पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन यानी 14 नवंबर से कांग्रेस पूरे उत्तर प्रदेश में 32 हजार किलोमीटर की पदयात्रा शुरू करने जा रही है. 10 दिनों तक चलने वाली इस पदयात्रा के पीछे कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.
पदयात्रा के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग!
दरअसल, कांग्रेस के लिए ये पदयात्रा काफी महत्वपूर्ण है. यूपी कांग्रेस की टीम में काम कर रहे करीबी सूत्रों का कहना है कि इस यात्रा के जरिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से बढ़ने की पूरी उम्मीद है. इस यात्रा का पहला उद्देश्य कांग्रेस की बातों को लोगों तक पहुंचाना है. कांग्रेस को अचानक पदयात्रा का ख्याल कहां से आया, इसको लेकर सूत्रों ने बताया कि ये प्लानिंग लंबे समय से चल रही थी. सूत्र यह बताते हैं कि इस पदयात्रा के पीछे पूरा दिमाग चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का है.
...तो इसलिए सामने नहीं आना चाहते पीके
प्रशांत किशोर और उनकी टीम(आईपैक) ने इससे पहले पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी, पंजाब में अमरिंदर सिंह, बिहार में नीतीश कुमार और 2014 में भाजपा के लिए कैंपेनिंग कर चुकी है. इस सवाल पर कि जब प्रशांत ने कांग्रेस को इस तरह के कैंपेन का आइडिया दिया तो खुलकर ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं, सूत्र बताते हैं कि प्रशांत इस बात को भली भांति जानते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहने वाला है. लेकिन, कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए इस तरह की कैंपेनिंग जरूरी है. यही वजह है कि यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर पीके सामने नहीं आना चाहते हैं.
2017 की हार पचा नहीं पाए हैं प्रशांत
2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को प्रशांत किशोर पचा नहीं पाए हैं. आईपैक सूत्रों के मानें तो जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, उस वक्त भी यूपी के लिए अलग से एक टीम काम कर रही थी. करीब 60 लोगों की टीम इसको लेकर रिसर्च कर रही थी कि वर्तमान में कांग्रेस की क्या स्थिति है. रिसर्च में यह सामने आया कि कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा 5 से 10 सीटें ही जीत सकती है. इसी के चलते प्रशांत ने यूपी चुनाव से खुद को दूर रखने का फैसला कर लिया.
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैंपेनिंग के बाद से ही प्रशांत लगातार भाजपा विरोधी दलों के लिए काम कर रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि आईपैक की टीम के रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ही योगी को टक्कर दे सकते हैं. बीच में तो अंदर से यह बातें भी सामने आ रही थी कि आईपैक खुलेतौर पर समाजवादी पार्टी के लिए काम कर सकती है, लेकिन भाजपा की मजबूत स्थिति को देखते हुए इस पर विचार नहीं किया गया.
कांग्रेस में क्यों नहीं शामिल हो रहे प्रशांत किशोर?
पिछले दिनों इस बात को लेकर जोर शोर से चर्चा हो रही थी कि प्रशांत किशोर अब कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. यूपी में कांग्रेस के लिए काम कर रही कंपनी REIFY और आईपैक के सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे दो बड़ी वजह है. सूत्र बताते हैं कि प्रशांत कांग्रेस में महासचिव का पद मांग रहे हैं और पार्टी उन्हें यह देने को तैयार नहीं है. पार्टी अगर पद देने को तैयार भी हो जाए तो प्रशांत की दूसरी शर्त यह है कि उन्हें एकतरफा फैसला लेने का अधिकार मिले. इसको लेकर कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता बिल्कुल तैयार नहीं हैं.
पीके को फ्री हैंड नहीं देना चाहती कांग्रेस
प्रशांत किशोर ने एक रणनीतिकार के तौर पर जब भी किसी राजनीतिक दल के लिए काम किया है, अंदरूनी बगावत जबरदस्त रूप से शुरू हो जाती है. तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करते वक्त भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जब प्रशांत जदयू में थे तो नीतीश के काफी करीबी बन गए थे. इससे पार्टी के कुछ सीनियर नेता खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे. यही वजह है कि कांग्रेस किसी भी हाल में प्रशांत को फ्री हैंड नहीं देना चाहती.
दूसरी बड़ी वजह है ये भी बताई जाती है कि प्रशांत खुद ही अभी कांग्रेस में शामिल नहीं होना चाहते हैं. सूत्र यह बताते हैं कि यूपी चुनाव में कांग्रेस चाहे कुछ भी कर ले पार्टी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं रहने वाली है. पंजाब चुनाव को लेकर जितने भी प्री पोल हुए हैं, उसमें कांग्रेस की सत्ता जाती हुई दिख रही है. ऐसे में अगर चुनाव से पहले प्रशांत कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं तो विपक्ष को प्रशांत को निशाना बनाने का बड़ा मौका मिल जाएगा. यह वजह है कि प्रशांत को कांग्रेस में शामिल कराने के लिए सही मौके की तलाश की जा रही है.
यूपी तो बहाना है, 2024 निशाना है...
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए काम कर रही टीम के एक सदस्य ने नाम नहीं छापने की शर्त पर यह बताया कि अब तक जो इंटरनल सर्वे हुए हैं, उसमें कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन, कांग्रेस का पूरा ध्यान 2024 के लोकसभा चुनाव पर है. कांग्रेस सिर्फ इतना चाहती है कि वह फाइटिंग मोड में आ जाए. जनता को यह दिखने लगे कि कांग्रेस भी लड़ सकती है. मतलब यह कि यूपी का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर जाए.
सिर्फ महिला वोटरों को क्यों साध रही कांग्रेस
प्रशांत किशोर की टीम में पहले काम कर चुके और अभी कांग्रेस के लिए काम कर रही कंपनी से जुड़े एक युवा ने बताया कि जब इंटरनल सर्वे कराया गया तो कोई ऐसी जाति नहीं दिखी जो सीधा-सीधा कांग्रेस को समर्थन करे. यूपी की तीन बड़ी पार्टियां भाजपा, सपा और बसपा ने अपना वोट बैंक बना रखा है. 1990 के बाद से यूपी में कांग्रेस का वजूद लगातार कम होता गया. यहां तक कि मुस्लिमों का भी कांग्रेस के प्रति झुकाव न के बराबर है. यही वजह है कि कांग्रेस ने सीधे-सीधे महिलाओं को ही साधकर आगे बढ़ने का फैसला किया. 2017 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत भी पुरुषों से ज्यादा था.