम 6 के अनुसार, किसी भी कैदी को इमरजेंसी छुट्टी कई परिस्थितियों में दी जा सकती है:

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  • परिवार में किसी की गंभीर बीमारी या मृत्यु (माता-पिता, जीवनसाथी, संतान, सगे भाई-बहन). 
  • कैदी की शादी या उनके बच्चे, भाई या बहन की शादी. 
  • अगर कोई महिला कैदी गर्भवती है और उसे जेल के बाहर डिलीवरी करनी हो.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब यह नियम पहले से मौजूद है, तो ऐसे मामलों में छुट्टी न देना अन्यायपूर्ण होगा.

ब्रिटेन के मॉडल को नकारा
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ देशों, जैसे यूनाइटेड किंगडम, में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों को शादी करने का अधिकार नहीं दिया जाता. लेकिन भारतीय कानून में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जब भारतीय कानून के तहत यह अधिकार मान्य है, तो विदेशी मॉडल को अपनाने का कोई तर्क नहीं बनता.

शादी का अधिकार, मौलिक मानवाधिकार
कोर्ट ने यह भी माना कि शादी का अधिकार एक मौलिक मानवाधिकार है. इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिलता है, क्योंकि:
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणापत्र (UDHR), 1948 के अनुच्छेद 16(1) के अनुसार, "पुरुषों और महिलाओं को बिना किसी जाति, धर्म या राष्ट्रीयता के भेदभाव के शादी करने और परिवार बसाने का अधिकार है."

अंतरराष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकार संधि (ICCPR) के अनुच्छेद 23(2) में भी इस अधिकार की पुष्टि की गई है.

मामला कोर्ट तक कैसे पहुंचा?
दरअसल, इस मामले में रेजिना बेगम नाम की महिला ने याचिका दायर की थी. उनका बेटा मरगोत अली तिरुचिरापल्ली सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. एक महिला मरगोत अली से शादी करने के लिए तैयार थी और यह शादी 15 जनवरी 2025 को दरगाह में तय थी. उनकी मां ने बेटे के लिए 25 दिन की छुट्टी मांगी थी. जेल प्रशासन ने यह कहते हुए छुट्टी देने से इनकार कर दिया कि कैदी ने अभी तीन साल पूरे नहीं किए हैं (वह 23 अप्रैल 2022 को दोषी ठहराया गया था और 2 साल 7 महीने ही जेल में हुए थे). इसके बाद याचिकाकर्ता ने मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इमरजेंसी लीव देने की मांग की.

कोर्ट ने जेल प्रशासन को क्या आदेश दिए?

कोर्ट ने तिरुचिरापल्ली सेंट्रल जेल के अधीक्षक को निर्देश दिया कि:

  • मरगोत अली को 15 दिन की इमरजेंसी छुट्टी दी जाए.
  • कैदी को पुलिस एस्कॉर्ट के साथ भेजा जाएगा, लेकिन एस्कॉर्ट सादे कपड़ों में रहेगा.
  • याचिकाकर्ता (मां) को यह प्रमाण देना होगा कि शादी वाकई तय तारीख और स्थान पर हो रही है.
  • एस्कॉर्ट पर आने वाला खर्च कैदी की जेल में होने वाली कमाई से काटा जाएगा.
  • कैदी को जेल मैनुअल के सभी नियमों का पालन करना होगा. 

मद्रास हाई कोर्ट का ये फैसला बताता है कि कानून केवल सजा देने के लिए नहीं बल्कि इंसाफ करने के लिए भी बना है.